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दिवाली में मिट्टी की मूर्तियों की डिमांड घटी, कुम्हार परिवार मायूस

एक तरफ पूरा देश दिवाली की तैयारियों में जुटा है.वहीं दूसरी ओर कुम्हार बिक्री नहीं होने से मायूस हैं.

bad condition of potters
मिट्टी की मूर्तियों की डिमांड घटी (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : 3 hours ago

रायपुर : रायपुर सहित पूरे देश में 31 अक्टूबर यानी गुरुवार के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. दीपावली के दिन घरों को रोशनी से जगमग करने के साथ ही इस दिन लक्ष्मी गणेश और सरस्वती जी की पूजा आराधना की जाती है.लेकिन गणेश, सरस्वती और लक्ष्मी जी की मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले कुम्हार परिवार बदहाली और आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं. वर्तमान समय में मिट्टी की मूर्तियों की पूछ परख पहले की तुलना में काफी घट गई है. बावजूद इसके पुश्तैनी धंधा होने के कारण कुम्हार परिवार आज भी पूरे परिवार सहित मेहनत करके मिट्टी की मूर्तियां बनाने को मजबूर हैं.


पहले जैसी नहीं रही मूर्तियों की डिमांड : मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले रमेश प्रजापति का कहना है कि पहले जैसा मिट्टी से बने इन मूर्तियों की डिमांड नहीं है. जो भी ग्राहक मिट्टी के बने इन मूर्तियों को खरीदने के लिए आते हैं. उनके द्वारा यह बोला जाता है कि यह काफी महंगी है. बाजार में इन मूर्तियों के दाम 200 रुपए से लेकर लगभग 1500 रुपए तक है. वर्तमान में अधिकांश लोग कागज पर बने गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती जी की पूजा करने लगे हैं.

मूर्तिकारों का दर्द कौन समझेगा ? (ETV BHARAT)

कई लोग फोटो फ्रेम भी खरीद कर दीपावली के दिन पूजा आराधना करते हैं. आधुनिक समय में लोग फटाका फोड़कर पैसा बर्बाद कर देते हैं, लेकिन कुम्हार परिवारों के द्वारा मेहनत से बनाई गई मिट्टी की मूर्तियां नहीं खरीदते. वर्तमान समय में लोग मिट्टी से बने मूर्तियों को उतना महत्व नहीं देते हैं-रमेश प्रजापति, मिट्टी की मूर्ति बेचने वाले

मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले मोहन चक्रधारी बताते हैं कि "मिट्टी की मूर्ति बनाने का काम परिवार के सभी लोग दिन-रात मेहनत करके करते हैं, बावजूद इसके लोगों में मिट्टी से बनी मूर्ति खरीदने में उत्साह नहीं दिख रहा है. दिनों दिन मिट्टी से बनी मूर्तियों की डिमांड कम होती जा रही है. वर्तमान में लोग फैंसी फोटो फ्रेम में बने गणेश लक्ष्मी और सरस्वती जी की पूजा करते हैं. बदलते दौर में लोग पूजा पाठ में अपना बजट भी कम कर देते हैं. बाकी दूसरी चीजों में लोग बजट नहीं देखते हैं.

मिट्टी से बनी मूर्तियों की कीमत अधिक होने की वजह से लोग कम कीमत पर कागज पर बने या फोटो फ्रेम वाली मूर्तियां खरीद लेते हैं. कुम्हार परिवारों को मेहनत के हिसाब से भी पैसा नहीं मिल पा रहा है, लेकिन पुश्तैनी धंधा होने के कारण मिट्टी की मूर्ति बनाना उनकी मजबूरी सी हो गई है- मोहन चक्रधारी, मिट्टी की मूर्ति बेचने वाले

सस्ती होने के कारण डिमांड ज्यादा : फोटो फ्रेम दुकानदार जितेंद्र कुमार बंजारी बताते हैं कि "आजकल अधिकांश लोग कागज पर बने गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ ही फोटो फ्रेम वाली मूर्तियां ले जाते हैं. इसके साथ ही दीपावली में श्रीयंत्र की भी डिमांड रहती है. लोग कम कीमत होने के कारण इसे ज्यादा खरीदते हैं. मिट्टी से बने मूर्तियों के दाम अधिक है. उनका कहना है कि बजट के हिसाब से लोगों को मिट्टी की मूर्ति के दाम अधिक होने के कारण फोटो फ्रेम वाली मूर्तियों से ही पूजा करके अपना काम चलाते हैं.

कुम्हार बिक्री नहीं होने से मायूस : दिवाली का त्यौहार हर किसी के लिए खुशियां लाता है.लेकिन इन दिनों कुम्हार बिक्री नहीं होने से मायूस हैं. कुम्हारों के मुताबिक लोग हजारों रुपए दूसरी चीजों में तो बर्बाद कर देते हैं.लेकिन पूजा पाठ में जिन चीजों का इस्तेमाल होता है उसमें कटौती कर रहे हैं.जिसका सीधा असर कुम्हारों की कमाई पर पड़ रहा है.

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रायपुर : रायपुर सहित पूरे देश में 31 अक्टूबर यानी गुरुवार के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाएगा. दीपावली के दिन घरों को रोशनी से जगमग करने के साथ ही इस दिन लक्ष्मी गणेश और सरस्वती जी की पूजा आराधना की जाती है.लेकिन गणेश, सरस्वती और लक्ष्मी जी की मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले कुम्हार परिवार बदहाली और आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं. वर्तमान समय में मिट्टी की मूर्तियों की पूछ परख पहले की तुलना में काफी घट गई है. बावजूद इसके पुश्तैनी धंधा होने के कारण कुम्हार परिवार आज भी पूरे परिवार सहित मेहनत करके मिट्टी की मूर्तियां बनाने को मजबूर हैं.


पहले जैसी नहीं रही मूर्तियों की डिमांड : मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले रमेश प्रजापति का कहना है कि पहले जैसा मिट्टी से बने इन मूर्तियों की डिमांड नहीं है. जो भी ग्राहक मिट्टी के बने इन मूर्तियों को खरीदने के लिए आते हैं. उनके द्वारा यह बोला जाता है कि यह काफी महंगी है. बाजार में इन मूर्तियों के दाम 200 रुपए से लेकर लगभग 1500 रुपए तक है. वर्तमान में अधिकांश लोग कागज पर बने गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती जी की पूजा करने लगे हैं.

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कई लोग फोटो फ्रेम भी खरीद कर दीपावली के दिन पूजा आराधना करते हैं. आधुनिक समय में लोग फटाका फोड़कर पैसा बर्बाद कर देते हैं, लेकिन कुम्हार परिवारों के द्वारा मेहनत से बनाई गई मिट्टी की मूर्तियां नहीं खरीदते. वर्तमान समय में लोग मिट्टी से बने मूर्तियों को उतना महत्व नहीं देते हैं-रमेश प्रजापति, मिट्टी की मूर्ति बेचने वाले

मिट्टी की मूर्ति बनाने वाले मोहन चक्रधारी बताते हैं कि "मिट्टी की मूर्ति बनाने का काम परिवार के सभी लोग दिन-रात मेहनत करके करते हैं, बावजूद इसके लोगों में मिट्टी से बनी मूर्ति खरीदने में उत्साह नहीं दिख रहा है. दिनों दिन मिट्टी से बनी मूर्तियों की डिमांड कम होती जा रही है. वर्तमान में लोग फैंसी फोटो फ्रेम में बने गणेश लक्ष्मी और सरस्वती जी की पूजा करते हैं. बदलते दौर में लोग पूजा पाठ में अपना बजट भी कम कर देते हैं. बाकी दूसरी चीजों में लोग बजट नहीं देखते हैं.

मिट्टी से बनी मूर्तियों की कीमत अधिक होने की वजह से लोग कम कीमत पर कागज पर बने या फोटो फ्रेम वाली मूर्तियां खरीद लेते हैं. कुम्हार परिवारों को मेहनत के हिसाब से भी पैसा नहीं मिल पा रहा है, लेकिन पुश्तैनी धंधा होने के कारण मिट्टी की मूर्ति बनाना उनकी मजबूरी सी हो गई है- मोहन चक्रधारी, मिट्टी की मूर्ति बेचने वाले

सस्ती होने के कारण डिमांड ज्यादा : फोटो फ्रेम दुकानदार जितेंद्र कुमार बंजारी बताते हैं कि "आजकल अधिकांश लोग कागज पर बने गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती के साथ ही फोटो फ्रेम वाली मूर्तियां ले जाते हैं. इसके साथ ही दीपावली में श्रीयंत्र की भी डिमांड रहती है. लोग कम कीमत होने के कारण इसे ज्यादा खरीदते हैं. मिट्टी से बने मूर्तियों के दाम अधिक है. उनका कहना है कि बजट के हिसाब से लोगों को मिट्टी की मूर्ति के दाम अधिक होने के कारण फोटो फ्रेम वाली मूर्तियों से ही पूजा करके अपना काम चलाते हैं.

कुम्हार बिक्री नहीं होने से मायूस : दिवाली का त्यौहार हर किसी के लिए खुशियां लाता है.लेकिन इन दिनों कुम्हार बिक्री नहीं होने से मायूस हैं. कुम्हारों के मुताबिक लोग हजारों रुपए दूसरी चीजों में तो बर्बाद कर देते हैं.लेकिन पूजा पाठ में जिन चीजों का इस्तेमाल होता है उसमें कटौती कर रहे हैं.जिसका सीधा असर कुम्हारों की कमाई पर पड़ रहा है.

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