भोपाल। विधानसभा चुनाव में बंपर जीत फिर लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप के बाद बीजेपी के लिए अमरवाड़ा उपचुनाव की जीत बेशक कोई खास मायने नहीं रखती. इस सीट पर उपचुनाव सत्ता की सियासत के बनने बिगड़ने का चुनाव कतई नहीं है, लेकिन छिंदवाड़ा जिले की इस विधानसभा सीट पर आज हुए मतदान के बाद 13 जुलाई को आने वाला नतीजा बताएगा कि कमलनाथ का इस जमीन से पूरी तरह सफाया हुआ है या जनता ने लोकसभा चुनाव की भूल सुधार ली है. विधानसभा चुनाव में छिंदवाड़ा अकेला जिला था. जहां सात की सात सीटों पर कमलनाथ के आगे कमल खिलना नामुमकिन हो गया.
अमरवाड़ा की जीत किसके लिए जरुरी है
अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर जीत केवल बीजेपी के कमलेश शाह और कांग्रेस के धीरन शाह का इम्तेहान नहीं है. लोकसभा चुनाव का ताजा जख्म लिए कमलनाथ के लिए भी नतीजे बेहद जरूरी हैं. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भटनागर कहते हैं, 'वैसे तो लोकसभा चुनाव के नतीजों ने ही बता दिया कि कमलनाथ की राजनीति अब उतार पर है. बीजेपी के लिए छिंदवाड़ा सबसे मुश्किल सीट रही है, लेकिन आखिर कार वहां भी जनता ने कमलनाथ के बजाए कमल को चुना. अमरवाड़ा वो सीट है, जहां अभी छह महीने पहले तक कमलनाथ का ही जादू था. क्या वो तिलिस्म उतर गया है या बरकरार है. अमरवाड़ा के चुनाव नतीजे ये भी बताएंगे. तो इसे सिर्फ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए कमलेश शाह या कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे धीरेन शाह के सियासी भविष्य के चुनाव के तौर पर ना देखा जाए.'
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अमरवाड़ा उम्मीदवारों में कौन कितना ताकतवर
उपचुनाव में कांग्रेस छोड़कर आए कमलेश शाह आदिवासी वर्ग से आते हैं, चूंकि सीट भी आदिवासी ही है. लिहाजा 2013 से अब तक कमलेश शाह की यहां जमीन मजबूत रही है. कांग्रेस के उम्मीदवार धीरन शाह हैं. धीरन का दांव मजबूत होने की संभावना उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि है. वे आंचल कुंड धाम के दादा के बेटे हैं. आदिवासी वोटर पर इनकी भी पकड़ है. वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने देव भलावी को अपना उम्मीदवार बनाया है. जीजीपी उस खिलाड़ी की तरह इस मैदान में जो दोनों दलों का खेल बिगाड़ने की हैसियत में है.