भीलवाड़ा : द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के समय जो लग्न, चंद्रमा और नक्षत्र था, वह इस बार की जन्माष्टमी में देखने को मिल रहा है. भीलवाड़ा के पंडित अशोक व्यास ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि इस बार जन्माष्टमी के दिन जो रात्रि 12 से 12:30 तक पूजा-अर्चना करेगा, उसके परिवार में दुख, दरिद्रता सब दूर होगी और भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद मिलेगा.
वर्षों बाद बना ये संयोग : पंडित अशोक व्यास ने भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति सुनाते हुए कहा कि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय जो स्थितियां बनी थीं, वही स्थितियां वर्षों बाद कलयुग में भी बन रहीं हैं. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्ठमी को दिन में 1 बजकर 17 मिनट से रोहिणी नक्षत्र की शुरुआत होगी. भगवान श्री कृष्ण का जन्म भी रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. उस वक्त भी चंद्रमा वृषभ लग्न में था. ऐसे में इस बार बहुत ही अद्भुत व अपूर्व संयोग बन रहा है. कई राशियों का मिलन एक साथ हो रहा है. वर्षों बाद पहली बार ऐसा योग बना है कि स्मार्त और वैष्णव मत को मानने वाले लोग एक साथ भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएंगे.
ये समय है पूजन के लिए श्रेष्ठ : उन्होंने बताया कि भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के दिन भक्त प्रातः से ही तैयारी शुरू कर देते हैं और अनेक प्रकार की संरचनाओं से भगवान की पूजा करते हैं. मध्य रात्रि को वर्षों बाद 12 बजे से 12:30 का समय श्रेष्ठ आया है. इस समय षोडशोपचार भगवान लड्डू गोपाल का पूजा अर्चना कर दुग्ध से भगवान का अभिषेक करना चाहिए. जो कोई भी व्यक्ति जन्माष्टमी के दिन दुग्ध धारा से भगवान लड्डू गोपाल का अभिषेक करता है उनके मन की कामना पूरी होगी.
सभी राशियों पर अनुकूल प्रभाव : पंडित अशोक व्यास ने कहा कि इस बार जन्माष्टमी के दिन अजब शस्य, गजकेसरी और मन की कामना को पूर्ण कराने का योग बन रहा है. इस बार भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव 12 ही राशियों पर उचित व अनुकूल फल देने वाला है. प्रत्येक राशि वाले मध्य रात्रि को 12 से 12:30 तक दुग्ध धारा से पुरुशुक्त के उच्चारण के साथ भगवान लड्डू गोपाल का अभिषेक करें. यदी उनके गोचर में विपरीत या प्रतिकूल प्रभाव है तब वो भी अनुकूल बन जाएगा.
ऐसे करें पूजन : सबसे पहले लड्डू गोपाल का षोडशोपचार करवा के सबसे पहले स्नान कराना है. फिर गंगाजल, दुग्ध, दही, घी, शहद, शक्कर, पंचामृत, गंधोदक और इत्र आदी से स्नान करवाने के बाद षोडशोपचार पूजन अर्चन करने के साथ ही पुरुशुक्त के सोलह मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए. यह 16 मंत्र यजुर्वेद के द्वितीय अध्याय में हैं. इसके माध्यम से अभिषेक कर अपने जीवन की कामना को पूर्ण कर सकते हैं. पंडित अशोक व्यास ने कहा कि वास्तव में संस्कृत कठिन भाषा है. आम आदमी को संस्कृत के श्लोक याद नहीं होते हैं. ऐसे में जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का पंचाक्षर मंत्र का जाप करें तो उनकी मनोकामना निश्चित रूप से पूर्ण होगी.
इस उच्चारण को करने पर मन की आधा, बाधा, परेशानियां व पीड़ाएं संपूर्ण दूर हो जाएंगी :
"ऊ क्लीम कृष्णाय नमह"
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेश.नाशाय गोविन्दाय नमो नम:"