कांकेर: बस्तर के किसान अब हाईटेक खेती की ओर कदम बढ़ा रहे है. कांकेर और कोंडागांव जिले के किसान नवाचार के तहत विदेशी सब्जी उगाने में रूचि ले रहे हैं. इससे उन्हें काफी मुनाफा भी हो रहा है. आमदनी बढ़ने से किसान खुशहाल हैं. इसके साथ ही खेती की नई नई तकनीक भी उन्हें सीखने को मिल रही है, जो उनके लिए भविष्य में खेती करने के लिहाज से काफी अहम है.
इजराइल और जापानी तकनीक से फायदा: इन दिनों इजराइल और जापान में पाये जाने वाले विदेशी फूलगोभी को बस्तर में लोग काफी पसंद कर रहे हैं. यह पहली बार है जब विदेशी प्रजाति की फूलगोभी कांकेर के बाजार में बिक रही है. हालांकि कोंडागांव से रोज एक क्विंटल हरे, पीले और बैगनी रंग की गोभी को कई शहरों भेजा जा रहा है. जहां के बाजारों में इन गोभी की खपत हो रही है. हरे, पीले और बैगनी रंग के गोभी की फसल लगभग दो महीने के भीतर तैयार हो रहे हैं.
200 रुपए किलो में बिक रही रंगीन गोभी: किसान भुवन बैध ने बताया, "लोग भी नीली-पीली गोभी को 200 रुपए किलो दाम पर भी खरीद रहे हैं. मुझे काफी मुनाफा हो रहा है. अभी यहां से पीली नीली गोभी की खेप जगदलपुर, दंतेवाड़ा के अलावा ओडिशा और रायपुर तक जा रही है. अगले साल इसकी पैदावार और अधिक क्षेत्र में बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं."
हम इसी साल से रंगीन गोभी की पैदावार कर रहे हैं. अभी हम लोग 3 एकड़ में खेती कर रहे हैं और इसे 200 रुपए प्रति किलो में बेच रहे हैं. जबकि सामान्य गोभी 40 रुपए प्रतिकिलो में बिक रही है. यहां पहली बार रंगीन गोभी देख लोग हाथों हाथ इनकी खरीदी कर रहे हैं. - भुवन बैध, सोनाबाल निवासी
बस्तर की भूमि गोभी की खेती के लिए अनुकूल: कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर किरण नागराज ने ईटीवी भारत को बताया कि, "यह रंग बिरंगी गोभी मोडिफाई जेनेटीक है. इसकी फसल इजराइल और जापान में होती है. पीला फूलगोभी का नाम कैरोटीन और बैगनी फूलगोभी का नाम वेलेंटीना है. इसमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा पाई जाती है. बैगनी किस्म की फूलगोभी को पुसा पर्परल क्वालीफ्लावर कहा जाता है. इसमें एंथोसाइनिंग की मात्रा अधिक पाई जाती है. इसी वजह से यह पर्पल कलर में दिखती है. इसमें विटामिन ए की मात्रा ज्यादा पाई जाती है. ये प्राकृतिक गोभी है, जिसमें हाइब्रिड डाइजेसन किया गया है. ये गोभी स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है.
कोंडागांव के किसान अब इसकी खेती कर रहे हैं. इसके लिए यहां की भूमि अनुकूल है. गोभी की फसल 60 दिन में तैयार हो जाती है. इसकी खेती के लिए और भी किसानों को प्रेरित कर रहे हैं. जिससे जिले में अधिक से अधिक पैदावार हो सके और किसानों को इससे अधिक लाभ मिले. - डॉ किरण नागराज, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र
शकरकंद के नये किस्म की भी खेती: इसके साथ ही इंदिरा मधुर नया किस्म का शकरकंद लगाया गया है. जिसे पोटगांव के किसानों ने कृषि विज्ञान केंद्र और बेवरती के गोठान की प्रदर्शनी में लगाया है. यह एक गाजर की तरह दिखता है. इसमें भी कैरोटीन की मात्रा ज्यादा होती है.