जबलपुर। आशा कार्यकर्ताओं को सरकार हर माह ₹13 हजार रुपये वेतन देती है. ग्रामीण इलाकों में गांवों की गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की लगभग पूरी जिम्मेदारी आशा कार्यकर्ताओं की होती है. इन्हीं महिलाओं की वजह से सुरक्षित प्रसव हो पा रहे हैं लेकिन सरकार इन्हीं महिलाओं के साथ गंभीरता से पेश नहीं आ रही है. आशा-उषा कार्यकर्ताओं की तनख्वाह बीते 3 महीने से नहीं आई. परेशान आशा कार्यकर्ताओं ने सोमवार को जबलपुर कलेक्टरेट में प्रदर्शन करके अपनी मांग रखी.
एमपी में करीब एक लाख आशा-उषा कार्यकर्ता
हर गांव में एक आशा या उषा कार्यकर्ता होती है. मध्य प्रदेश में आशा उषा कार्यकर्ताओं की संख्या लगभग एक लाख है. केवल जबलपुर में 1700 आशा कार्यकर्ता हैं. इनका काम स्वास्थ्य की मॉनिटरिंग करना है. इसके तहत गर्भवती महिलाओं को टीकाकरण, उनकी डिलीवरी अस्पताल में करवाना, बच्चों का टीकाकरण के अलावा संक्रामक बीमारियों के दौरान दवाओं का वितरण, टीवी मरीजों को समय पर दवा देने का काम आशा और उषा कार्यकर्ताओं को करने पड़ते हैं. इसके एवज में सरकार इन्हें हर महीने लगभग 13 हजार रुपया वेतन के अलावा प्रोत्साहन राशि भी देती है.
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स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी गंदा व्यवहार करते हैं
जबलपुर में आशा-उषा कार्यकर्ताओं ने ज्ञापन सौंपकर जबलपुर कलेक्टर को शिकायत की है कि उन्हें बीते 3 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है. जब भी वे अधिकारी के पास जाती हैं तो पैसा देने वाला अधिकारी बजट का रोना रोते हैं. उनका कहना होता है कि अभी बजट सेक्शन नहीं हुआ है. इसलिए उन्हें तनख्वाह नहीं मिल पाएगी. आशा कार्यकर्ताओं के संगठन की नेता पूजा कनौजिया का कहना है "अभी जबलपुर के ग्रामीण क्षेत्र की आशा-उषा कार्यकर्ताओं को फरवरी महीने की तनख्वाह नहीं मिली है." इन महिलाओं की शिकायत है कि उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता. यहां तक कि उनके ही विभाग के दूसरे कर्मचारी उन्हें हेय नजर से देखते हैं.