नई दिल्ली: भारत में कला और संस्कृति के विविध रूप देखने को मिलते हैं. इसी में एक ओडिसी नृत्य शैली हर किसी का मन मोह लेती हैं. ये भारत के शास्त्रीय नृत्यों में से एक है, जो ओडिशा से जुड़ी है. इस नृत्य में चेहरे के भावों, हाथों के अभिनय और शरीर की गतिविधियों का इस्तेमाल कर मनोभाव प्रकट किए जाते हैं. ओडिसी नृत्य में दक्षिण और उत्तर भारत के रागों का इस्तेमाल किया जाता है. इस नृत्य शैली की अद्भुद झलक कला प्रेमियों को दीवाना बना देती है. देशभर में कई मशहूर ओडिसी नृत्यांगनाएं हैं. इनमें एक नाम अरुणिमा घोष है. इनकी मनमोहक प्रस्तुति ने दिल्ली में दर्शकों का मन मोह लिया है.
शास्त्रीय नृत्य की अनूठी प्रस्तुति
मंगलवार शाम इंडिया हैबिटेट सेंटर के स्टीन ऑडिटोरियम में भारत के विभिन्न हिस्सों से आए प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों की अद्वितीय सुंदरता प्रस्तुत की गई. इस कार्यक्रम में ओडिसी नृत्य अरुणिमा घोष ने अपनी शिष्यों के साथ तीन विशेष प्रस्तुतियां दी. उन्होंने अपने ओडिसी नृत्य में आदि शंकराचार्य के जगन्नाथ अष्टकम से प्रेरणा लेकर भगवान जगन्नाथ की महिमा को जीवंत किया. उन्होंने भक्ति से भरी सुबह की प्रार्थनाओं से लेकर रथयात्रा की ऊर्जा तक के दृश्य प्रस्तुत किए. यह प्रदर्शन उनके व्यक्तिगत विरासत और भगवान के प्रति उनकी कालातीत भक्ति को समर्पित था.
राधा की भावनात्मक उथल-पुथल
अरुणिमा घोष का दूसरा प्रदर्शन- यहि माधव, 12वीं सदी के संत-कवि जयदेव की गीता गोविंद से ली गई, एक भावपूर्ण रचना थी. इसमें राधा की भावनात्मक उथल-पुथल को दर्शाया गया, जिसमें वह कृष्ण से जुड़ी पीड़ा व्यक्त करती हैं. पद्म विभूषण गुरु केलुचरण महापात्र द्वारा कोरियोग्राफ किया गया यह अभिनय प्रदर्शन सूक्ष्म चेहरे के भावों और कोमल मुद्राओं के माध्यम से राधा के प्रेम, दुःख और असुरक्षा को सुंदरता से दर्शाता है. उनका तीसरा प्रदर्शन, नृत्यलीला, ओडिसी नृत्य के मूर्तिकला सौंदर्य और लयबद्ध प्रवाह का उत्सव था. इसे राग रागेश्री की मधुर धुनों पर प्रस्तुत किया गया, जो शांति से गतिशील खुशी तक का एक सुंदर सफर था.
नृत्य शैली को कैरियर के तौर पर चुना
अरुणिमा घोष ने बताया कि उनको बचपन से ही नृत्य का शौक था. उनकी विशेष रुचि सांस्कृतिक नृत्य की ओर रही. उनका आकर्षण ओडिसी नृत्य की तरफ ज्यादा रहा. इसी वजह से उन्होंने इस नृत्य शैली को खुद के कैरियर के तौर पर चुना. अभी तक उन्होंने भारत के साथ कई देशों में बहुत सी प्रस्तुतियां दी हैं और नृत्य कला प्रेमियों की तरफ से काफी सराहा गया.
उन्होंने कहा कि इस मनमोहक संध्या का आयोजन 'समास्रव' के नाम से किया गया. ये केवल एक प्रदर्शन नहीं था, यह एक सांस्कृतिक यात्रा थी, जिसने दर्शकों को समय की गहराइयों में ले जाकर प्रेम, भक्ति और मानव अनुभव की कहानियां सुनाई. इस महोत्सव ने परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु का काम किया. यह दिखाते हुए कि आज की दुनिया में शास्त्रीय नृत्य कितना प्रासंगिक है.