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महाकुंभ 2025: तीर्थराज प्रयागराज में अखाड़ों के शिविरों में भंडारे का क्या है महत्व, जानिए ? - MAHA KUMBH MELA 2025

माघ महीने में चल रहे महाकुंभ मेले में आयोजित भंडारे में लाखों लोग ग्रहण करते हैं भोजन.

शिविरों में भंडारे का आयोजन
शिविरों में भंडारे का आयोजन (EPhoto credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 27, 2025, 12:43 PM IST

Updated : Jan 27, 2025, 1:33 PM IST

प्रयागराज : संगम की धरती पर चल रहे महाकुंभ मेले में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को खाने पीने की किसी प्रकार की दिक्कत न हो उसके लिए मेला क्षेत्र में जगह-जगह भंडारे का आयोजन हो रहा है. अखाड़ों और उनके साधु संतों के साथ ही कल्पवासी, स्नानार्थी अन्नदान करते हैं. मान्यता है कि तीर्थराज प्रयागराज में अन्नदान करना, भोजन करवाना, अत्यंत पुण्यदायी और अक्षय फल प्रदान करने वाला होता है. इसी कारण माघ महीने में चल रहे महाकुंभ मेले में अखाड़ों से लेकर उद्योगपति और आम श्रद्धालु तक अन्नदान करने के लिए भंडारा चलवा रहे हैं.

अखाड़ों के शिविरों में भंडारे का आयोजन (Video credit: ETV Bharat)

'एक लाख से अधिक लोग ग्रहण करते हैं भोजन' : प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में 13 अखाड़ों के साधु-संतों के साथ ही देश-विदेश के संत महंत आये हुए हैं. मेला क्षेत्र में सैकड़ों स्थानों पर भंडारे चल रहे हैं, जहां अखाड़ों में हजारों लोगों को एक साथ बैठाकर उन्हें भोजन प्रसाद खिलाया जा रहा है, वहीं देश के मशहूर उद्योगपति गौतम अडानी इस्कॉन के सहयोग से प्रतिदिन 1 लाख से अधिक लोगों को भोजन ग्रहण करवा रहे हैं. जूना अखाड़े के संत माधवानंद महाराज बताते हैं कि तीर्थराज प्रयागराज में आने वाले हर भक्त श्रद्धालु अन्नदान जरूर करते हैं. उनका कहना है कि अन्नदान करने से भगवान शिव और माता अन्नपूर्णा की कृपा मिलती है. अन्नपूर्णा माता को प्रसन्न करने के लिए हर माघ महीने में भंडारा चलाते हैं. उनका कहना है कि सभी लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार भंडारा चलाने के साथ अन्नदान करते हैं.

उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आने वाले अखाड़े अपने शिविरों में प्रतिदिन भंडारे का आयोजन करते हैं. उनके यहां भंडारे में एक बार में हजारों लोग एक साथ बैठकर भोजन का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इतना ही नहीं अखाड़े में भोजन करने के बाद दक्षिणा भी दी जाती है. अखाड़े के भंडारे में भोजन प्रसाद ग्रहण करने के बाद साधुओं को उनके पद के अनुसार दक्षिणा दी जाती है, जिसे संतों की भाषा में दांत घिसाई कहा जाता है. दक्षिणा संतों को उनके पद के अनुसार दी जाती है, जिसमें 100 रुपये से लेकर 5100 रुपये तक की दक्षिणा दी जाती है. महाकुंभ में अखाड़ा और नागा सन्यासी सबके आकर्षण का केंद्र होते हैं. महाकुंभ जैसे आयोजन में अखाड़े के साधु संत भी पुण्य कमाने के लिए आते हैं और यही कारण है कि अखाड़ों के शिविर में भी तमाम तरह की धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं. सभी अखाड़ों में सुबह शाम हर दिन भंडारा चलाया जाता है.

श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव महंत रवींद्र पुरी का कहना है कि उनके अखाड़े के शिविर में प्रतिदिन में हजारों लोग भोजन करते हैं और भोजन के साथ दक्षिणा प्राप्त करते हैं. उनका कहना है कि अखाड़े महाकुम्भ में अपनी सभी कमाई को खर्च करने आते हैं, यहां पर संगम की धरती में दान कर पुण्य अर्जित करने आते हैं. यही नहीं उनका यह भी कहना है कि राजा हर्षवर्धन भी अखाड़ों की इसी परंपरा का पालन करते हुए जब महाकुंभ में आते थे तो अपना सब कुछ दान करके खाली हाथ वापस जाते थे. अखाड़े को एक कुंभ से दूसरे कुंभ के बीच में जो भी मठ-मंदिर से आय अर्जित होती है, उसे खर्च कर पुण्य कमाने महाकुंभ मेला में आते हैं. उन्होंने बताया कि अखाड़े के भंडारे में भोजन प्रसाद ग्रहण करने के बाद साधुओं को उनके पद के अनुसार दक्षिणा दी जाती है, जिसे संतों की भाषा में दांत घिसाई कहा जाता है.




महाकुंभ की धरती प्रयागराज में दान पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. सभी तीर्थों का राजा होने की वजह से यहां पर किए गए दान पुण्य का फल कई गुना अधिक मिलता है, क्योंकि प्रयागराज सभी तीर्थों का राजा है, इसलिए तीर्थ राज प्रयागराज में अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही यहां पर किये गए दान पुण्य ब्रह्म, विष्णु, महेश के साथ अन्नपूर्णा माता और मां गंगा की भी कृपा बनती है. इसी कारण प्रयागराज में अन्नदान कर भक्त अन्नपूर्णा माता को प्रसन्न कर उनका आशीष प्राप्त करते हैं, जिससे यहां भंडारा करने वाले हर भक्तों का खुद का भंडार अन्नपूर्णा माता की कृपा से भरा रहता है.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ 15वां दिन; भारत के सिद्धार्थ ने ग्रीस की पेनेलोप से मेले में रचाई शादी, गृह मंत्री अमित शाह भी आज संगम में लगाएंगे डुबकी - MAHA KUMBH MELA 2025

प्रयागराज : संगम की धरती पर चल रहे महाकुंभ मेले में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को खाने पीने की किसी प्रकार की दिक्कत न हो उसके लिए मेला क्षेत्र में जगह-जगह भंडारे का आयोजन हो रहा है. अखाड़ों और उनके साधु संतों के साथ ही कल्पवासी, स्नानार्थी अन्नदान करते हैं. मान्यता है कि तीर्थराज प्रयागराज में अन्नदान करना, भोजन करवाना, अत्यंत पुण्यदायी और अक्षय फल प्रदान करने वाला होता है. इसी कारण माघ महीने में चल रहे महाकुंभ मेले में अखाड़ों से लेकर उद्योगपति और आम श्रद्धालु तक अन्नदान करने के लिए भंडारा चलवा रहे हैं.

अखाड़ों के शिविरों में भंडारे का आयोजन (Video credit: ETV Bharat)

'एक लाख से अधिक लोग ग्रहण करते हैं भोजन' : प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ मेले में 13 अखाड़ों के साधु-संतों के साथ ही देश-विदेश के संत महंत आये हुए हैं. मेला क्षेत्र में सैकड़ों स्थानों पर भंडारे चल रहे हैं, जहां अखाड़ों में हजारों लोगों को एक साथ बैठाकर उन्हें भोजन प्रसाद खिलाया जा रहा है, वहीं देश के मशहूर उद्योगपति गौतम अडानी इस्कॉन के सहयोग से प्रतिदिन 1 लाख से अधिक लोगों को भोजन ग्रहण करवा रहे हैं. जूना अखाड़े के संत माधवानंद महाराज बताते हैं कि तीर्थराज प्रयागराज में आने वाले हर भक्त श्रद्धालु अन्नदान जरूर करते हैं. उनका कहना है कि अन्नदान करने से भगवान शिव और माता अन्नपूर्णा की कृपा मिलती है. अन्नपूर्णा माता को प्रसन्न करने के लिए हर माघ महीने में भंडारा चलाते हैं. उनका कहना है कि सभी लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार भंडारा चलाने के साथ अन्नदान करते हैं.

उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आने वाले अखाड़े अपने शिविरों में प्रतिदिन भंडारे का आयोजन करते हैं. उनके यहां भंडारे में एक बार में हजारों लोग एक साथ बैठकर भोजन का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इतना ही नहीं अखाड़े में भोजन करने के बाद दक्षिणा भी दी जाती है. अखाड़े के भंडारे में भोजन प्रसाद ग्रहण करने के बाद साधुओं को उनके पद के अनुसार दक्षिणा दी जाती है, जिसे संतों की भाषा में दांत घिसाई कहा जाता है. दक्षिणा संतों को उनके पद के अनुसार दी जाती है, जिसमें 100 रुपये से लेकर 5100 रुपये तक की दक्षिणा दी जाती है. महाकुंभ में अखाड़ा और नागा सन्यासी सबके आकर्षण का केंद्र होते हैं. महाकुंभ जैसे आयोजन में अखाड़े के साधु संत भी पुण्य कमाने के लिए आते हैं और यही कारण है कि अखाड़ों के शिविर में भी तमाम तरह की धार्मिक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं. सभी अखाड़ों में सुबह शाम हर दिन भंडारा चलाया जाता है.

श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव महंत रवींद्र पुरी का कहना है कि उनके अखाड़े के शिविर में प्रतिदिन में हजारों लोग भोजन करते हैं और भोजन के साथ दक्षिणा प्राप्त करते हैं. उनका कहना है कि अखाड़े महाकुम्भ में अपनी सभी कमाई को खर्च करने आते हैं, यहां पर संगम की धरती में दान कर पुण्य अर्जित करने आते हैं. यही नहीं उनका यह भी कहना है कि राजा हर्षवर्धन भी अखाड़ों की इसी परंपरा का पालन करते हुए जब महाकुंभ में आते थे तो अपना सब कुछ दान करके खाली हाथ वापस जाते थे. अखाड़े को एक कुंभ से दूसरे कुंभ के बीच में जो भी मठ-मंदिर से आय अर्जित होती है, उसे खर्च कर पुण्य कमाने महाकुंभ मेला में आते हैं. उन्होंने बताया कि अखाड़े के भंडारे में भोजन प्रसाद ग्रहण करने के बाद साधुओं को उनके पद के अनुसार दक्षिणा दी जाती है, जिसे संतों की भाषा में दांत घिसाई कहा जाता है.




महाकुंभ की धरती प्रयागराज में दान पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. सभी तीर्थों का राजा होने की वजह से यहां पर किए गए दान पुण्य का फल कई गुना अधिक मिलता है, क्योंकि प्रयागराज सभी तीर्थों का राजा है, इसलिए तीर्थ राज प्रयागराज में अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही यहां पर किये गए दान पुण्य ब्रह्म, विष्णु, महेश के साथ अन्नपूर्णा माता और मां गंगा की भी कृपा बनती है. इसी कारण प्रयागराज में अन्नदान कर भक्त अन्नपूर्णा माता को प्रसन्न कर उनका आशीष प्राप्त करते हैं, जिससे यहां भंडारा करने वाले हर भक्तों का खुद का भंडार अन्नपूर्णा माता की कृपा से भरा रहता है.

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Last Updated : Jan 27, 2025, 1:33 PM IST
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