Ayurvedic Medicine Bhui Neem : आज भी कहा जाता है कि इलाज के लिए जंगलों में भरपूर औषधीय पौधे मौजूद हैं. नई पीढ़ी के लोग अब इसके जानकार नहीं हैं लेकिन पुराने समय में इन्हीं जंगली जड़ी बूटियों से ही देसी तरीके से इलाज किया जाता था. धीरे-धीरे जंगल समाप्त हो रहे हैं तो इनकी जानकार पीढ़ी भी समय के साथ खत्म हो रही है. ऐसे में इन औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए प्रयास हो रहे हैं. इन्हीं औषधीय पौधों में से एक पौधा है भुई नीम. इसे कालमेघ के नाम से भी जानते हैं. यह पौधा बड़ा काम का है. पत्तियों का स्वाद थोड़ा कड़वा जरूर होता है लेकिन अच्छे से अच्छा बुखार मिनटों में उतार देता है तो कई बीमारियों की रामबाण दवा है.
आदिवासियों की है अचूक दवा
शहडोल संभाग आदिवासी बाहुल्य संभाग है. यहां जल, जंगल, जमीन, पहाड़ सब कुछ है और यही वजह है कि यहां तरह-तरह के औषधीय पौधे भी पाये जाते हैं. ऐसे औषधीय पौधे पाये जाते हैं जो बड़ी-बड़ी बीमारियों को एक झटके में ठीक कर सकते हैं. आज भी कई आदिवासी वर्ग के लोग इन्हीं जड़ी बूटियां से एक से एक बीमारियों को एक झटके में ठीक कर लेते हैं. आदिवासी समाज में कई ऐसे बुजुर्ग मिल जाते हैं जो जंगलों में एक-एक पौधे के औषधीय महत्व को बता देते हैं. इन्हीं में से एक पौधा होता है भुई नीम.
कई नाम से जाना जाता है 'भुई नीम'
नाम छोटा है लेकिन पौधा बड़े काम का है. 'भुई नीम' (Bhui Neem) को कई जगहों पर 'कालमेघ' (Kalmegh) के नाम से भी जाना जाता है तो कई जगहों पर इसे 'हरा चिरायता' (Green Chiretta) के नाम से भी जाना जाता है. आदिवासी वर्ग के बीच में यह पौधा रामबाण इलाज के लिए जाना जाता है क्योंकि इसका पूरा पंचांग ही इस्तेमाल होता है. ये पौधा कई अचूक बीमारियों को एक झटके में ठीक कर देती है. आदिवासी वर्ग के लोग धड़ल्ले से इस पौधे का इस्तेमाल करते हैं. भुई नीम का वैज्ञानिक नाम एंड्रोग्रैफिस पैनिकुलाटा (Andrographis Paniculata) है. भुई नीम पौधे के बारे में बताया जाता है कि 1 से 3 फीट तक का पौधा होता है. इसका तना गहरे हरे रंग का होता है. इसकी पत्तियां चिकनी और विपरीत होती हैं. इसके फूल छोटे होते हैं.
बड़े-बड़े मर्ज की अचूक दवा है 'भुई नीम'
जैसे पौधे का नाम छोटा है वैसे ही इस पौधे की साइज भी कम ही होती है. आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव बताते हैं कि "नीम के गुण वाला यह पौधा होता है, इसलिए इसे भुई नीम नाम से जाना जाता है. स्वाद में बहुत कड़वा होता है और जितने भी संक्रमण के रोग होते हैं, खासकर बुखार, पुराना टाइफाइड, लीवर से संबंधित रोग, एक्जिमा आदि में काफी कारगर होता है. एंटीवायरल प्रॉपर्टीज होने की वजह से जो वायरल डिजीज होते हैं उसको रूल आउट करने में काफी कारगर औषधी है. ये छोटे साइज का पौधा होता है और इसकी पत्तियां कुछ-कुछ नीम की ही तरह होती हैं. काफी घना पौधा होता है इसकी झाड़ियां जैसे लगती हैं. इसका एंटी माइक्रोबियल प्रॉपर्टीज होने के कारण आयुर्वेद में कई दवाइयां बनाने में काफी इस्तेमाल किया जाता है".
मलेरिया, डेंगू बुखार उतारने में सक्षम
भुई नीम या कालमेघ का पौधा मलेरिया और डेंगू जैसे बुखार को भी उतार सकता है क्योंकि ज्यादातर आदिवासी वर्ग के बीच मलेरिया जैसी बीमारियों में भी इस औषधीय महत्व के पौधे का इस्तेमाल किया जाता है. इसे लेकर आयुर्वेद डॉक्टर अंकित नामदेव कहते हैं कि "इसका कार्य करने का जो क्षेत्र है वो है लीवर. मलेरिया में जो परजीवी होता है वो रिसाइट करता है लीवर को, इसलिए मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारी हो गया या आपका डेंगू बुखार हो गया. ये अपने ठीक तरह से कड़वे रस के कारण सारी तरह के बुखार में उपयोगी है".
' जड़, तना, पत्ती सब कुछ है काम का'
कुछ आदिवासियों से हमने इस पौधे को लेकर बात की. रमई आदिवासी बताते हैं कि "भुई नीम की जड़, तना, पत्ती सब कुछ औषधीय महत्व का होता है और काफी कारगर होता है. इससे कई तरह की औषधियों का निर्माण होता है. इस पौधे के पूरे पंचांग का इस्तेमाल दवाई के तौर पर किया जाता है. कई तरह की अलग-अलग बीमारियों में इस पौधे का अलग अलग तरीके से इस्तेमाल किया जाता है. आदिवासी लोग बड़े पैमाने पर कई मर्ज में इसका इस्तेमाल करते हैं".