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प्रयागराज महाकुंभ; आनंद अखाड़े ने भी सनातन धर्म की रक्षा के लिए लड़ी थी लड़ाई, जानिए परंपरा और मान्यताएं - ANAND AKHARA TRADITION

13 प्रमुख अखाड़ों में से एक है श्री पंचायती आनंद अखाड़ा, कठिन परीक्षा के बाद दी जाती है दीक्षा.

सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं आनंद अखाड़े के संत.
सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं आनंद अखाड़े के संत. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 31, 2024, 8:48 AM IST

प्रयागराज : महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से होनी है. संगम नगरी में देश-विदेश के साधु-संत पहुंचने लगे हैं. काफी संख्या में संत पहुंच भी चुके हैं. कई अखाड़ों की धर्म ध्वजा भी स्थापित हो चुकी है. अखाड़ों के तमाम संत-संन्यासियों की मौजूदगी मेले को और भी खास बना देती है. इन अखाड़ों की अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं. इन्हीं में से एक श्री पंचायती आनंद अखाड़ा भी है.

सनातन धर्म की रक्षा में आनंद अखाड़े का बड़ा योगदान. (Video Credit; ETV Bharat)

महाकुंभ हर 12 साल पर विशेष स्थान पर लगता है. लाखों करोड़ों साधु-संत और श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं. मान्यता के अनुसार, कुंभ मेले में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है. मोक्ष की प्राप्ति होती है. मेले में आकर्षण के केंद्र देश के 13 प्रमुख अखाड़ों के साधु-संत होते हैं. इन्हीं अखाड़ों में से एक आनंद अखाड़ा भी है.

निरंजनी अखाड़े के साथ है आनंद अखाड़ा : श्री पंचायती आनंद अखाड़े का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. अखाड़े के अध्यक्ष महंत शंकारानंद सरस्वती ने बताया कि अखाड़े की स्थापना लगभग 855 ईसवी में महाराष्ट्र के बरार नामक स्थान पर हुई थी. अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान हैं. आनंद अखाड़ा को निरंजनी अखाड़े का छोटा भाई भी कहा जाता है. यह अखाड़ा कुंभ आदि पर्वों पर निरंजनी अखाड़े के साथ अपनी पेशवाई निकालता है और शाही स्नान में शामिल होता है.

चुनाव के आधार पर चुने जाते हैं पदाधिकारी : वर्तमान में आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी महाराज हैं. अखाड़े के अध्यक्ष महंत शंकारानंद सरस्वती हैं. इस अखाड़े का प्रमुख पद आचार्य का होता है. आचार्य ही इस अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों को देखते हैं. चुनाव के आधार पर पदाधिकारी चुने जाते हैं. ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है.

सामाजिक क्रिया-कलापों में बढ़-चढ़कर यह अखाड़ा भाग लेता है. अखाड़ा संन्यास परंपरा का पूरा पालन करता है. भारत में मुगल सल्तनत काल के शुरू होने के बाद हिंदू धर्म और हिंदू धर्म के मानने वालों को अपमान का सामना करना पड़ा था. अखाड़े के नागा संन्यासियों ने इसके खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि अपने युद्ध कौशल से भारतीय धार्मिक सनातन परंपरा की रक्षा की.

संन्यास देने की प्रक्रिया है कठिन : आनंद अखाड़े में संन्यास देने की प्रक्रिया कठिन है. ब्रह्मचारी बनाकर आश्रम में 3 से 4 वर्ष रखा जाता है. उसमें खरा उतरने पर कुंभ अथवा महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा दी जाती है. पिंडदान करवाकर दीक्षा दी जाती है.

सबसे पहले रमता पंच का चुनाव : अखाड़े के अध्यक्ष शंकारानंद सरस्वती का कहना है कि जिस तरह से हमारे यहां सात संन्यासियों का अखाड़ा है, नागा सन्यासियों का अखाड़ा है, अखाड़े ने पंचायत राज की स्थापना की थी तब से पंचायत राज शुरू हो गया है. सबसे पहले रमता पांच का चुनाव किया जाता है. उसमें 4 श्री महंत होते हैं.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ क्षेत्र में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच स्थापित हुई निरंजनी और आनंद अखाड़े की धर्म ध्वजा

प्रयागराज : महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी से होनी है. संगम नगरी में देश-विदेश के साधु-संत पहुंचने लगे हैं. काफी संख्या में संत पहुंच भी चुके हैं. कई अखाड़ों की धर्म ध्वजा भी स्थापित हो चुकी है. अखाड़ों के तमाम संत-संन्यासियों की मौजूदगी मेले को और भी खास बना देती है. इन अखाड़ों की अपनी मान्यताएं और परंपराएं हैं. इन्हीं में से एक श्री पंचायती आनंद अखाड़ा भी है.

सनातन धर्म की रक्षा में आनंद अखाड़े का बड़ा योगदान. (Video Credit; ETV Bharat)

महाकुंभ हर 12 साल पर विशेष स्थान पर लगता है. लाखों करोड़ों साधु-संत और श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं. मान्यता के अनुसार, कुंभ मेले में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है. मोक्ष की प्राप्ति होती है. मेले में आकर्षण के केंद्र देश के 13 प्रमुख अखाड़ों के साधु-संत होते हैं. इन्हीं अखाड़ों में से एक आनंद अखाड़ा भी है.

निरंजनी अखाड़े के साथ है आनंद अखाड़ा : श्री पंचायती आनंद अखाड़े का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है. अखाड़े के अध्यक्ष महंत शंकारानंद सरस्वती ने बताया कि अखाड़े की स्थापना लगभग 855 ईसवी में महाराष्ट्र के बरार नामक स्थान पर हुई थी. अखाड़े के इष्ट देव सूर्य नारायण भगवान हैं. आनंद अखाड़ा को निरंजनी अखाड़े का छोटा भाई भी कहा जाता है. यह अखाड़ा कुंभ आदि पर्वों पर निरंजनी अखाड़े के साथ अपनी पेशवाई निकालता है और शाही स्नान में शामिल होता है.

चुनाव के आधार पर चुने जाते हैं पदाधिकारी : वर्तमान में आनंद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी महाराज हैं. अखाड़े के अध्यक्ष महंत शंकारानंद सरस्वती हैं. इस अखाड़े का प्रमुख पद आचार्य का होता है. आचार्य ही इस अखाड़े के सभी धार्मिक और प्रशासनिक मामलों को देखते हैं. चुनाव के आधार पर पदाधिकारी चुने जाते हैं. ये परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है.

सामाजिक क्रिया-कलापों में बढ़-चढ़कर यह अखाड़ा भाग लेता है. अखाड़ा संन्यास परंपरा का पूरा पालन करता है. भारत में मुगल सल्तनत काल के शुरू होने के बाद हिंदू धर्म और हिंदू धर्म के मानने वालों को अपमान का सामना करना पड़ा था. अखाड़े के नागा संन्यासियों ने इसके खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि अपने युद्ध कौशल से भारतीय धार्मिक सनातन परंपरा की रक्षा की.

संन्यास देने की प्रक्रिया है कठिन : आनंद अखाड़े में संन्यास देने की प्रक्रिया कठिन है. ब्रह्मचारी बनाकर आश्रम में 3 से 4 वर्ष रखा जाता है. उसमें खरा उतरने पर कुंभ अथवा महाकुंभ में संन्यास की दीक्षा दी जाती है. पिंडदान करवाकर दीक्षा दी जाती है.

सबसे पहले रमता पंच का चुनाव : अखाड़े के अध्यक्ष शंकारानंद सरस्वती का कहना है कि जिस तरह से हमारे यहां सात संन्यासियों का अखाड़ा है, नागा सन्यासियों का अखाड़ा है, अखाड़े ने पंचायत राज की स्थापना की थी तब से पंचायत राज शुरू हो गया है. सबसे पहले रमता पांच का चुनाव किया जाता है. उसमें 4 श्री महंत होते हैं.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ क्षेत्र में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच स्थापित हुई निरंजनी और आनंद अखाड़े की धर्म ध्वजा

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