कोरबा: शहर के टीपी नगर स्थित बंगाली चॉल में रहने वाले बांग्लादेशी शरणार्थी आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं. वहां रहने वाली महिलाएं सोमवार को कलेक्टर जनदर्शन में पहुंची. उन्होंने बंगाली चॉल से उठने वाली नाली की सड़ांध और सेप्टिक टैंक भर जाने के वजह से होने वाले समस्या के बारे में कलेक्टर को बताया. महिलाओं ने कहा कि पार्षद ने हमें कलेक्टर के पास भेजा और कलेक्टर अब हमें नगर निगम जाने को कह रहे हैं.
कैसे कर रहे गुजर यह हमें ही है पता: बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए बनाए गए टीपी नगर स्थित बंगाली चॉल से कलेक्ट्रेट पहुंची शीला चक्रवर्ती का कहना है कि बंगाली चॉल के छोटे-छोटे मकान में हम किस तरह से गुजारा कर रहे हैं. यह हमें ही पता है, 1982 में हमें यहां बसाया गया था. सालों पहले जो घर दिए गए थे. अब वह जर्जर होने की कगार पर हैं. जिसका पट्टा हमे नहीं मिला है. आगे पीछे दोनों तरफ से नाले बहते हैं, सेप्टिक टैंक भर चुका है. पार्षद ने इसे ठीक करने का वादा किया था. लेकिन वह अब तक अधूरा है.
वोट देते हैं, राशन कार्ड है लेकिन समस्या पर कोई ध्यान नहीं: बंगाली चॉल की ही हर्षिका मंडल कहती हैं कि सेप्टिक टैंक और नाली से जुड़ी समस्या के समाधान के लिए हम कलेक्टर के पास आए थे. हमें पार्षद ने कहा था कि कलेक्टर से मिलो. अब कलेक्टर हमें नगर निगम जाने को कह रहे हैं. समझ नहीं आ रहा है कि अब हम अपनी समस्या किसे बताएं? जिन घरों में हम रहते हैं वह काफी छोटे-छोटे हैं. छत जर्जर हो चुकी हैं. बाथरूम का छत टूट रहा है, सेप्टिक टैंक और नाली के बदबू से हम परेशान हैं. हमारे पास राशन कार्ड है, वोटर आईडी है. हम वोट तो देते हैं. लेकिन समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा.
44 साल में दूर नहीं हुआ शरणार्थियों का दर्द : बीते 4 दशकों में कोरबा पावर हब बन गया है, लेकिन बांग्लादेश से रायपुर और फिर कोरबा आए शरणार्थियों का जीवनस्तर अब भी बेहद सामान्य है. अब भी वह शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. यहां रहने वाले 40 परिवार 4 दशक पहले 1981–82 में पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है, वहां से विस्थापित होकर पहले रायपुर आए और उसके बाद कोरबा पहुंचे थे.
तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान यानि बांग्लादेश से भारत आए असंख्य बंगाली शरणार्थियों को विभाजन के बाद ओडिशा, मध्यप्रदेश और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में बसाया. वर्तमान छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़ और कोरबा जिले में अलग-अलग स्थानों पर ऐसे शरणार्थी रह रहे हैं. पूर्वी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर होने वाले अत्याचार और युद्ध के बाद उपजी विपरीत परिस्थितियों और दंगों से त्रस्त होकर शरणार्थी भारत के साथ ही रहना चाहते थे. इंदिरा गांधी ने तब इनकी पीड़ा समझी और इन्हें भारत में शरण दी थी.