प्रयागराज: पत्नी को तीन तलाक देने के आरोपी को हाईकोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में शुक्रवार को कहा कि इस विवाद में तथ्यों के समीक्षा की अवश्यकता है, जो ट्रायल कोर्ट बेहतर तरीके से कर सकता है. साथ ही कोर्ट ने याची को दूसरा विवाह करने के मामले में अधीनस्थ न्यायालय को समन आदेश को रद्द कर दिया.
गोरखपुर के जान मोहम्मद की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने उनके अधिवक्ता सैयद वाजिद अली की दलील सुनकर दिया. जान मोहम्मद के खिलाफ उनकी पत्नी ने मुस्लिम महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 3/4 और आईपीसी की धारा 494 के तहत मुकदमा दर्ज कराया था. आरोप है कि जान मोहम्मद ने पत्नी को लगातार तीन बार तलाक बोलकर 'तलाक ए बिद्दत' दिया है, जो गैरकानूनी है. यह भी आरोप लगाया कि तलाक पूरा हुए बिना उन्होंने दूसरा विवाह भी कर लिया. पुलिस ने इस मामले में प्राथमिक की दर्ज कर विवेचना के बाद आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया. इस पर संज्ञान लेते हुए एसीजेएम कोर्ट गोरखपुर ने याची को समन जारी कर तलब किया. इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई.
याची के अधिवक्ता का कहना था कि उसने तीन तलाक नहीं दिया है. बल्कि नियम अनुसार एक-एक माह के अंतराल पर तीन बार नोटिस देने के बाद तलाक दिया है, जो की कानूनी रूप से मान्य है. अपर शासकीय अधिवक्ता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि पीड़ित महिला ने बयान में स्पष्ट रूप से आरोप लगाया है कि याची ने उसे तीन तलाक दिया है. उसके बेटे के बयान में भी इस बात की पुष्टि हुई है. इसलिए समन आदेश रद्द करने का औचित्य नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि यह मामला तथ्यों पर आधारित है. याची की ओर से तीन बार नोटिस दिए जाने के साक्ष्य और पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप की समीक्षा करने के बाद ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है. यह कार्य ट्रायल कोर्ट ही कर सकती है. कोर्ट ने कहा की विधि के प्रश्नों पर भी ट्रायल कोर्ट बेहतर तरीके से निष्कर्ष निकाल सकती है.
जहां तक दूसरे विवाह को लेकर लगाए गए आरोपों की बात है कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 494 सीआरपीसी की धारा 198 से बाधित है, इसलिए न्यायालय इस पर संज्ञान नहीं ले सकता है. इस मामले में परिवाद ही दर्ज कराया जा सकता है. पीड़ित महिला की ओर से अभी तक कोई परिवाद नहीं दर्ज कराया गया है. कोर्ट ने धारा 494 के तहत जारी समन आदेश को रद्द कर दिया है. तीन तलाक के मामले पर अधीनस्थ न्यायालय के समक्ष जाने का निर्देश दिया है.
फ्रॉड वाले सिविल विवादों में चल सकता है आपराधिक वाद: हाई कोर्ट
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसे सिविल मामले जिनमें विशेष रूप से किसी फ्रॉड या आपराधिक कृत्य का आरोप है उनमें सिविल विवाद लंबित होने के बावजूद आपराधिक वाद चलाया जा सकता है. कोर्ट ने सिविल वाद का हवाला देते हुए दर्ज किए गए धोखाधड़ी सहित अन्य मुकदमों को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है. न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला व न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने हुसैन जैदी उर्फ गुड्डू की याचिका यह आदेश दिया.