प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि विभागीय जांच के बगैर अपराध में सजा पर बर्खास्त ट्यूबवेल आपरेटर यदि सेवारत रहते बरी हुआ होता तो बगैर बकाया वेतन के बहाल हो सकता था. लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद अपराध से बरी होने में उसे कोई राहत पाने का अधिकार नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने नेतराम की याचिका पर दिया है.
कोर्ट ने कहा याची अस्थाई ट्यूबवेल आपरेटर ने एक साल तीन माह की सेवा में ही 30 रुपये बतौर रिश्वत लिए और जिसके लिए उसे एक साल व एक सौ रुपये जुर्माने की सजा मिली तो बर्खास्त कर दिया. उसकी अपील मंजूर हुई और संदेह का लाभ देते हुए कोर्ट ने 2023 में उसे बरी कर दिया. वह वर्ष 2016 में ही रिटायर हो गया था. पिछली तिथि से बहाली सहित पेंशन की मांग नहीं मानी गई तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. कोर्ट ने अस्थाई कर्मचारी होने के कारण कोई राहत देने से इनकार कर दिया.
बरेली के अधिशासी अभियंता ने 17 अगस्त 1977 को याची को ट्यूबवेल आपरेटर नियुक्त किया था. वह फतेहगंज वेस्ट में तैनात था. याची ने पूरनलाल यदुवंशी से उनकी फसल सिंचाई में न दर्ज करने के लिए 15 दिसंबर 1978 को 30 रुपये घूस ली, जिसकी एफआईआर दर्ज की गई और अदालत ने सजा सुनाई. ट्यूबवेल आपरेटर को 28 दिसंबर 1983 को बर्खास्त कर दिया गया. सजा के खिलाफ उसकी अपील मंजूर हुई और एक फरवरी 2023 को उसे बरी कर दिया गया, लेकिन वह पहले ही रिटायरमेंट आयु पार कर चुका था.
राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता गिरिजेश त्रिपाठी ने कहा कि याची संदेह का लाभ लेकर बरी हुआ है, सम्मानजनक बरी नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि बर्खास्तगी बिना विभागीय जांच के सजा के आधार पर की गई है. लेकिन अनुच्छेद 311(2) के तहत वह राहत पाने का अधिकारी नहीं है. उसकी अस्थाई सेवा एक माह की नोटिस पर कभी भी समाप्त की जा सकती है, विभागीय जांच की आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि याची सेवा में बहाल नहीं किया जा सकता, इसलिए वह अन्य लाभ भी नहीं पा सकता. ऐसी स्थिति में उसे कोई राहत नहीं दी जा सकती.