बेगूसराय : 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है. बिहार में भी सभी सियासी दल पूरी ताकत के साथ मैदान में उतर चुके हैं. एनडीए हो या महागठबंधन, सभी बढ़-चढ़कर दावे कर रहे हैं.जाहिर है लोकसभा सीटों के सियासी समीकरण की चर्चा जोर पकड़ने लगी है. इस क्रम में आज हम आपको बिहार की एक हाई प्रोफाइल सीट बेगूसराय लोकसभा सीट का सियासी समीकरण और इतिहास बताने जा रहे हैं.
बेगूसराय सीट का इतिहासःभूमिहारों के गढ़ माने जाने वाले इस लोकसभा सीट पर 2009 को छोड़ कर हर बार भूमिहार जाति के लोगों का ही कब्जा रहा है.1952 से 2019 तक इस लोकसभा सीट के लिए कुल 17 चुनाव हुए हैं. जिनमें 9 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है तो एक बार सीपीआई, एक बार जनता पार्टी, एक बार जनता दल, एक बार निर्दलीय, दो बार जेडीयू और दो बार बीजेपी ने जीत का परचम लहराया है. पिछले तीन चुनावों पर नजर डालें तो 2009 में एनडीए के बैनर तले जेडीयू ने तो 2014 और 2019 में बीजेपी ने अपना कमल खिलाया है.
NDA Vs INDI गठबंधन में मुकाबला: बेगूसराय लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव में NDA और महागठबंधन के कैंडिडेट के बीच मुकाबला हुआ था जिसमें बाजी NDA के हाथ लगी थी.इस बार भी लोकसभा चुनाव में बेगूसराय सीट पर NDA और INDI गठबंधन के बीच मुकाबला होगा. जहां तक NDA की बात है ये सीट बीजेपी के कोटे में आई है वहीं INDI गठबंधन की ओर से ये सीपीआई के खाते में आई है.
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की दावेदारी मजबूतः NDA के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे के बाद ये सीट बीजेपी के हिस्से में आई है. ऐसे में इस बार भी पिछले चुनाव में बंपर वोट से जीत हासिल कर केंद्रीय मंत्री बने मौजूदा सांसद गिरिराज सिंह NDA की ओर से इस सीट के लिए सबसे बड़े दावेदार हैं. इसके अलावा बीजेपी से राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा की उम्मीदवारी की चर्चा भी जोर पकड़ रही है.
INDI गठबंधन से अवधेश कुमार रायः पिछले चुनाव में कांग्रेस दूसरे नंबर पर जरूर रही थी लेकिन हार का अंतर 4 लाख से भी ज्यादा था. ऐसे में इस बार INDI गठबंधन ने बछवाड़ा के पूर्व विधायक अवधेश कुमार राय को मैदान में उतार दिया है.हालांकि इस सीट पर कांग्रेस के कन्हैया कुमार के चुनाव लड़ने की जोरदार चर्चा थी. पिछली बार कन्हैया कुमार ने सीपीआई कैंडिडेट के रूप में चुनाव लड़ा था.
बेगूसराय लोकसभा सीट : बेगूसराय लोकसभा सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, लेकिन पिछले कई चुनाव से कांग्रेस अपनी दमदार उपस्थिति नहीं दर्ज करा पाई है. पिछले तीन चुनावों पर नजर डालें तो 2009 में NDA के बैनर तले जेडीयू के मोनाजिर हसन ने सीपीआई के शत्रुघ्न प्रसाद सिंह को हराकर जीत हासिल की. 2014 में जेडीयू और बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा और इस बार बेगूसराय सीट पर कमल खिला. बीजेपी के उम्मीदवार भोला प्रसाद सिंह ने आरजेडी के तनवीर हसन को मात दी. 2019 में बीजेपी ने सफलता की कहानी फिर दोहराई, हालांकि इस बार चेहरे बदले हुए थे. 2019 में बीजेपी के गिरिराज सिंह ने सीपीआई के कन्हैया कुमार को बड़े अंतर से मात दे दी.
बिहार की औद्योगिक और सांस्कृतिक राजधानी बेगूसराय : बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह का कर्मस्थल और राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्मस्थल रहे बेगूसराय को कभी बिहार की औद्योगिक और सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता था. इस लोकसभा सीट के तहत 7 विधानसभा सीटें आती हैं. बेगूसराय, साहेबपुरकमाल, बखरी, मटिहानी, तेघरा, चेरिया बरियारपुर और बछवाड़ा. जिले में देश की प्रमुख रिफाइनरी में से एक बरौनी तेल शोधक कारखाना, खाद कारखाना, एनटीपीसी, सहित कई छोटे-बड़े कारखाने हैं.
दिनकर की धरती बेगूसराय : जिले का सिमरिया घाट बिहार के प्रमुख धार्मिक स्थलों में एक है, जहां देशभर के लोग धार्मिक अनुष्ठान के लिए आते हैं. सिमरिया में ही जन्म लेने वाले राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी लेखनी से साहित्य को नई ऊंचाई दी. करीब पांच हजार एकड़ में फैला जिले का काबर झील प्रकृति का एक अनमोल उपहार है .इस काबर झील मे देश-विदेश से आनेवाले पक्षी पर्यटकों को बेहद ही आकर्षित करते हैं.
बेगूसराय में जातिगत समीकरण : बेगूसराय में मतदाताओं की कुल संख्या करीब 21 लाख 41हजार 827 है. जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 11 लाख 28 हजार 863 और महिला मतदताओं की संख्या 10 लाख 12 हजार 896 है. बात जातीय समीकरण की करें तो अनुमानित आंकड़ों के हिसाब से यहां सबसे ज्यादा 4 लाख 75 हजार भूमिहार मतदाता हैं. वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब ढाई लाख, कुर्मी-कुशवाहा की संख्या करीब 2 लाख और यादव मतदाताओं की संख्या डेढ़ लाख के आसपास है.कुल मिलाकर इस लोकसभा सीट की राजनीति भूमिहार जाति के इर्द-गिर्द ही घूमती है. यही कारण है कि 2009 में जेडीयू के मोनाजिर हसन को छोड़कर अभी तक सभी सांसद भूमिहार जाति से ही हुए हैं.
इस बार कौन मारेगा बाजी?:बेगूसराय संसदीय सीट पर हुए कई चुनावों को देख चुके वरिष्ठ पत्रकार शालिग्राम सिंह का कहना है कि इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि फिलहाल इस सीट पर NDA बेहतर स्थिति में है क्योंकि महागठबंधन बिखरा हुआ है. इसके अलावा पीएम मोदी के प्रति इलाके के लोगों में एक खास लगाव दिख रहा है. वहीं स्थानीय सियासत को बारीकी से समझने वाले संजय कुमार का कहना है कि ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है जब जनता विकास और रोजगार के मुद्दे पर अपना जनप्रतिनिधि चुनेगी.
लोगों की क्या है राय? : क्षेत्र की जनता की बात करें तो अधिकांश लोग खुलकर अपनी पसंद बताने से बच रहे हैं, हालांकि कई लोग अपनी पसंद जाहिर भी कर रहे हैं. वहीं पिछली बार इस सीट पर जीत का परचम लहरानेवाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का दावा है कि श्रीकृष्ण सिंह के कार्यकाल के बाद इलाके में जो विकास थम गया था उसको पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नयी रफ्तार मिली है और निश्चित रूप से इसका लाभ आनेवाले चुनाव में पार्टी को मिलेगा.