बालोद : जिले के ग्राम कमकापार में बच्चों के माता-पिता विद्यालय बंद करने की मांग कर रहे हैं. इस मांग की वजह कमकापार का जर्जर सरकारी स्कूल भवन हैं. माता-पिता बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. इसलिए अब विद्यालय बंद करने की मांग उठ रही हैं. ग्रामीण बीते दिनों हुई बारिश से भवन में करंट फैलने की आशंका से भी चिंतित है. हालांकि, सुरक्षा के लिए विद्यालय को तिरपाल से ढंका जरूर गया है, लेकिन पैरेंट्स किसी अप्रिय घटना को लेकर डरे हुए हैं.
तिरपाल पर टिकी है शिक्षा व्यवस्था : यह वाकया बालोद जिले के लोहारा ब्लॉक में ग्राम कमकापार की है. ग्रामीण चुमेश कुमार ने बताया, "हायर सेकेण्डरी स्कूल का संचालन लगभग 22 सालों से हो रहा है. इस स्कूल भवन के 4 कमरों में कक्षा 9वीं से 12वीं तक का संचालन किया जा रहा है. लेकिन दो दशक पुराना यह स्कूल भवन अब पूरी तरह जर्जर हो गया है. इसीलिए ग्रामवासी और पालकों की राय से इस जर्जर विद्यालय को बंद करने की सहमति बनी है."
"इस जर्जर शाला भवन की छत से बरसात का पानी टपक रहा है. साथ ही इसकी छत का प्लास्टर भी कभी भी गिरते रहता है. इस वजह से बच्चों का अपनी कक्षा में बैठना मुश्किल है. पानी टपकने की वजह से भवन की बिजली भी खराब हो चुकी है. बच्चों को किसी भी समय करंट लगने की संभावना है. हमारे बच्चे इस स्कूल में सुरक्षित नहीं हैं. इसीलिए इस जर्जर विद्यालय को बंद कराने पर सहमति बनी है." - चुमेश कुमार, स्थानीय ग्रामीण
नए स्कूल भवन को लेकर प्रशासन गंभीर नहीं : ग्रामीणों के मुताबिक, पहले कई बार नवीन शाला भवन निर्माण को लेकर पत्र भेजा गया, लेकिन बच्चों के हित के लिए शासन-प्रशासन गंभीर नहीं है. विधायक से लेकर मंत्री तक ग्रामीण दौड़ लगा चुके हैं. प्रशासन को आवेदन भी दे चुके हैं, लेकिन अब तक किसी तरह का कोई भी परिणाम सामने नहीं आया है.
"हम जानबूझकर अपने बच्चों को मौत के मुंह में तो धकेल नहीं सकते. इस जर्जर शाला भवन में विद्यालय के संचालन को तत्काल बंद करने की अनुमति प्रदान करें. ताकि हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को डर-डर कर पढ़ने को मजबूर न होना पड़े." - महेंद्र कुमार देशमुख, स्थानीय ग्रामीण
अप्रिय घटना की संभावना से डरे हुए हैं ग्रामीण : ग्रामीणों ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाया है कि इस विद्यालय को लेकर किसी तरह का कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इस वजह से बच्चों के जान पर आफत बनी हुई है. ग्रामीण कभी भी कोई अप्रिय घटना होने की संभावना से डरे हुए हैं. एक तरफ सरकार आदिवासी क्षेत्र के बच्चों की शिक्षा पर जोर देने की बात कहती है. दूसरी ओर इस तरह के वाकये बच्चों को शिक्षा से वंचित करने जैसा प्रतीत होता है.