प्रयागराज: माफिया मुख्तार के साले आतिफ रज़ा और अन्य अभियुक्तों को वेयर हाउस की ज़मीन धोखाधडी मामले में हाईकोर्ट से झटका लगा है. कोर्ट ने इस मामले में चल रही अपराधिक कार्यवाही में सीजेएम गाजीपुर द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने से इंकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आपराधिक और सिविल कार्यवाही साथ साथ चल सकती है. आतिफ और तीन अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने यह आदेश दिया. याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल चतुर्वेदी जबकि प्रदेश सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता पीसी श्रीवास्तव ने पक्ष रखा.
आतिफ उर्फ शरजील, उसके भाई अनवर शहजाद, जाकिर हुसैन और रविंद्र नारायण सिंह के खिलाफ गाजीपुर के नंद गांव थाने में 2 अक्टूबर 2021 को धोखाधड़ी और कागजातों में हेरफेर कर वेयरहाउस के लिए जमीन फर्जी तरीके से हथियाने का मुकदमा यूपी स्टेट वेयरहाउसिंग कारपोरेशन के जनरल मैनेजर शिव प्रताप सिंह ने दर्ज कराया था.
आरोप है कि अभियुक्तों ने वेयरहाउस के लिए लगभग 13 बीघा जमीन गलत तरीके से हथिया ली. इसका एक बड़ा हिस्सा तालाब का था जबकि जमीन का काफी हिस्सा ऐसा था जो हस्तांतरणीय नहीं था. जमीन मूल भू स्वामियों के बजाय फर्जी भू स्वामियों के नाम दिखाकर अपने नाम लिखा ली गयी. वेयरहाउस के लिए जारी टेंडर की शर्तों का उल्लंघन किया गया और 2 करोड़ 32 लाख रुपये की सरकारी सब्सिडी भी हासिल की गई.
विकास कंस्ट्रक्शन के नाम से बनाए गए वेयर हाउस में मुख्तार के सालों के अलावा उनकी पत्नी अफ़सा अंसारी की भी भागीदारी है. याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि भूमि की प्रकृति निश्चित करने का क्षेत्राधिकार राजस्व और बंदोबस्त न्यायालयों के पास है, जिसकी सिविल कार्यवाही राजस्व अदालत में लंबित है. इस मामले में आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती है. वरिष्ठ अधिवक्ता ने यह भी दलित दी कि सिविल न्यायालय का फैसला आने तक आपराधिक कार्रवाई को स्थगित किया जाए.
याचिका का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता पीसी श्रीवास्तव, अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता सुधांशु श्रीवास्तव और अपर शासकीय अधिवक्ता विकास सहाय ने कहा कि जमीन को हथिया कर वेयरहाउस बनाने में आपराधिक षडयंत्र किया गया है. तालाब की जमीन को कागजों में हेरफेर कर उसका भू उपयोग बदल गया साथ ही फर्जी लोगों को भू स्वामी बनाकर उनसे कागजों पर अंगूठा लगाकर जमीन हथियाई गई है. इस वेयरहाउस से याची गण हर साल 5 करोड़ 80 लाख रुपये किराया प्राप्त कर रहे थे.
उनके इस कृत्य से राज्य सरकार को राजस्व की भारी क्षति हुई है. अपर महाधिवक्ता ने कहा कि इस मामले में सिविल और आपराधिक कार्रवाई साथ-साथ चल सकती है. कोर्ट ने कहा कि याची के अधिवक्ता की यह दलील नहीं स्वीकार कर की जा सकती है कि इस मामले में सिविल के साथ आपराधिक कार्रवाई चलाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है. कोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी है.
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