कोरबा: तीसरे चरण में छत्तीसगढ़ की 7 सीटों पर मतदान होना है. इसमें सबसे दिलचस्प मुकाबला कोरबा लोकसभा सीट पर है. यहां दो महिलाओं के बीच कांटे की टक्कर देखी जा रही है. भाजपा की ओर से तेज तर्रार सरोज पांडे और कांग्रेस से नेता प्रतिपक्ष डॉ चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत चुनावी मैदान में है. कोरबा के कटघोरा में बुधवार को अमित शाह ने भव्य जनसभा को संबोधित किया. यहां उन्होंने कहा कि, "कोरबा कठिन सीट है इसलिए सरोज को यहां भेजा है."
भाजपा की राह कठिन: दरअसल साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कोरबा, बस्तर ही दो ऐसी सीट थी, जिसे कांग्रेस ने जीता था. शेष 9 सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया था. भाजपा के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता भले ही कोरबा में एक तरफा मुकाबला होने की बात कहते हैं, लेकिन अमित शाह ने आज मंच से यह स्वीकार कर कहा कि कोरबा कठिन सीट है. इससे एक बात तो साफ है कि कोरबा में मुकाबला आसान बिल्कुल भी नहीं है. यही वजह है कि भाजपा ने यहां पूरी ताकत झोंक दी है. कोरबा में कांटे का मुकाबला है. हालांकि महंत परिवार के परिवारवाद का मुद्दा भी बीजेपी सामने लाती रही है. यह बातें भी चर्चा का विषय है कि कभी स्वयं चरणदास महंत तो कभी उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत यहां से चुनाव लड़ती हैं. परिवारवाद के आरोप के बावजूद, यहां महंत परिवार के किले को ढहाना भाजपा के लिए आसान नहीं है.
अमित शाह ने बताया कठिन सीट:अमित शाह ने कहा कि, "दो चरण में मोदी सेंचुरी मार चुके हैं. यानी दो चरण में 100 से ज्यादा सीट बीजेपी ने जीत लिया है, लेकिन अब तीसरे चरण में सरोज पांडे चुनाव लड़ रही हैं. तीसरे चरण में हमें 400 पार की दिशा में आगे बढ़ाना है. तीसरे चरण में सरोज पांडे लड़ रही हैं.जो कठिन सीट है, पिछली बार आपने आशीर्वाद नहीं दिया था, फिर भी हमने सोच-समझकर सरोज पांडे को आपके ऊपर भरोसा करके यहां भेजा है.आपको सिर्फ चुनकर उन्हें भेजना है. इस बार गलती मत करना कोरबा वालों. मैं आपको यह कहने आया हूं कि सरोज पांडे को जिताकर भेज दो, कोरबा के गांव-गांव की चिंता नरेंद्र मोदी करेंगे."
ज्योत्सना को बताया लापता सांसद: सभा के दौरान अमित शाह ने कहा कि, "सरोज पांडे के बारे में अच्छे से जानता हूं. मैंने उनके साथ संगठन में भी काम किया है. वह पहले भी सांसद रहीं हैं, लोकसभा में भी और राज्यसभा की भी रही हैं. लेकिन आज अभी आपके यहां जो सांसद हैं. उसे आप लापता संसद के नाम से जानते हैं. आप लोग सोचते हो वह संसद में रहती होंगी, लेकिन वह संसद में भी नहीं रहती. संसद में भी नहीं है, यहां पर भी नहीं है. मालूम ही नहीं है कि वह कहां पर हैं. हमें नहीं मालूम वे कहां है,मगर सरोज को जिताकर देखो. आप परेशान हो जाओगे कि वह हर बार गांव में क्यों आ जाती है? इतनी बार वह आपकी समस्याओं का समाधान करेगी."
जानिए क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट: इस पूरे मामले में पॉलिटिकल एक्सपर्ट शिव अग्रवाल का कहना है कि, "मुझे पहले भी आश्चर्य हुआ था. सरोज पांडे जो दुर्ग से राज्यसभा सांसद हैं. वो जहां से सांसद रहीं हैं, विधायक रही हैं. वह पूरी तरह से शहरी क्षेत्र था. कोरबा लोकसभा की जो भौगोलिक स्थिति है. यहां पर आप देख लीजिए केवल दो विधानसभा ऐसी है, जो शहरी क्षेत्र है. बाकी सारे क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र हैं. यहां जो जातिगत समीकरण है, जिसे हम शुरू से देखते आए हैं. चाहे आप अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला की बात करें, जो 2009 में चुनाव हारीं. साल 2019 में ज्योतिनंद दुबे लोकल प्रत्याशी थे. लेकिन मोदी लहर में भी वह हार गए. सरोज पांडे को भी ग्रामीण क्षेत्र में काफी संघर्ष करना पड़ेगा. राह आसान बिल्कुल नहीं है. दूसरी तरफ डॉ चरणदास महंत सांसद रहे हैं. लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. वो यहां के लोकसभा की गलियों से वाकिफ हैं. तो ऐसे में यह कहना कि चुनाव एक तरफ है. मेरा मानना है कि यह ठीक बात नहीं है. भाजपा को यहां संघर्ष करना पड़ेगा. सरोज पांडे सिर्फ मोदी की गारंटी के मुद्दे पर वोट मांगने का सोच रही है. तो ऐसा बिल्कुल नहीं है."
बता दें कि केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कोरबा में बुधवार को बीजेपी प्रत्याशी सरोज पांडे के पक्ष में चुनाव पक्ष में चुनाव प्रचार किया. साथ ही कोरबा सीट को कठिन बताया. इस बारे में पॉलिटिकल एक्सपर्ट भी मानते हैं ये सीट कठिन है. ऐसे में इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों को काफी संघर्ष करना पड़ेगा.