पटना: नीतीश कुमार 2005 में बिहार की सत्ता पर काबिज हुए. सत्ता पर काबिज होने के बाद नीतीश कुमार ने राजनीतिक जमीन को मजबूत करने के लिए नौकरशाहों पर भरोसा किया. एक के बाद एक कई नौकरशाह नीतीश कुमार के साथ आए. नौकरशाहों को पार्टी में शामिल कराने का सिलसिला पूर्व आईएएस एन के सिंह से शुरू हुआ था. नीतीश कुमार ने इन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता बनाया. एनके सिंह कुछ वर्षों तक नीतीश कुमार के साथ रहे, लेकिन जल्द ही उनका मोह भंग हो गया. जदयू ने एन के सिंह राज्यसभा भी भेजा.
पवन वर्मा ने राहें अलग कीः इसी कड़ी में दूसरा नाम पवन वर्मा का है. पवन वर्मा आईएफएस अधिकारी रहे हैं. नीतीश कुमार से उनकी नजदीकियां बढ़ी. नीतीश कुमार और पवन वर्मा की स्ट्रांग बॉन्डिंग भी थी. पवन वर्मा ने नीतीश कुमार की तारीफ में खूब कसीदे कढ़े. पवन वर्मा को भी जदयू कोटे से राज्यसभा भेजा गया. 2014 में नीतीश कुमार ने पवन वर्मा को राज्यसभा भेजा और इन्हें जदयू में राष्ट्रीय सचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता का पद दिया गया. बाद में पवन वर्मा और नीतीश कुमार के बीच दूरियां बढ़ गई और पवन वर्मा की राहें अलग हो गई
"राजनीति में कोई भी आ सकता है, इसकी स्वतंत्रता है. मनीष वर्मा भले ही नौकरशाह रहे हैं लेकिन नीतीश कुमार के साथ लंबे समय से जुड़े हुए रहे हैं. पार्टी में उनकी सक्रियता से दल को फायदा होगा."-अभिषेक झा, जदयू प्रवक्ता
लंबे समय तक साथ चले आरसीपीः तीसरा नाम आरसीपी सिंह का है. आरसीपी नालंदा के रहने वाले हैं. उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस ऑफिसर थे. नीतीश कुमार जब केंद्र में रेल मंत्री थे तो उनके स्पेशल सेक्रेटरी हुआ करते थे. बाद में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह बिहार आ गए. वीआरएस लेकर राजनीति में कदम रखा. रामचंद्र प्रसाद सिंह लंबे समय तक नीतीश कुमार के साथ चले. दो बार राज्यसभा भेजे गये. पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.
"नीतीश कुमार ने कई नौकरशाहों को अपने साथ लाया है. विडंबना यह रहेगी कोई भी नौकरशाह लंबे समय तक उनके साथ नहीं चल पाया. एक बार फिर वह मनीष वर्मा को साथ लाए हैं देखना यह दिलचस्प होगा कि मनीष वर्मा की भूमिका क्या रहेगी और वह कितनी दूर नीतीश कुमार के साथ चल पाते हैं."- प्रवीण बागी, राजनीतिक विश्लेषक
आरसीपी को क्यों पकड़ाया कोनाः रामचंद्र प्रसाद सिंह, नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बने. जानकार बताते हैं कि नीतीश कुमार की सहमति के बगैर रामचंद्र प्रसाद सिंह ने केंद्र में मंत्री बनने का फैसला लिया था. उस राम चंद्र सिंह ही पार्टी अध्यक्ष थे. यही से दोनों के बीच दूरियां बढ़ गईं. नीतीश कुमार ने तीसरी बार रामचंद्र प्रसाद सिंह को राज्यसभा नहीं भेजा. इसके चलते उन्हें मंत्री पद गंवानी पड़ी. 2005 से लेकर 2010 तक रामचंद्र प्रसाद सिंह नीतीश कुमार के प्रधान सचिव रहे.
"नीतीश कुमार के साथ काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है. वह मेरे लिए आदर्श रहे हैं और मैं उनसे बहुत कुछ सीखा है. जनता दल यूनाइटेड में अब मैं सक्रिय होकर काम करूंगा और जो भी जिम्मेदारी मिलेगी उसे ईमानदारी से निभाने की कोशिश करूंगा."- मनीष वर्मा, जदयू नेता
प्रवचन कर रहे हैं ये आईपीएसः नीतीश कुमार ने पूर्व आईएएस अधिकारी केपी रमैया को भी चुनाव के मैदान में उतारा था. केपी रमैया चुनाव लड़े. लेकिन जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. चुनाव हारने के बाद वह किनारे हो गए. सृजन घोटाले में भी केपी रमैया का नाम आया था. पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी. गुप्तेश्वर पांडे ने 2020 के विधानसभा चुनाव के पहले नौकरी छोड़ी थी और जदयू में शामिल हुए थे. लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिली. अब वह प्रवचन कर रहे हैं.
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