गिरिडीहः 11 सितंबर 2005 की रात, झारखंड के इतिहास में काली रात कहलाती है. इस रात नक्सली संगठन ने बिहार की सीमा से सटे भेलवाघाटी पर हमला बोला था. नक्सलियों ने यहां खून की होली खेली थी. एक एक करके 16 ग्रामीणों की जान ली थी. कई घंटे तक नक्सली यहां तांडव मचाते रहे लेकिन बचाव के लिए न तो पुलिस पहुंच सकी और न ही एंबुलेंस यहां तक आ सकी. इसकी सबसे बड़ी वजह थी सड़क का नहीं होना.
दरअसल, 2005 की घटना के समय भेलवाघाटी से देवरी तक न तो पक्की सड़क थी और न ही किसी नदी पर पुल था. ऐसे में इस घटना के बाद इस सड़क को बनाने का निर्णय हुआ और सड़क बनी भी. इसके बाद में सड़क का चौड़ीकरण होना शुरू हुआ. फतेहपुर से भेलवाघाटी तक की सड़क का निर्माण कार्य 2019 में शुरू हुआ, लगभग 25 करोड़ की लागत से इसका निर्माण शुरू हुआ. सड़क निर्माण कार्य शुरू हुआ पर गड़बड़ी का आरोप भी लगा. कई दफा ग्रामीणों ने विरोध किया लेकिन क्वालिटी जांच की जगह लीपापोती की जाने लगी. शुक्रवार की रात को जिस निर्माणाधीन पुल का पिलर झूका है और गार्डर बहा है उसके निर्माण में गड़बड़ी की शिकायत की गई थी लेकिन इसपर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा गया.
मिट्टी पर ही रख दी गई पिलर की आधारशिला
जानकारों का कहना है कि पुल का पिलर ढालने से पहले बोरिंग की जाती है. यह देखा जाता है कि कितना नीचे पत्थर है. उसके बाद उसी अनुसार नक्शा बनाया जाता है. फिर पत्थर तक खुदाई होती है फिर पत्थर में भी खुदाई होती है और अंत में बुनियाद को खड़ा किया जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि यहां ऐसा नहीं किया गया. यहां कीचड़ में ही पिलर की बुनियाद खड़ी कर दी गई. लोग बताते हैं कि इसका विरोध हुआ पर सरकारी तंत्र पर कुछ भी असर नहीं हुआ.