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हाईकोर्ट: आर्थिक लाभ के लिए एससी एसटी एक्ट का दुरुपयोग रोकने का निगरानी तंत्र विकसित करे सरकार - Allahabad High Court

हाईकोर्ट ने अपन एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि, आर्थिक लाभ के लिए एससी एसटी एक्ट के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार निगरानी तंत्र विकसित करे, साथ ही झूठी शिकायत करने वालों की जवाबदेही तय कर दंड देने की कार्रवाई भी हो.

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एससी एसटी एक्ट को लेकर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 21, 2024, 11:01 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निजी आर्थिक लाभ की लालच में एससी एसटी एक्ट के दुरुपयोग को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब तक तंत्र विकसित नहीं हो जाता, तब तक एफआईआर दर्ज करने से पहले घटना और आरोपों की सत्यता की जांच की जाए, ताकि वास्तविक पीड़ित को ही सुरक्षा और मुआवजा मिल सके और झूठी शिकायत कर सरकार से मुआवजा लेने वालों के खिलाफ धारा 214 में कार्रवाई कर दंडित किया जा सके.

कोर्ट ने कहा कि सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कानून का दुरुपयोग न्याय प्रणाली पर संदेह और जन विश्वास को नुकसान पहुंचाता है इसलिए एफआईआर का सत्यापन जरूरी है. इसके लिए पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने झूठी शिकायत कर सरकार से लिया गया 75 हजार रुपये का मुआवजा सरकार को लौटाते हुए दोनों पक्षों में समझौते की पुष्टि के कारण अपर सत्र न्यायाधीश और विशेष अदालत में चल रही एससी एसटी एक्ट की केस कार्यवाही रद्द कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने विहारी और दो अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है.

बता दें कि, थाना कैला देवी संभल में दर्ज एससी एसटी एक्ट की एफआईआर पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, सरकार ने पीड़ित को 75 हजार रुपये मुआवजा दिया. बाद में दोनों पक्षों में समझौता हो गया तो आपराधिक केस रद्द करने के लिए याचिका की गई. कोर्ट ने शिकायतकर्ता को तलब कर सरकार से लिया मुआवजा वापस करने का आदेश दिया. जिला समाज कल्याण अधिकारी के नाम डिमांड ड्राफ्ट डीएम को जमा कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया.

कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि संज्ञेय और असंज्ञेय दोनों अपराध को समझौते से समाप्त किया जा सकता है, इसलिए पक्षकारों के बीच समझौते को सही माना और आदेश दिया कि शेष बकाया मुआवजा 25 हजार रुपये का भुगतान न किया जाए. शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में आने पर कहा कि गांव वालों के उकसाने पर उसने झूठी रिपोर्ट लिखाई थी. कोर्ट ने कहा कि, यह एक्ट पीड़ित कमजोर तबके को तुरंत न्याय देने का साधन है लेकिन कई मामलों में पता चला है कि सरकार से मुआवजा लेने के लिए झूठे केस दर्ज हो रहे हैं.

यह भी पढ़ें:देश के 8 हाईकोर्ट को मिलेंगे नए चीफ जस्टिस, केंद्र सरकार ने जारी की अधिसूचना - 8 High Courts new Chief Justices

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निजी आर्थिक लाभ की लालच में एससी एसटी एक्ट के दुरुपयोग को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार को निगरानी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब तक तंत्र विकसित नहीं हो जाता, तब तक एफआईआर दर्ज करने से पहले घटना और आरोपों की सत्यता की जांच की जाए, ताकि वास्तविक पीड़ित को ही सुरक्षा और मुआवजा मिल सके और झूठी शिकायत कर सरकार से मुआवजा लेने वालों के खिलाफ धारा 214 में कार्रवाई कर दंडित किया जा सके.

कोर्ट ने कहा कि सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कानून का दुरुपयोग न्याय प्रणाली पर संदेह और जन विश्वास को नुकसान पहुंचाता है इसलिए एफआईआर का सत्यापन जरूरी है. इसके लिए पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने झूठी शिकायत कर सरकार से लिया गया 75 हजार रुपये का मुआवजा सरकार को लौटाते हुए दोनों पक्षों में समझौते की पुष्टि के कारण अपर सत्र न्यायाधीश और विशेष अदालत में चल रही एससी एसटी एक्ट की केस कार्यवाही रद्द कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने विहारी और दो अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है.

बता दें कि, थाना कैला देवी संभल में दर्ज एससी एसटी एक्ट की एफआईआर पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, सरकार ने पीड़ित को 75 हजार रुपये मुआवजा दिया. बाद में दोनों पक्षों में समझौता हो गया तो आपराधिक केस रद्द करने के लिए याचिका की गई. कोर्ट ने शिकायतकर्ता को तलब कर सरकार से लिया मुआवजा वापस करने का आदेश दिया. जिला समाज कल्याण अधिकारी के नाम डिमांड ड्राफ्ट डीएम को जमा कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया गया.

कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि संज्ञेय और असंज्ञेय दोनों अपराध को समझौते से समाप्त किया जा सकता है, इसलिए पक्षकारों के बीच समझौते को सही माना और आदेश दिया कि शेष बकाया मुआवजा 25 हजार रुपये का भुगतान न किया जाए. शिकायतकर्ता ने हाईकोर्ट में आने पर कहा कि गांव वालों के उकसाने पर उसने झूठी रिपोर्ट लिखाई थी. कोर्ट ने कहा कि, यह एक्ट पीड़ित कमजोर तबके को तुरंत न्याय देने का साधन है लेकिन कई मामलों में पता चला है कि सरकार से मुआवजा लेने के लिए झूठे केस दर्ज हो रहे हैं.

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