वाराणसी: यदि व्यक्ति कुछ करने की ठान ले तो विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपने लक्ष्य को पूरा कर लेता है. इस बात को सार्थक करने का काम बनारस की वंध्या चौरसिया कर रही हैं. वन्ध्या चौरसिया ने उस समय बनारस में मशरूम की खेती की, जब लोग मशरूम को बहुत ज्यादा जानते भी नहीं थे, ना ही इसका प्रयोग करते थे. विपरीत वातावरण, कम संसाधन, लेकिन मजबूत हौसलों के साथ वंध्या ने बनारस के हरहुआ में मशरूम की खेती शुरुआत की.
चार गमले से उन्होंने इस खेती को आगे बढ़ाया और वर्तमान समय में 14 कमरों में वह इस खेती को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं. आज उनके साथ 24 से ज्यादा महिलाएं इस कारोबार में जुटी हुई हैं.
वंध्या ने एमएससी, B.Ed किया हुआ है, जिसमें बॉटनी उनका प्रमुख विषय रहा. जिस वजह से उन्होंने मशरूम की खेती करने का निर्णय लिया. इसके लिए बाकायदा उन्होंने दिल्ली की पूसा इंस्टीट्यूट और हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट से मशरूम की खेती की ट्रेनिंग भी ली. उसके बाद 1998 से खेती की शुरुआत की और वर्तमान समय में वह बड़ी तादाद पर मशरूम की खेती करती हैं. हर दिन लगभग 30 से 32000 रुपए की वह बिक्री करती हैं. यानी महीने में करीब 10 लाख रुपए तक की मशरूम की सेल होती है. इसमें से 2.5 लाख के आसपास वंध्या की कमाई हो जाती है. इस हिसाब से मोटा-मोटी देखें तो सालाना इनकम लगभग 30 लाख रुपए बैठती है.
1998 में की थी खेती की शुरुआत: वंध्या ने बताया कि 1998 में सबसे पहले उन्होंने इसकी शुरुआत जौनपुर से की. उसके बाद 2000 से वह बनारस में मशरूम की खेती कर रही हैं. इस प्रोडक्ट में विटामिन डी प्रोटीन सबसे ज्यादा होता है. पहले लोग मशरूम खाते नहीं थे. बहुत कम लोग मशरूम जानते थे. उस समय उनके लिए यह बिजनेस शुरू करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं था लेकिन, उन्होंने चुनौतियों का सामना किया. उन्होंने बताया कि इस बिजनेस की शुरुआत उन्होंने चार गमले से की थी और आज वह 14 अलग-अलग कमरों में मशरूम की खेती को कर रही हैं.
कैसे करती हैं मशरूम की खेती: मशरूम के लिए एयर कंडीशन की जरूरत होती है. पहले बिजली की कटौती बहुत ज्यादा होती थी. इस वजह से उन्हें मशरूम की खेती बीच में बंद करनी पड़ी थी. लेकिन, वर्तमान में कोई दिक्कत नहीं होती. वर्तमान में वह एक बीघे की खेती में हर दिन ढाई से तीन क्विंटल मशरूम की पैदावार करती हैं. उन्होंने बताया कि, मशरूम की पैदावार के अलग-अलग स्टेज होते हैं, इन स्टेज से गुजरने के बाद मशरूम को तैयार होने में कुल 12 दिन का समय लगता है.
हर दिन दो क्विंटल की होती है बिक्री: बाजार में मशरूम 130 रुपये किलो के हिसाब से बेचा जाता है. इस लिहाज से उन्हें हर दिन 32 से 35 हजार रुपए मिलते हैं और हर महीने करीब 10 लाख रुपए के मशरूम की वह आसपास के जिलों में प्रोडक्शन और बिक्री करती हैं. इनमें उन्हें हर महीने ढाई लाख रुपए का मुनाफा भी बच जाता है. वह बताती है कि मशरूम की खेती करने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से यूपी की विशेष महिला सम्मान से भी पुरुस्कृत किया गया था, उनके काम में उनका बेटा भी हाथ बंटाता है.
खेती में अब बेटा भी बटाता है हाथ: वंध्या के बेटे ने बताया कि, पहले उन्हें मां के इस काम में बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था. लेकिन धीरे-धीरे वह उनके कामों में हाथ बंटाने लगे और आज वह मार्केटिंग और प्रोडक्शन का काम देखते हैं. आज उन्हें मशरूम की खेती का काम करना अच्छा लगता है. वह हर दिन कैसे बिजनेस को आगे बढ़ाया जाए इसमें जी जान से मेहनत करते हैं. हमारा सपना है हमारा बिजनेस 12 से 14 कमरे तक पहुंच कर और भी आगे बढ़े और हम बड़े स्तर पर मशरूम की खेती कर सकें.
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