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'PMCH में पढ़ने आते थे विदेशों से स्टूडेंट, दाखिला लेने मात्र से शादी के लिए आने लगते थे रिश्ते' - PMCH CENTENARY YEAR

पीएमसीएच का आज शताब्दी समारोह है. इस मौके पर एल्यूमिनी सदस्यों ने कॉलेज से जुड़ी कई हैरान करने वाली बाते बताई हैं. पढ़ें पूरी खबर..

PMCH CENTENARY YEAR
पीएमसीएच का आज शताब्दी समारोह (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 25, 2025, 3:00 PM IST

पटना: "पीएमसीएच में चयन हुआ तो बधाई देने वालों का तांता लग गया. घर पर शादी के प्रस्ताव भी आने लगे. उस समय पीएमसीएच में दाखिला पाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी." ऐसा हम नहीं पीएमसीएच के 1960- 1965 बैच के पूर्ववर्ती छात्रों का कहना है. बिहार का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल पीएमसीएच आज 100 साल का हो गया है. अस्पताल के शताब्दी समारोह में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शिरकत कर रही हैं.

शताब्दी समारोह में पहुंचे 1960-1965 बैच के एल्यूमिनी: पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एल्यूमिनी सदस्यों में गर्व का माहौल है. पीएमसीएच के 1960- 1965 बैच के पूर्ववर्ती छात्र काफी उत्साहित है. इस बैच के बहुत कम ही लोग जीवित हैं लेकिन जो हैं, वह इसलिए गौरवान्वित है कि उन्हें मेडिकल कॉलेज अस्पताल का 1975 में गोल्डन जुबली देखने का मौका मिला. इसके बाद साल 2000 में वह प्लेटिनम जुबली के आयोजन सदस्यों में भी रहे और अब शताब्दी समारोह पर डायमंड जुबली के आयोजन में भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

PMCH centenary program
कई सालों बाद साथ आए पीएमसीएच के एल्यूमिनी सदस्य (ETV Bharat)

पीएमसीएच में दाखिला होने पर अखबार में छपती थी खबर: सर्जन डॉ. बिनय बहादुर सिन्हा जो वर्तमान में रेड क्रॉस सोसाइटी के अध्यक्ष हैं, उन्होंने अपना अनुभव साझा किया है. उन्होंने बताया कि 1960 में जब उन्होंने पीएमसीएच के लिए क्वालीफाई किया, तो यह उनके क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया. वो आरा जिले से हैं. उनके चयन के बाद सभी प्रमुख अखबारों में यह खबर छपी थी. उसे समय अखबार में खबर छापना बहुत बड़ी बात होती थी. इसके बाद उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लग गया और शादी के प्रस्ताव भी आने लगे. उस समय पीएमसीएच में दाखिला पाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी.

पीएमसीएच में क्वालीफाई करते ही शादी के लिए लगी लाइन: डॉ. सिन्हा ने बताया कि शुरू में उनके पिता ने उनकी शादी के लिए रजामंदी नहीं दी लेकिन रोज इतनी संख्या में लड़की वाले आते थे कि अंत में उनकी शादी तय कर दी गई. उसे समय शादी के लिए लड़का-लड़की की रजामंदी नहीं ली जाती थी. बालीग होने पर जल्द से जल्द परिवार वाले शादी कर देते थे.

"मेरे समय पीएमसीएच में रिसर्च भी होता था और यह देश भर के मेडिकल छात्रों की पहली पसंद था. निजी नर्सिंग होम का प्रचलन नहीं था इसलिए मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री, विधायक से लेकर गरीब रिक्शा चालक तक सभी पीएमसीएच में इलाज कराने आते थे. अस्पताल में इलाज की नई-नई तकनीकें उपलब्ध थीं. वहीं डॉक्टर पूरी निष्ठा से मरीजों की सेवा करते थे."-डॉ. बिनय बहादुर सिन्हा, एल्यूमिनी सदस्य

PMCH centenary program
एल्यूमिनी सदस्य ने खोले कई राज (ETV Bharat)

देश ही नहीं विदेशों के छात्र यहां करते थे पढ़ाई: बिहार के प्रख्यात सर्जन डॉ. अहमद अब्दुल हई ने बताया कि वो 1960-1965 बैच के सदस्य हैं. 1960 में जब उनका दाखिला हुआ था, तब पीएमसीएच में प्रवेश पाना ही गर्व की बात होती थी. देश-विदेश से छात्र यहां पढ़ने आते थे और यह मेडिकल छात्रों की पहली पसंद होती थी. डॉ. हई ने बताया कि उनके समय में साउथ अफ्रीका, नाइजीरिया, थाईलैंड, नेपाल जैसे देशों के साथ-साथ दक्षिण भारत और जम्मू-कश्मीर के छात्र भी पीएमसीएच में अध्ययन करते थे. उस दौर में डॉक्टरों के पास इतना अनुभव होता था कि अधिक जांच की आवश्यकता नहीं पड़ती थी.

"शताब्दी समारोह में आयोजन समिति का हिस्सा बनकर काफी गर्वित महसूस कर रहा हूं. हमारे जमाने में बड़े से बड़े लोग पीएमसीएच के डॉक्टरों से ही इलाज करवाना चाहते थे. अस्पताल में गरीब से गरीब और अमीर से अमीर मरीज आते थे. सभी को समान रूप से देखा जाता था और डॉक्टर पूरी सेवा भावना से मरीजों का इलाज करते थे."-डॉ. अहमद अब्दुल हई, एल्यूमिनी सदस्य

PMCH centenary program
पीएमसीएच के एल्यूमिनी सदस्य (ETV Bharat)

संस्थान की पुरानी गौरव वापस आए: डॉक्टर सिन्हा ने बताया कि उनके समय केवल यह कह देना की वह पीएमसीएच के छात्र हैं या डॉक्टर हैं तो समाज में मान प्रतिष्ठा बढ़ जाती थी. यही कारण था कि दूर-दराज से मरीज पीएमसीएच में दिखाने के लिए कई दिनों तक पटना में इंतजार करते थे. उनके समय में पीएमसीएच का एक विशेष स्थान था और वो चाहते हैं कि यह फिर से उसी ऊंचाई पर पहुंच जाए.

पुराने साथियों को याद कर भावुक हुए एल्यूमिनी सदस्य: डॉ. सिन्हा और डॉक्टर हई ने कहा कि उन्हें गौरव महसूस हो रहा है कि वह संस्थान के गोल्डन जुबली कार्यक्रम 1975 में सक्रिय भूमिका में थे. वहीं साल 2000 में प्लेटिनम जुबली में भी आयोजन समिति में था. अब इस बार 2025 में संस्थान के शताब्दी वर्ष पूरे होने पर डायमंड जुबली में भी सक्रिय भूमिका में है. इस मौके पर दोनों डॉक्टरों ने भावुक होकर कहा कि शताब्दी वर्ष में वो अपने उन साथियों को याद कर रहे हैं जो अब उनके बीच नहीं हैं. वो चाहते हैं कि पीएमसीएच का पुराना गौरव वापस आए.

प्रिंस ऑफ वेल्स के नाम पर था इस अस्पताल का नाम: पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) की शुरुआत 1925 में हुई थी. इसकी नींव पहले 1874 में बांकीपुर में टेंपल मेडिकल स्कूल के रूप में रखी गई थी. 1921 में तत्कालीन प्रिंस ऑफ वेल्स की बिहार यात्रा को यादगार बनाने के लिए इस मेडिकल कॉलेज की स्थापना की कल्पना की गई थी. उसी साल पटना में 'प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज' स्थापित किया गया. स्वतंत्रता मिलने के बाद इसका नाम बदलकर पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (PMCH) रखा गया.

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पटना: "पीएमसीएच में चयन हुआ तो बधाई देने वालों का तांता लग गया. घर पर शादी के प्रस्ताव भी आने लगे. उस समय पीएमसीएच में दाखिला पाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी." ऐसा हम नहीं पीएमसीएच के 1960- 1965 बैच के पूर्ववर्ती छात्रों का कहना है. बिहार का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल पीएमसीएच आज 100 साल का हो गया है. अस्पताल के शताब्दी समारोह में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शिरकत कर रही हैं.

शताब्दी समारोह में पहुंचे 1960-1965 बैच के एल्यूमिनी: पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एल्यूमिनी सदस्यों में गर्व का माहौल है. पीएमसीएच के 1960- 1965 बैच के पूर्ववर्ती छात्र काफी उत्साहित है. इस बैच के बहुत कम ही लोग जीवित हैं लेकिन जो हैं, वह इसलिए गौरवान्वित है कि उन्हें मेडिकल कॉलेज अस्पताल का 1975 में गोल्डन जुबली देखने का मौका मिला. इसके बाद साल 2000 में वह प्लेटिनम जुबली के आयोजन सदस्यों में भी रहे और अब शताब्दी समारोह पर डायमंड जुबली के आयोजन में भी अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

PMCH centenary program
कई सालों बाद साथ आए पीएमसीएच के एल्यूमिनी सदस्य (ETV Bharat)

पीएमसीएच में दाखिला होने पर अखबार में छपती थी खबर: सर्जन डॉ. बिनय बहादुर सिन्हा जो वर्तमान में रेड क्रॉस सोसाइटी के अध्यक्ष हैं, उन्होंने अपना अनुभव साझा किया है. उन्होंने बताया कि 1960 में जब उन्होंने पीएमसीएच के लिए क्वालीफाई किया, तो यह उनके क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गया. वो आरा जिले से हैं. उनके चयन के बाद सभी प्रमुख अखबारों में यह खबर छपी थी. उसे समय अखबार में खबर छापना बहुत बड़ी बात होती थी. इसके बाद उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लग गया और शादी के प्रस्ताव भी आने लगे. उस समय पीएमसीएच में दाखिला पाना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी.

पीएमसीएच में क्वालीफाई करते ही शादी के लिए लगी लाइन: डॉ. सिन्हा ने बताया कि शुरू में उनके पिता ने उनकी शादी के लिए रजामंदी नहीं दी लेकिन रोज इतनी संख्या में लड़की वाले आते थे कि अंत में उनकी शादी तय कर दी गई. उसे समय शादी के लिए लड़का-लड़की की रजामंदी नहीं ली जाती थी. बालीग होने पर जल्द से जल्द परिवार वाले शादी कर देते थे.

"मेरे समय पीएमसीएच में रिसर्च भी होता था और यह देश भर के मेडिकल छात्रों की पहली पसंद था. निजी नर्सिंग होम का प्रचलन नहीं था इसलिए मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री, विधायक से लेकर गरीब रिक्शा चालक तक सभी पीएमसीएच में इलाज कराने आते थे. अस्पताल में इलाज की नई-नई तकनीकें उपलब्ध थीं. वहीं डॉक्टर पूरी निष्ठा से मरीजों की सेवा करते थे."-डॉ. बिनय बहादुर सिन्हा, एल्यूमिनी सदस्य

PMCH centenary program
एल्यूमिनी सदस्य ने खोले कई राज (ETV Bharat)

देश ही नहीं विदेशों के छात्र यहां करते थे पढ़ाई: बिहार के प्रख्यात सर्जन डॉ. अहमद अब्दुल हई ने बताया कि वो 1960-1965 बैच के सदस्य हैं. 1960 में जब उनका दाखिला हुआ था, तब पीएमसीएच में प्रवेश पाना ही गर्व की बात होती थी. देश-विदेश से छात्र यहां पढ़ने आते थे और यह मेडिकल छात्रों की पहली पसंद होती थी. डॉ. हई ने बताया कि उनके समय में साउथ अफ्रीका, नाइजीरिया, थाईलैंड, नेपाल जैसे देशों के साथ-साथ दक्षिण भारत और जम्मू-कश्मीर के छात्र भी पीएमसीएच में अध्ययन करते थे. उस दौर में डॉक्टरों के पास इतना अनुभव होता था कि अधिक जांच की आवश्यकता नहीं पड़ती थी.

"शताब्दी समारोह में आयोजन समिति का हिस्सा बनकर काफी गर्वित महसूस कर रहा हूं. हमारे जमाने में बड़े से बड़े लोग पीएमसीएच के डॉक्टरों से ही इलाज करवाना चाहते थे. अस्पताल में गरीब से गरीब और अमीर से अमीर मरीज आते थे. सभी को समान रूप से देखा जाता था और डॉक्टर पूरी सेवा भावना से मरीजों का इलाज करते थे."-डॉ. अहमद अब्दुल हई, एल्यूमिनी सदस्य

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पीएमसीएच के एल्यूमिनी सदस्य (ETV Bharat)

संस्थान की पुरानी गौरव वापस आए: डॉक्टर सिन्हा ने बताया कि उनके समय केवल यह कह देना की वह पीएमसीएच के छात्र हैं या डॉक्टर हैं तो समाज में मान प्रतिष्ठा बढ़ जाती थी. यही कारण था कि दूर-दराज से मरीज पीएमसीएच में दिखाने के लिए कई दिनों तक पटना में इंतजार करते थे. उनके समय में पीएमसीएच का एक विशेष स्थान था और वो चाहते हैं कि यह फिर से उसी ऊंचाई पर पहुंच जाए.

पुराने साथियों को याद कर भावुक हुए एल्यूमिनी सदस्य: डॉ. सिन्हा और डॉक्टर हई ने कहा कि उन्हें गौरव महसूस हो रहा है कि वह संस्थान के गोल्डन जुबली कार्यक्रम 1975 में सक्रिय भूमिका में थे. वहीं साल 2000 में प्लेटिनम जुबली में भी आयोजन समिति में था. अब इस बार 2025 में संस्थान के शताब्दी वर्ष पूरे होने पर डायमंड जुबली में भी सक्रिय भूमिका में है. इस मौके पर दोनों डॉक्टरों ने भावुक होकर कहा कि शताब्दी वर्ष में वो अपने उन साथियों को याद कर रहे हैं जो अब उनके बीच नहीं हैं. वो चाहते हैं कि पीएमसीएच का पुराना गौरव वापस आए.

प्रिंस ऑफ वेल्स के नाम पर था इस अस्पताल का नाम: पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) की शुरुआत 1925 में हुई थी. इसकी नींव पहले 1874 में बांकीपुर में टेंपल मेडिकल स्कूल के रूप में रखी गई थी. 1921 में तत्कालीन प्रिंस ऑफ वेल्स की बिहार यात्रा को यादगार बनाने के लिए इस मेडिकल कॉलेज की स्थापना की कल्पना की गई थी. उसी साल पटना में 'प्रिंस ऑफ वेल्स मेडिकल कॉलेज' स्थापित किया गया. स्वतंत्रता मिलने के बाद इसका नाम बदलकर पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (PMCH) रखा गया.

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