प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सम्मन आदेश के तामील करने में देरी करने वाले पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही तय करने और न्यायिक अधिकारियों को सम्मन तामील होने या न होने की स्थिति फाइल पर दर्ज करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने डीजीपी को अदालत से जारी सम्मन आदेश का समय से तामील करने के लिए परिपत्र जारी करने को आदेश की कॉपी भेजने का निर्देश दिया है. साथ ही महानिबंधक से सभी जिला जजों को भी आदेश भेजने को कहा है.
कोर्ट ने कहा कि सम्मन तामील करने में देरी से न्याय मिलने में देरी होती है. न्यायिक कार्य प्रणाली में इससे अनिश्चितता आती है और न्यायिक तंत्र पर जन विश्वास कमजोर होता है. साथ ही अदालतों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता है. सम्मन का समय से तामील किया जाना न्यायिक कार्य प्रणाली की पवित्रता और निष्पक्षता कायम रहती है.
यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने विजय कुमार कुशवाहा और तीन अन्य की याचिका पर दिया. कोर्ट ने सम्मन तामील न होने की सरकारी वकील से जानकारी मांगी तो बताया गया कि पते पर तीन बार पुलिस गई, लेकिन कोई नहीं मिला.
कोर्ट ने कहा कि अक्सर संज्ञान में आया है कि सम्मन तामील करने में अधिकारियों की लापरवाही के कारण न्याय देने में देरी होती है. यह कमी उचित न्याय देने की प्रक्रिया में बाधक है. समय से सम्मन तामील न होने से कोर्ट के कीमती समय की बर्बादी होती है. वादकारी पर अनुचित दबाव पड़ता है, इसलिए इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए.
ये भी पढ़ें- महाकुंभ 2025: केंद्र और राज्य सरकार को 2 लाख करोड़ का फायदा होने की उम्मीद