बस्तर: बस्तर दशहरा की शुरुआत बीते चार अगस्त 2024 से हो चुकी है. अब तक विश्व प्रसिद्ध इस दशहरे में तीन बड़ी रस्में पाठजात्रा, डेरी गढ़ई और बारसी उतारनी निभाई जा चुकी है. 2 अक्टूबर बुधवार के दिन काछनगादी रस्म को विधि विधान से पूरा किया जा जाएगा. जगदलपुर के भंगाराम चौक पर इस विधि विधान को संपन्न कराया जाएगा. काछनगादी रस्म की तैयारियां जोरों पर है. काछनगुड़ी में बस्तर दशहरा के काछनगादी रस्म को पूरा किया जाएगा.
काछनगादी रस्म निभाएंगी पीहू: काछनगादी रस्म को आठ साल की बच्ची पीहू कांटे के झूले में झूलकर निभाएंगी. बीते तीन वर्षों से यह बच्ची इस रस्म को निभाती आ रहीं हैं. परंपराओं और मान्यताओं के मुताबिक आश्विन अमावस्या के दिन काछन देवी जिन्हें रण की देवी कहा जाता है. पनका जाति की कुंवारी की यह देवी सवारी करती है. जिसके बाद देवी को कांटे के झूले में लिटाकर झुलाया जाता है.
काछनगादी के दौरान क्या होता है ?: इस दिन बस्तर राजपरिवार, दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी, मांझी चालकी, दशहरा समिति के सदस्य इस रस्म में शामिल होते हैं. सभी आतिशबाजी और मुंडाबाजा के साथ काछन गुड़ी तक पहुंचते हैं. उसके बाद कांटों के झूले पर झूलते हुए देवी से दशहरा पर्व मनाने की अनुमति मांगी जाती है. इसके बाद देवी इशारों से अनुमति प्रदान करती है. अनुमति मिलने के बाद राजपरिवार वापस दंतेश्वरी मंदिर लौटता है.
मैं जदगलपुर दंतेश्वरी वार्ड की निवासी हूं. मेरी उम्र आठ साल है और मैं तीसरी क्लास में पढ़ती हूं. मैं यह रस्म तीन वर्षों से निभाते आ रही हूं. इस रस्म को निभाने के लिए मैं 9 दिनों का उपवास भी रखती हूं. जब यह रिस्म निभाया जाता है तो मुझे कुछ महसूस नहीं होता है, न कांटा चुभता है और न ही खून निकलता है. मुझे न ही दर्द होता है.: पीहू दास, काछनगादी रस्म निभाने वाली बालिका
9 दिनों तक उपवास करके पूजा पाठ गुड़ी में किया जाता है. इस रस्म के अदायगी के दिन कन्या को देवी चढ़ाया जाता है. बेल के कांटों से बने झूले में लिटाकर झुलाया जाता है. यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है.: भानो दास, परिजन
बस्तर दशहरा के काछनगादी रस्म को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है. इस आयोजन से जुड़े सभी लोग तैयारियों को लेकर आश्वस्त हैं. बुधवार को पूरे विधि विधान से इस रस्म को निभाया जाएगा.