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स्वयंभू मां कालिका पीपल के नीचे क्यों हैं विराजित, वजह जान रह जाएंगे सन्न - Barwani Maa Kalika Temple

बड़वानी में लगभग 400 साल पहले कुएं में खुदाई के दौरान मां कालिका की प्रतिमा निकली थी. जो पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित हैं.

BARWANI MAA KALIKA TEMPLE
बड़वानी का मां कालिका मंदिर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 5, 2024, 8:45 PM IST

बड़वानी: शहर के मध्य में स्थित पाला बाजार में मां कालिका का 300 से 400 साल पुराना मंदिर है. यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है. यहां हर साल नवरात्रि में बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर क्षेत्र में बने कुएं की खुदाई के दौरान मां कालिका की प्रतिमा स्वयं भू होकर निकली थी. जिसके बाद माता को स्थापित करने के लिए मंदिर का निर्माण करवाया गया था. मंदिर के निर्माण से पहले मां की प्रतिमा को पास में लगे पीपल के पेड़ के नीचे रखा ताकि मंदिर निर्माण के बाद वहां माता को स्थापित कर सकें.

बिना छत के स्थापित है मां की प्रतिमा

जब मंदिर निर्माण का निर्माण हो गया, तब मां की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित करने के लिए दो बार प्रयास किए गए, लेकिन मां कालिका की प्रतिमा को वहां से कोई हिला न सका. इसके कारण तब से माता की प्रतिमा पेड़ के नीचे खुले में ही स्थापित है. यह जिले का पहला ऐसा माता मंदिर है, जहां प्रतिमा पेड़ के नीचे बिना छत के स्थापित है. जिससे लोगों की आस्था बढ़ गई.

पीपल के पेड़ के नीचे विराजित है मां कालिका (ETV Bharta)

कुएं के जल से ठीक होती है बीमारी

मां कालिका मंदिर समिति के अमित दुबे व हितेश अग्रवाल ने बताया, ''माता की प्रतिमा कुएं से स्वयंभू होकर निकली है. इसके कारण श्रद्धालु कुएं के जल को पवित्र मानते हैं. पहले नवरात्रि में श्रद्धालु ब्रह्म मुहूर्त में यहां स्नान कर माता का पूजन करते थे. इससे लोगों की कई गंभीर बीमारी भी ठीक होती थी. आज भी श्रद्धालु इसका जल बीमारी ठीक करने के लिए ले जाते हैं.'' समिति सदस्यों ने बताया कि "जब से माता की प्रतिमा इस कुएं से निकली है, तब से लेकर आज तक कुएं का पानी खत्म नहीं हुआ है. पूरे शहर का पानी खत्म होने पर इस कुएं से लोग पानी ले जाते थे."

यहां पढ़ें...

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एक ऐसा मंदिर जहां अलसुबह होता है गरबा, सिर पर कलश, कलश पर दीपक रख मां की आराधना

9 दिनों तक सोने चांदी के आभूषण से होता है शृंगार

समिति सदस्यों ने बताया कि "नवरात्रि के 9 दिनों तक माता का अलग-अलग तरह से श्रृंगार किया जाता है. इसमें सोने चांदी के आभूषणों से माता का विशेष श्रृंगार होता है, जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. वहीं राज परिवार की कुलदेवी होने के कारण हर साल नवरात्रि की अष्टमी पर माता के पूजन व हवन के लिए राज परिवार के सदस्य यहां आते हैं. वहां आज भी इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है."

बड़वानी: शहर के मध्य में स्थित पाला बाजार में मां कालिका का 300 से 400 साल पुराना मंदिर है. यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है. यहां हर साल नवरात्रि में बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर क्षेत्र में बने कुएं की खुदाई के दौरान मां कालिका की प्रतिमा स्वयं भू होकर निकली थी. जिसके बाद माता को स्थापित करने के लिए मंदिर का निर्माण करवाया गया था. मंदिर के निर्माण से पहले मां की प्रतिमा को पास में लगे पीपल के पेड़ के नीचे रखा ताकि मंदिर निर्माण के बाद वहां माता को स्थापित कर सकें.

बिना छत के स्थापित है मां की प्रतिमा

जब मंदिर निर्माण का निर्माण हो गया, तब मां की प्रतिमा को मंदिर में स्थापित करने के लिए दो बार प्रयास किए गए, लेकिन मां कालिका की प्रतिमा को वहां से कोई हिला न सका. इसके कारण तब से माता की प्रतिमा पेड़ के नीचे खुले में ही स्थापित है. यह जिले का पहला ऐसा माता मंदिर है, जहां प्रतिमा पेड़ के नीचे बिना छत के स्थापित है. जिससे लोगों की आस्था बढ़ गई.

पीपल के पेड़ के नीचे विराजित है मां कालिका (ETV Bharta)

कुएं के जल से ठीक होती है बीमारी

मां कालिका मंदिर समिति के अमित दुबे व हितेश अग्रवाल ने बताया, ''माता की प्रतिमा कुएं से स्वयंभू होकर निकली है. इसके कारण श्रद्धालु कुएं के जल को पवित्र मानते हैं. पहले नवरात्रि में श्रद्धालु ब्रह्म मुहूर्त में यहां स्नान कर माता का पूजन करते थे. इससे लोगों की कई गंभीर बीमारी भी ठीक होती थी. आज भी श्रद्धालु इसका जल बीमारी ठीक करने के लिए ले जाते हैं.'' समिति सदस्यों ने बताया कि "जब से माता की प्रतिमा इस कुएं से निकली है, तब से लेकर आज तक कुएं का पानी खत्म नहीं हुआ है. पूरे शहर का पानी खत्म होने पर इस कुएं से लोग पानी ले जाते थे."

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9 दिनों तक सोने चांदी के आभूषण से होता है शृंगार

समिति सदस्यों ने बताया कि "नवरात्रि के 9 दिनों तक माता का अलग-अलग तरह से श्रृंगार किया जाता है. इसमें सोने चांदी के आभूषणों से माता का विशेष श्रृंगार होता है, जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. वहीं राज परिवार की कुलदेवी होने के कारण हर साल नवरात्रि की अष्टमी पर माता के पूजन व हवन के लिए राज परिवार के सदस्य यहां आते हैं. वहां आज भी इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है."

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