पलामू: प्रेम संबंधों में कदम बहक रहे है. प्रेम संबंधों में जोड़ा घर परिवार छोड़ने को तैयार है. पलामू जैसे इलाके में पिछले एक वर्ष के दौरान 400 से अधिक जोड़े घर छोड़ कर भाग चुके हैं. हालांकि इनमें 90 प्रतिशत से भी अधिक जोड़े वापस लौट चुके हैं. वापस लौटने के बाद प्रेमी जोड़ों को कई तरह के कानूनी पेचिदगियों का सामना करना पड़ता है.
दरसल अधिकतर प्रेमी जोड़ों की दोस्ती सोशल मीडिया से हो रही है. पिछले दिनों रांची के एक नाबालिग लड़की की पलामू के एक नाबालिग लड़के के साथ इंस्टाग्राम पर दोस्ती हुई थी. लड़के से मिलने के लिए छात्रा घर में बिना बताए पलामू पहुंच गई थी. हालांकि पुलिस की सतर्कता की वजह से लड़की को सही सलामत उसके परिजनों को सौंप दिया गया. इसी तरह लातेहार की एक लड़की भाग कर पलामू के चैनपुर से अपनी प्रेमी के घर पहुंच गई थी. पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर में एक 17 वर्षीय छात्रा अपनी प्रेमी के साथ भाग गई थी. लड़की का प्रेमी केबल ऑपरेटर था. पलामू के विभिन्न थाना में प्रत्येक सप्ताह आठ से 10 मामले पहुंचते हैं.
नाबालिकों के भागने के बाद क्या है कानूनी प्रावधान? क्यों मुकदमे में जुड़ जाता है पॉक्सो
नाबालिक प्रेमी जोड़ों के लिए कानून में कई प्रावधान है. नाबालिक लड़की के परिजनों द्वारा पुलिस को यह आवेदन दिया जाता है कि उनकी बेटी का अपहरण हो गया है, तो इस तरह के आवेदन पर 363 और 366 के धाराओं में एफआईआर दर्ज की जाती है. अगर आवेदन में संबंध का जिक्र होता है तो 366 ए की धारा लगाई जाती है.
'नाबालिगों के मामले में कई तरह की सावधानी बरती जाती है. उनके अधिकार का ध्यान रखा जाता है. कानून में कई प्रावधान है जिनका पालन किया जाता है. सीडब्लूसी काउंसेलिंग करती है और नाबालिगों के बाल गृह या बालिका गृह भेजने में भूमिका निभाती है.' - धीरेन्द्र किशोर, सदस्य , सीडब्लूसी (पलामू)
लड़की की बरामदगी के बाद के बाद बयान में यह देखा जाता है कि उसने क्या बताया है. उसके बाद पोक्सो की धारा 4 और 6 को जोड़ा जाता है. इस दौरान यह भी देखा जाता है की लड़की-लड़के के साथ कितना दिन रही है. बरामदी के बाद नाबालिक को सीडब्लूसी के सामने पेश किया जाता है. लड़का और लड़की नाबालिग हैं और शुरुआत में घर जाने को राजी नहीं होते हैं तो उन्हें बाल संरक्षण आयोग (सीडब्लूसी) के माध्यम बालिका गृह और बाल गृह में भेजा जाता है.
वापस लौटने के बाद लड़की की सहमति के बाद ही मेडिकल करवाया जाता है. लड़की को डॉक्टर को बताना होता है कि वह मेडीकल नहीं करवाएगी और डॉक्टर को यह लिख कर देगी कि वह मेडिकल नहीं करवाना चाहती. सारी प्रक्रिया के बाद लड़की का न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष 164 का बयान होता है. यह बयान बेहद गोपनीय होता है. लड़का भी अगर नाबालिग हो तो उसे रिमांड होम (सम्प्रेषण गृह) भेजा जाता है.
बालिग के मामले में लड़की के परिजनों के अवेदन में तथ्य के आधार पर होता है एफआईआर
बालिक प्रेमी जोड़ों के घर छोड़ने के बाद परिजनों के द्वारा दिए गए आवेदन के आधार पर पुलिस एफआईआर दर्ज करती. परिजन यह लिख कर देते हैं कि उनकी लड़की का अपहरण हो गया है. इस तरह के माममें में पुलिस 366 के धाराओं में एफआईआर दर्ज करती है. बरामदगी के बाद लड़की का फर्द बयान लिया जाता है. इस बयान में लड़की अगर संबंधों का जिक्र करती है तो मुकदमे में धारा 376 भी जोड़ी जाती है. इस तरह के मामलों में लड़की के सहमति के बिना मेडिकल नहीं किया जा सकता. लड़की को डॉक्टर को ही बताना पड़ता है कि वह मेडिकल नहीं करवाना चाहती है. बरामदगी के बाद लड़की अगर घर नहीं जाना चाहती है तो उसे सखी वन स्टेप सेंटर भेजा जाता है.
'आवेदन में दर्ज बातो का अध्ययन किया जाता है उसके बाद एफआईआर दर्ज की जाती है. पुलिस तकनीकी जांच ले आधार पर पीड़ित को खोजती है. मेडिकल जांच पूरी तरह से पीड़िता पर निर्भर है वह करवाना चाहती है या नही करवाना चाहती है. लड़की को डॉक्टर को बताना होता है कि वह मेडिकल नही करवाएगी डॉक्टर यह लिख देंगे कि लड़की मेडिकल नही करवाना चाहती.'- देवव्रत पोद्दार , टाउन थाना प्रभारी मेदिनीनगर
164 बयान होता है महत्वपूर्ण, न्यायिक दांधिकारी के समक्ष होता है बयान
अधिवक्ता रुचिर तिवारी बताते हैं कि 164 का बयान महत्वपूर्ण होता है. यह मुकदमे की दिशा तय करता है. बालिग होने की स्थिति में लड़की बयान देती है कि दोनों सहमति से गए हैं तो लड़के को जमानत मिल सकती है.
'आवेदन और बरामदी के बाद धाराओ को भी जोड़ा जाता है, पीड़िता के बयान के बाद स्थिति बदलती है. आवेदन में शोषण का जिक्र नही है और बयान में पुष्टि होती है तो पोक्सो की धारा जोड़ी जाती है'- मुन्नी कुमारी, महिला , थाना प्रभारी , छतरपुर (पलामू)