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चेक बाउंस मामला: हाईकोर्ट का निर्देश, कंपनी दिवालिया होने पर भी निर्देशक अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 14, 2024, 10:02 PM IST

चेक बाउंस मामले में हाईकोर्ट ने ट्रायल (check bounce case ) करने का निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि कंपनी दिवालिया होने पर भी निर्देशक अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कंपनी दिवालिया हो गई है, तब भी उसके निर्देशक अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते हैं. चेक बाउंस के मामले में कोर्ट ने कंपनी के निर्देशक की ओर से दाखिल याचिका खारिज करते हुए कहा कि एक व्यक्ति जो कंपनी का निदेशक है और सभी मामलों का प्रभारी है, उसके कार्यों की समीक्षा सिर्फ मुकदमे के ट्रायल से ही संभव है. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को प्रतिदिन सुनवाई कर 3 माह में विचरण पूरा करने का निर्देश दिया. वालेछा इंजीनियरिंग कंपनी के निदेशक दिनेश हरिराम वालेछा की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिया.

वालेछा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर स्पेशल सीजेएम इटावा की कोर्ट में चल रहे चेक बाउंस के परिवाद में जारी 23 अक्टूबर 2019 के सम्मन आदेश को चुनौती दी थी. साथ ही दर्ज परिवाद की कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी. मामले के अनुसार वालेचा इंजीनियरिंग कंपनी ने विपक्षी पार्टी को कुछ कार्यों का ठेका दिया था. इसके एवज में उसे 7 करोड़ 18 लाख 65000 से अधिक का भुगतान करना था. कंपनी ने विपक्षी को 6.50 करोड रुपये चेक से भुगतान किया. लेकिन, यह चेक बाउंस हो गया. विपक्षी कंपनी ने याची की कंपनी को नोटिस दिया. लेकिन, कंपनी की ओर से ना तो नोटिस का कोई जवाब दिया गया और ना ही भुगतान किया गया.

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इसके बाद विपक्षी ने न्यायालय में परिवाद दाखिल कर दिया. परिवाद दाखिल होने के बाद अदालत ने याची की कंपनी के निदेशकों को कई बार सम्मन और गैर जमानती वारंट जारी कर तलब किया. लेकिन, वह बार-बार अदालत में हाजिर होने से बचते रहे. यहां तक की निर्देशकों के खिलाफ कुर्की की प्रक्रिया भी शुरू की गई. इसके बाद कुछ निदेशकों ने अदालत में उपस्थित होकर जमानत करा ली, फिर उपस्थित नहीं हुए. बार-बार हाजिरी माफी की अर्जी लगाकर उपस्थिति से बचते रहे.इस बीच विपक्षी कंपनी की याचिका पर हाईकोर्ट ने मुकदमे का ट्रायल 6 माह में पूरा करने का निर्देश दिया. इसके बावजूद कंपनी के निदेशक बार-बार अदालत में हाजिर होने से बचते रहे.

याची की ओर से दलील दी गई कि विपक्षी द्वारा जारी नोटिस में तारीख का जिक्र नहीं किया गया है और ना ही निदेशक की कोई भूमिका बताई गई है. निदेशक ने कंपनी के एक कर्मचारी को चेक साइन करने की पावर ऑफ अटॉर्नी दी थी, जो की चेक जारी किए जाने के समय समाप्त हो चुकी थी. निदेशक की इसमें कोई भूमिका नहीं है. यह भी कहा गया, कि कंपनी दिवालिया हो गई है और इसकी प्रक्रिया नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में चल रही है.

कोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट पर भी कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, कि इस अदालत ने 9 सितंबर 2020 को मुकदमे का ट्रायल 6 माह में पूरा करने का निर्देश ट्रायल कोर्ट को दिया था. लेकिन, हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया गया और ट्रायल कोर्ट बड़ी सहूलियत से आरोपियों को तारीख देती रही और सभी निर्देशकों को उपस्थिति से छूट मिलती रही. ट्रायल कोर्ट का यह कार्य वास्तव में अवमानना जनक है. कोर्ट ने कहा कि याची और अन्य निदेशक मुकदमे का ट्रायल विलंबित करने के लिए हर चाल चल रहे हैं, यहां तक कि यदि कंपनी दिवालिया हो गई है तब भी उसके निर्देशक अपनी जिम्मेदारियां से बच नहीं सकते.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कंपनी दिवालिया हो गई है, तब भी उसके निर्देशक अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते हैं. चेक बाउंस के मामले में कोर्ट ने कंपनी के निर्देशक की ओर से दाखिल याचिका खारिज करते हुए कहा कि एक व्यक्ति जो कंपनी का निदेशक है और सभी मामलों का प्रभारी है, उसके कार्यों की समीक्षा सिर्फ मुकदमे के ट्रायल से ही संभव है. कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को प्रतिदिन सुनवाई कर 3 माह में विचरण पूरा करने का निर्देश दिया. वालेछा इंजीनियरिंग कंपनी के निदेशक दिनेश हरिराम वालेछा की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने दिया.

वालेछा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर स्पेशल सीजेएम इटावा की कोर्ट में चल रहे चेक बाउंस के परिवाद में जारी 23 अक्टूबर 2019 के सम्मन आदेश को चुनौती दी थी. साथ ही दर्ज परिवाद की कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी. मामले के अनुसार वालेचा इंजीनियरिंग कंपनी ने विपक्षी पार्टी को कुछ कार्यों का ठेका दिया था. इसके एवज में उसे 7 करोड़ 18 लाख 65000 से अधिक का भुगतान करना था. कंपनी ने विपक्षी को 6.50 करोड रुपये चेक से भुगतान किया. लेकिन, यह चेक बाउंस हो गया. विपक्षी कंपनी ने याची की कंपनी को नोटिस दिया. लेकिन, कंपनी की ओर से ना तो नोटिस का कोई जवाब दिया गया और ना ही भुगतान किया गया.

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इसके बाद विपक्षी ने न्यायालय में परिवाद दाखिल कर दिया. परिवाद दाखिल होने के बाद अदालत ने याची की कंपनी के निदेशकों को कई बार सम्मन और गैर जमानती वारंट जारी कर तलब किया. लेकिन, वह बार-बार अदालत में हाजिर होने से बचते रहे. यहां तक की निर्देशकों के खिलाफ कुर्की की प्रक्रिया भी शुरू की गई. इसके बाद कुछ निदेशकों ने अदालत में उपस्थित होकर जमानत करा ली, फिर उपस्थित नहीं हुए. बार-बार हाजिरी माफी की अर्जी लगाकर उपस्थिति से बचते रहे.इस बीच विपक्षी कंपनी की याचिका पर हाईकोर्ट ने मुकदमे का ट्रायल 6 माह में पूरा करने का निर्देश दिया. इसके बावजूद कंपनी के निदेशक बार-बार अदालत में हाजिर होने से बचते रहे.

याची की ओर से दलील दी गई कि विपक्षी द्वारा जारी नोटिस में तारीख का जिक्र नहीं किया गया है और ना ही निदेशक की कोई भूमिका बताई गई है. निदेशक ने कंपनी के एक कर्मचारी को चेक साइन करने की पावर ऑफ अटॉर्नी दी थी, जो की चेक जारी किए जाने के समय समाप्त हो चुकी थी. निदेशक की इसमें कोई भूमिका नहीं है. यह भी कहा गया, कि कंपनी दिवालिया हो गई है और इसकी प्रक्रिया नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में चल रही है.

कोर्ट ने इस मामले में ट्रायल कोर्ट पर भी कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा, कि इस अदालत ने 9 सितंबर 2020 को मुकदमे का ट्रायल 6 माह में पूरा करने का निर्देश ट्रायल कोर्ट को दिया था. लेकिन, हाईकोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया गया और ट्रायल कोर्ट बड़ी सहूलियत से आरोपियों को तारीख देती रही और सभी निर्देशकों को उपस्थिति से छूट मिलती रही. ट्रायल कोर्ट का यह कार्य वास्तव में अवमानना जनक है. कोर्ट ने कहा कि याची और अन्य निदेशक मुकदमे का ट्रायल विलंबित करने के लिए हर चाल चल रहे हैं, यहां तक कि यदि कंपनी दिवालिया हो गई है तब भी उसके निर्देशक अपनी जिम्मेदारियां से बच नहीं सकते.

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