जबलपुर: धनतेरस के मौके पर भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है. वह आयुर्वेद के देवता माने जाते हैं. आयुर्वेद के जरिए इलाज की परंपरा ऋषि-मुनियों से वैद्यों को मिली थी और ये अब तक जारी है. लेकिन अब परंपरागत शिक्षा पद्धति से बने वैद्य नहीं मिल रहे हैं. बीएएमएस डॉक्टर्स आयुर्वेदिक दवाइयां नहीं लिखते, जिससे उनकी मांग नहीं होने की वजह से बहुत सी दवाइयां बंद हो चुकी हैं.
भारतीय आयुर्वेद कितना पुराना है इसकी सही-सही जानकारी किसी के पास नहीं है. आयुर्वेद की परंपरा ऋषि मुनियों से चली आ रही है. भारतीय समाज में इस परंपरा को जिंदा रखने का काम वैद्यों ने किया था. वैद्य परंपरागत तरीके से बनते थे. औम तौर पर यह काम पुस्तैनी माना जाता था या फिर कोई विद्वान गुरु अपने शिष्य को यह ज्ञान देता था. यह प्रक्रिया नाड़ी पकड़ने से शुरू होती थी और कई सालों के अनुभव के बाद कोई विशेषज्ञ बन पाता था.
ज्यादातर बीएएमएस डॉक्टर एलोपैथिक दवाइयों से कर रहे इलाज
जबलपुर के राजेश शर्मा इसी परंपरा के वैद्य हैं. राजेश का कहना है कि उनके पिताजी भी वैद्य थे लेकिन अब लगता है कि यह परंपरा खत्म होने की कगार पर है. हालांकि परंपरागत वैद्य परंपरा के स्थान पर बीएएमएस बैचलर का आयुर्वेदिक मेडिसिन और सर्जरी की पढ़ाई कराई जा रही है. लेकिन ज्यादातर बीएएमएस डॉक्टर परंपरागत तरीके से दवाइयां नहीं देते हैं बल्कि वे बाजार की कंपनियों की दवाइयां लिखते हैं.
इसके साथ ही कुछ डॉक्टर तो आयुर्वेदिक की दवा देने के बजाए एलोपैथिक दवाइयों से लोगों का इलाज कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे आयुर्वेदिक इलाज भी महंगा हो गया है. जबकि आयुर्वेद में बड़े सस्ते नुस्खों से लोग ठीक हो जाया करते थे. दवाइयों की जगह सिर्फ भोजन से भी इलाज होता था. वहीं कई ऐसी बीमारियां थीं जिनमें एलोपैथिक इलाज कारगर साबित नहीं होता. वे इलाज आयुर्वेदिक में संभव थे, लेकिन धीरे-धीरे यह ज्ञान खत्म होता जा रहा है.
आयुर्वेद पद्धति से इलाज के दौरान इस्तेमाल सैकड़ों दवाइयां बाजार में आना हुईं बंद
जबलपुर में आयुर्वेदिक दवा के कारोबारी और वैद्य सुधीर अग्रवाल का कहना है कि वे कई सालों से आयुर्वेदिक दवाएं बेच रहे हैं. उन्होंने पाया है कि ऐसी बहुत सी दवाइयां बाजार में आना ही बंद हो गई हैं जो आयुर्वेद पद्धति से इलाज के दौरान इस्तेमाल की जाती थीं. वह कहते हैं कि बीएएमएस डॉक्टर एलोपैथिक डॉक्टर की तरह ही ऐसी दवाएं लिखने लगे हैं जिन्हें कंपनियां प्रमोट करती हैं. कुछ विशुद्ध आयुर्वेदिक दवाएं बाजार में आना ही बंद हो गई हैं. धीरे-धीरे यह ज्ञान विलुप्त होता जा रहा है.
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का यह ज्ञान हजारों साल में तैयार हुआ था. इसमें हमारे आसपास की जड़ी-बूटी, पत्ती, लकड़ी, धूल, मिट्टी व पानी-हवा हर चीज से इलाज होता था. और इस प्राकृतिक इलाज का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं था. वह सस्ता और सटीक भी था. लेकिन आयुर्वेद को अवैज्ञानिक बताते हुए इतना दुष्प्रचार किया गया कि लोगों का इससे भरोसा उठने लगा. अब दोबारा उसको स्थापित करने की कोशिश की भी जा रही है लेकिन उस परंपरा का काफी ज्ञान विलुप्त हो चुका है.