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30 सालों में कितना बदला बेलागंज? RJD के गढ़ में उपचुनाव पर ग्राउंड रिपोर्ट

बिहार के 4 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है. बेलागंज विधानसभा सीट भी शामिल है. इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है.

Belagnj byelection
बेलागंज विधानसभा क्षेत्र. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 26, 2024, 7:29 PM IST

गया: बिहार में चार विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होना है. नामांकन की प्रक्रिया समाप्त हो गयी. प्रचार-प्रसार अभियान जोर पकड़ रहा है. सभी चार सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के अलावा जन सुराज ने भी अपना प्रत्याशी उतारा है. जिले के जिन दो विधानसभा में उपचुनाव होना है, यहां इस बार त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना है. बेलागंज विधानसभा क्षेत्र, राजद का गढ़ माना जाता है. लगभग 30 वर्षों से डॉ सुरेंद्र प्रसाद यादव क्षेत्र का नेतृत्व कर रहे हैं.

त्रिकोणीय है मुकाबलाः जहानाबाद संसदीय क्षेत्र से सुरेंद्र यादव के सांसद बनने के बाद बेलागंज क्षेत्र में उपचुनाव हो रहा है. राजद ने सुरेंद्र यादव के बेटा डॉ विश्वनाथ यादव को प्रत्याशी बनाया है. जदयू ने पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी को प्रत्याशी बनाया है. दोनों यादव जाति से आते हैं. पहली बार चुनाव लड़ रहा जन सुराज ने मोहम्मद अमजद को अपना प्रत्याशी बनाया है. लेकिन, इस वक्त सवाल यह कि पिछले 30 वर्षों में बेलागंज विधानसभा क्षेत्र कितना बदला है?

बेलागंज विधानसभा क्षेत्र की ग्राउंड रिपोर्ट. (ETV Bharat)

विकास भी मुद्दा हैः इस सवाल पर क्षेत्र की जनता और जिले के वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि जातीय समीकरण के साथ क्षेत्र में विकास भी मुद्दा रहा है. वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर अब्दुल कादिर कहते हैं कि बिहार में जो चुनाव होता है वह कास्ट बेस पर आधारित होता है. यहां विकास का मुद्दा सेकेंडरी होता है. अभी भी जातीय समीकरण जिसके फेवर में होगा, जीत उसी की होती है. जहां तक बेलगंज क्षेत्र में विकास और बदलाव की बात है तो, यह सही है कि दूसरे विधायक की तुलना में सुरेंद्र यादव ने अपने क्षेत्र को ज्यादा बेहतर ढंग से सींचा है.

"वैसे तो बिहार में सड़क और बिजली में सभी जगहों पर सुधार हुआ है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में अन्य जगहों की तुलना में कुछ पहले ही यह सब विकास के कार्य हुए हैं."- प्रोफेसर अब्दुल कादिर, वरिष्ठ पत्रकार

मुस्लिम प्रत्याशी कितना डालेगा असरः प्रोफेसर अब्दुल कादिर कहते हैं कि 1990 से 2000 के बीच के चुनाव में एक तरह का पैटर्न मिल जाएगा. परंतु 2000 के बाद थोड़ा फर्क आया है. कोई अल्पसंख्यक प्रत्याशी बेलागंज क्षेत्र के चुनाव मैदान में आता है, तब समीकरण में थोड़ा बदलाव हुआ है. माना जाता है कि मुसलमान, राजद के साथ जाता है, वहां पर थोड़ा फर्क आता है. लेकिन, बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों का वोट नहीं ले पाए. मुस्लिम प्रत्याशी ज्यादा प्रभाव डालेगा यह कहना सही नहीं होगा.

जदयू का स्मार्ट फैसलाः बेलागंज विधानसभा चुनाव में 2000 के बाद यह पहला अवसर है जब एनडीए की ओर से जदयू ने राजद प्रत्याशी की ही जाति के प्रत्याशी को टिकट दिया है. यह कितना प्रभावशाली होगा और जाति समीकरण में कितना फीट बैठेगा यह तो समय बताएगा. लेकिन अगर प्रभाव डालता है तो 30 वर्षों का किला ध्वस्त भी हो सकता है. बेलागंज में राजद और जदयू के बीच ही मुकाबला होगा. जीत इस पर भी निर्भर होगा कि प्रशांत किशोर के प्रत्याशी का क्या प्रभाव होता है.

सड़क बिजली में हुई सुधारः बेलागंज के रघुनंदन शर्मा, अभय पांडे, राम आश्रय सिंह कहते हैं कि क्षेत्र में सड़क बिजली में सुधार हुई है. इनके अनुसार विकास के कार्य अभी अधूरे ही हैं. रोजगार की एक बड़ी समस्या है, लेकिन सड़क बिजली, गली, नाली, शिक्षा और चिकित्सा में अच्छा काम हुआ है. विधि व्यवस्था भी इस क्षेत्र की ठीक ही है. बता दें कि बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में कुल 35 पंचायत हैं. बेलागंज ब्लॉक में 19 पंचायत हैं जबकि नगर ब्लॉक में 16 पंचायत हैं. बेलागंज क्षेत्र में गया नगर निगम के तीन वर्ड भी आते हैं.

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त्रिकोणीय है मुकाबलाः जहानाबाद संसदीय क्षेत्र से सुरेंद्र यादव के सांसद बनने के बाद बेलागंज क्षेत्र में उपचुनाव हो रहा है. राजद ने सुरेंद्र यादव के बेटा डॉ विश्वनाथ यादव को प्रत्याशी बनाया है. जदयू ने पूर्व एमएलसी मनोरमा देवी को प्रत्याशी बनाया है. दोनों यादव जाति से आते हैं. पहली बार चुनाव लड़ रहा जन सुराज ने मोहम्मद अमजद को अपना प्रत्याशी बनाया है. लेकिन, इस वक्त सवाल यह कि पिछले 30 वर्षों में बेलागंज विधानसभा क्षेत्र कितना बदला है?

बेलागंज विधानसभा क्षेत्र की ग्राउंड रिपोर्ट. (ETV Bharat)

विकास भी मुद्दा हैः इस सवाल पर क्षेत्र की जनता और जिले के वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि जातीय समीकरण के साथ क्षेत्र में विकास भी मुद्दा रहा है. वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर अब्दुल कादिर कहते हैं कि बिहार में जो चुनाव होता है वह कास्ट बेस पर आधारित होता है. यहां विकास का मुद्दा सेकेंडरी होता है. अभी भी जातीय समीकरण जिसके फेवर में होगा, जीत उसी की होती है. जहां तक बेलगंज क्षेत्र में विकास और बदलाव की बात है तो, यह सही है कि दूसरे विधायक की तुलना में सुरेंद्र यादव ने अपने क्षेत्र को ज्यादा बेहतर ढंग से सींचा है.

"वैसे तो बिहार में सड़क और बिजली में सभी जगहों पर सुधार हुआ है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में अन्य जगहों की तुलना में कुछ पहले ही यह सब विकास के कार्य हुए हैं."- प्रोफेसर अब्दुल कादिर, वरिष्ठ पत्रकार

मुस्लिम प्रत्याशी कितना डालेगा असरः प्रोफेसर अब्दुल कादिर कहते हैं कि 1990 से 2000 के बीच के चुनाव में एक तरह का पैटर्न मिल जाएगा. परंतु 2000 के बाद थोड़ा फर्क आया है. कोई अल्पसंख्यक प्रत्याशी बेलागंज क्षेत्र के चुनाव मैदान में आता है, तब समीकरण में थोड़ा बदलाव हुआ है. माना जाता है कि मुसलमान, राजद के साथ जाता है, वहां पर थोड़ा फर्क आता है. लेकिन, बड़ी संख्या में अल्पसंख्यकों का वोट नहीं ले पाए. मुस्लिम प्रत्याशी ज्यादा प्रभाव डालेगा यह कहना सही नहीं होगा.

जदयू का स्मार्ट फैसलाः बेलागंज विधानसभा चुनाव में 2000 के बाद यह पहला अवसर है जब एनडीए की ओर से जदयू ने राजद प्रत्याशी की ही जाति के प्रत्याशी को टिकट दिया है. यह कितना प्रभावशाली होगा और जाति समीकरण में कितना फीट बैठेगा यह तो समय बताएगा. लेकिन अगर प्रभाव डालता है तो 30 वर्षों का किला ध्वस्त भी हो सकता है. बेलागंज में राजद और जदयू के बीच ही मुकाबला होगा. जीत इस पर भी निर्भर होगा कि प्रशांत किशोर के प्रत्याशी का क्या प्रभाव होता है.

सड़क बिजली में हुई सुधारः बेलागंज के रघुनंदन शर्मा, अभय पांडे, राम आश्रय सिंह कहते हैं कि क्षेत्र में सड़क बिजली में सुधार हुई है. इनके अनुसार विकास के कार्य अभी अधूरे ही हैं. रोजगार की एक बड़ी समस्या है, लेकिन सड़क बिजली, गली, नाली, शिक्षा और चिकित्सा में अच्छा काम हुआ है. विधि व्यवस्था भी इस क्षेत्र की ठीक ही है. बता दें कि बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में कुल 35 पंचायत हैं. बेलागंज ब्लॉक में 19 पंचायत हैं जबकि नगर ब्लॉक में 16 पंचायत हैं. बेलागंज क्षेत्र में गया नगर निगम के तीन वर्ड भी आते हैं.

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