बड़वानी: कुम्हार समाज इन दिनों अपनी परंपरा का निर्वाह कर रहा है. वह मिट्टी को आकार देकर दीये और गणेश-लक्ष्मी मूर्तियों का बड़ी मात्रा में निर्माण कर रहा है. कुम्हार समाज दिवाली के पर्व को देखते हुए इलेक्ट्रिक चाक से रोजाना हजारों दीये बना रहा हैं. वहीं मूर्तिकार लक्ष्मी जी की मूर्तियों को रंग-रोगन कर अंतिम रूप दे रहे हैं. बता दें कि नवरात्र प्रारंभ होने के साथ ही पूरा परिवार दीपक बनाने के काम पर लग जाता है. प्रधानमंत्री के लोकल फार वोकल के आह्वान के बाद से मिट्टी के दीयों की फिर से मांग बढ़ने लगी है.
बे-मौसम बारिश से बिगड़ा काम
मिट्टी से दीपक बनाने वाले रवि गोले ने बताया, " गणेशोत्सव से दीपक बनाने की शुरुआत करते हैं. इस बार सतत वर्षा और नवरात्रि तक बे-मौसम बारिश होने से दीपक बनाने का काम लेट से शुरू कर पाए हैं. वहीं नर्मदा में बैकवाटर अधिक होने से मिट्टी भी दोगुना भाव में खरीदनी पड़ी है. अब प्रतिदिन चाक पर मिट्टी को दीपक के आकार देने में जुटे है. चार-पांच परिवार के लोग यह काम तेजी से निपटा रहे है."
मिट्टी ही आजीविका का साधन
छोगालाल प्रजापति ने बताया, " दीपक बनाना हमारे लिए सिर्फ रस्म नहीं, बल्कि अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति का जरिया है. सीजन में दीपक निर्माण करते हैं और दीपक तैयार कर बाजार तक पहुंचाने में तीन दिन लगते है. पहले दिन मिट्टी को चाक से घुमाकर दीपक की आकृति दी जाती है. इसके बाद सूखने के लिए रखा जाता है. फिर दूसरे दिन आग में पकाया जाता है. इसके बाद तीसरे दिन बाजार में विक्रय के लिए भेजा जाता है. वहीं शेष समय में मटके, गमले, मिट्टी के बर्तन, चूल्हे आदि सामग्री बनाकर आजीविका चलाते है."
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सज चुकीं बाजार में दुकानें
दीपावली पर्व से पूर्व शहर के झंडा चौक, रणजीक चौक में दीपक, मूर्तियां व अन्य सामग्री की अस्थाई दुकानों की रौनक नजर आने लगी है. क्षेत्रीय दीपकों के साथ ही गुजरात के डिजाइन व सांचे में ढले कलरफुल दीपक भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. जहां सामान्य दीपक 20 रुपए दर्जन में मिल रहे हैं. वहीं गुजराती दीपक 40 रुपए दर्जन के भाव में बिक रहे हैं.