रायपुर: हलषष्ठी का व्रत जन्माष्टमी के ठीक 2 दिन पहले मनाया जाता है. जन्माष्टमी 26 अगस्त को है. इस लिहाज से 24 अगस्त शनिवार और 25 अगस्त के दिन हलषष्ठी का व्रत मनाया जा रहा है. सनातन धर्म में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि का विशेष महत्व माना गया है. इस दिन महिलाएं व्रत रखकर पूजा करती हैं. इस दिन को बलराम जयंती के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन श्री कृष्ण भगवान के बड़े भाई बलराम जी का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन बलराम जी की भी पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि जो महिलाएं इस दिन सच्चे मन से व्रत रखकर पूजा करती है उनके संतान दीर्घायु होते हैं.
भगवान शिव का परिवार सहित पूजा: इस बारे में ज्योतिष पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी ने कहा, "भादो माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व संतान की कामना, संतान की दीर्घायु के लिए मां करती है. संतान की दीर्घायु लिए मां कठिन व्रत रखकर इस पर्व को मनाती हैं. इस पर्व में भगवान शिव का परिवार सहित पूजन किया जाता है.
पूजा का शुभ मुहूर्त: पूजा का शुभ मुहूर्त 24 अगस्त दोपहर 12 बजे से 2 बजे तक का मुहूर्त अच्छा रहेगा. पूजा का अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:6 से लेकर 12:31 तक रहेगा. सुबह 10:30 से लेकर 12:06 तक राहुकाल रहेगा. इसे छोड़कर दोपहर 12:06 से लेकर दोपहर 1:41 तक शुभ चौघड़िया है. पंचांग के अनुसार हलषष्ठी व्रत का प्रारंभ 24 अगस्त की सुबह 7:51 पर होगा और इसका समापन अगले दिन 25 अगस्त की सुबह 5:30 पर होगा.
व्रत में खास पूजा सामग्री: इस व्रत में पूजा की सामग्री में भैंस का दूध, घी, दही, गोबर, महुआ का फल, फूल और पत्ते शामिल किए जाते हैं. इसके अलावा मिट्टी के छोटे कुल्हड़, तालाब में उगा हुआ चावल, भुना हुआ चना, घी में भुना हुआ महुआ, लाल चंदन, मिट्टी का दीपक, 7 तरह के अनाज, नया वस्त्र, जनेऊ और कुश जैसी पूजा सामग्री होती है.
व्रत के दिन क्या करें:
- इस दिन व्रती महिलाएं सुबह स्नान ध्यान से निवृत होने के बाद व्रत का संकल्प लें.
- आमतौर पर यह व्रत पुत्रवती स्त्रियां ही करती हैं.
- इस दिन माताएं अपने पुत्रों की रक्षा और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए व्रत रखती हैं.
- इस व्रत में बलराम जी के साथ-साथ हल की भी पूजा की जाती है.
- इस दिन हल के द्वारा बोया हुआ अन्न और सब्जियां नहीं खानी चाहिए.
- इस दिन भैंस के दूध का सेवन किया जाता है.
- यह व्रत निराहार रखने का विधान है.
- पूजा के बाद भैंस के दूध से बने दही और महुआ को पलाश के पत्ते पर रख कर व्रती को खाना चाहिए.
- इस तरह से इस व्रत का समापन होता है.
- कहते हैं इस व्रत को करने से धन ऐश्वर्य आदि की प्राप्ति होती है.
नोट: इस खबर में प्रकाशित बातें पंडित जी द्वारा कही गई बातें है. ईटीवी भारत इसकी पुष्टि नहीं करता.