सरगुजा: गांव में बैगा और गुनिया के पास जाकर इलाज कराने वालों की आज भी कमी नहीं है. कभी झाड़ फूंक के जरिए इलाज करने वाले ये ओझा गुनी स्वास्थ्य विभाग के लिए सिरदर्द थे. आज स्वास्थ्य विभाग ने इनको बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. स्वास्थ्य विभाग से जुड़कर ये बैगा और गुनिया अब टीबी जैसी गंभीर बीमारी के खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ने को तैयार हैं. गांव में आज भी बीमार होने पर लोग डॉक्टर के पास कम और ओझा गुनी के पास ज्यादा जाते हैं. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने बीमारियों से लड़ने और लोगों तक बेहतर इलाज पहुंचाने की एक नई कवायद शुरु की है.
बैगा और गुनिया को मिली बड़ी जिम्मेदारी: दरअसल कई बार छोटी मोटी बीमारी भी लंबे वक्त तक रहने से लाइलाज बीमारी में बदल जाती है. इलाज में देरी के चलते मरीजों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है. राज्य सरकार ने अब बैगा गुनिया को स्वास्थ्य विभाग की ताकत के रुप में सामने लाने की तैयारी शुरु कर दी है. केंद्र सरकार ने भी इनको परंपरागत वैद्य की उपाधि देते हुए प्रमाणपत्र दे दिया है. अब ये बैगा गुनिया सामान्य बीमारियों का इलाज भी करेंगे और टीबी की पहचान कर मरीजों को अस्पताल तक ले जाएंगे.
टीबी की पहचान में मिलेगी मदद: स्वास्थ्य विभाग के नोडल अधिकारी कहते हैं कि टीबी की शुरुआत सामान्य खांसी से होती है. अगर यही खांसी लंबे वक्त तक रहे तो टीबी होने का खतरा बढ़ सकता है. गांव के बैगा और गुनिया अब ऐसे लोगों की पहचान करेंगे और उनको इलाज के लिए अस्पताल ले जाएंगे. सरकार टीबी बीमारी को जड़ से खत्म करने के लिए कार्यक्रम भी चला रही है. कई मरीज ऐसे भी होते हैं जो अपनी बीमारी को लेकर गंभीर नहीं होते हैं. अब बैगा और गुनिया के पास गांव के जो भी लोग इलाज कराने आएंगे उनकी पूरी रिपोर्ट तैयार होगी जो स्वास्थ्य विभाग के पास पहुंचेगी.
राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम: नोडल अधिकारी डॉ. शैलेन्द्र गुप्ता बताते हैं कि हमारे लगातार मोटिवेशन के बाद भी क्षय रोग के मरीज सामने नहीं आ रहे हैं. जिसके बाद हमें संदेह हुआ कि मरीज आखिर कहां इलाज करा रहे हैं. पता चला कि गांव में बैगा और गुनिया जो परंपरागत वैद्य की श्रेणी में हैं उनको पास जा रहे हैं. ऐसे हालात पूरे छत्तीसगढ़ में दिखाई दिए. फिर हमने प्लान बनाया कि इन परंपरागत बैद्य को आगे लाया जाए. केंद्र सरकार ने उनको सर्टिफिकेट भी दिया है.
बैगा गुनिया परंपरागत वैद्य बनाए गए हैं. इनको टीबी की जानकारी दी गई है. इसे अपील की गई है कि जिन लोगों में लंबे वक्त से खांसी की दिक्कत है उनको स्वास्थ्य केंद्र में भेजें. जिनमें टीबी के लक्षण मिलेंगे उनका सही समय पर इलाज शुरु हो पाएगा.: डॉ शैलेंद्र गुप्ता, नोडल ऑफिसर, टीबी
सरगुजा में 50 लोगों को मिला प्रमाणपत्र: नोडल ऑफिसर के मुताबिक ये कार्यक्रम पूरे प्रदेश में शुरु किया गया है. सरगुजा में इसके परिणाम बेहतर हैं. यहां बैगा गुनिया की ओर से शुरुआत में ही 100 मरीजों को स्वास्थ्य केंद्र भेजा गया. इन मरीजों में से 8 लोगों में टीबी की पुष्टि हुई है. इतना ही नहीं एक बैगा ने तो खुद से ही प्रधानमंत्री टीबी पोषण योजना के तहत एक मरीज को गोद भी लिया है. अब मरीज का खर्च बैगा उठाएगा. परंपरागत वैद्य बनाए गए ये बैगा और गुनिया सर्दी, बुखार, जोड़, पीलिया, हड्डी जोड़ने वाली दवाएं दे पाएंगे. सरगुजा जिले में करीब 50 ऐसे लोग हैं जिनको इसके लिए प्रमाणपत्र दिया गया है.