विकासनगर: उत्तराखंड हिमालय की गोद में बसा हुआ है. यहां पर हर कदम पर देवी-देवताओं के प्राचीन मंदिर मिलेंगे. इन्हीं में से विकासनगर के बाढ़वाला में बना प्राचीन शिव मंदिर है. इस मंदिर में 400 साल से निरंतर पूजा-अर्चना हो रही है. महाशिवरात्रि पर भक्तों के लिए रात 12 बजे मंदिर के कपाट खोले जाते हैं. साथ ही पांच दिवसीय मेले का आयोजन भी किया जाता है. मान्यता है कि यहां पर पहले मंदिर नहीं था. बेल के वृक्ष की पूजा-अर्चना करने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते थे. 400 साल पूर्व मंदिर का निर्माण कराया गया था. जिसमें स्वयंभू शिवलिंग को स्थापित कराया गया. आज भी मंदिर में 400 वर्ष पहले का पीपल का विशाल वृक्ष भी मौजूद है.
400 साल पुराने शिव मंदिर में भक्तों की लगती है लाइन: मंदिर के धर्माचार्य डॉक्टर सुनील पैन्यूली ने बताया कि मंदिर में करीब 400 साल से स्थानीय लोगों के साथ-साथ अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते हैं. सावन मास में प्रत्येक सोमवार को भोलेनाथ के भक्तों की यहां पर भीड़ लगी रहती है. उन्होंने कहा कि जो कोई भी अपनी मन्नत मांगता है. वो मन्नत पूरी होने पर यहां शीश नवाने आता है.
विभिन्न राज्यों से दर्शनों के लिए पहुंचते हैं भक्त: सुनील पैन्यूली ने बताया कि प्राचीन शिव मंदिर में हिमाचल, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों से भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं. मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान भी चलते रहते हैं. उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि मेला लगने के पीछे की वजह यह भी है कि दूर-दराज से माता-पिता अपने बच्चों को आशीर्वाद दिलाने के लिए प्राचीन शिव मंदिर लेकर आते थे, जिसके चलते मेले का आयोजन होने लगा है.
क्या होती शिवरात्रि और महाशिवरात्रि : मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि हिंदूओं का प्रमुख धार्मिक पर्व है. ये पावन पर्व फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था. इस दिन शिवभक्त व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं. कई लोग शिवरात्रि को ही महाशिवरात्रि बोलते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. ये दोनों ही पर्व अलग-अलग हैं. शिवरात्रि हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर आती है, जबकि महाशिवरात्रि साल भर में एक ही बार आती है.
ये भी पढ़ें-