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अकबर नगर मामला; करदाता कब्जेदारों की याचिकाएं हाईकोर्ट ने की खारिज, करोड़ों की जीएसटी भरने वालों के कब्जे अवैध घोषित - अकबरनगर ध्वस्तीकरण याचिका

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अकबर नगर मामले में करदाता कब्जेदारों की सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. उक्त कब्जेदारों में लाखों और करोड़ों की जीएसटी भरने वाले लोग शामिल हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 27, 2024, 10:45 PM IST

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अकबर नगर मामले में करदाता कब्जेदारों की सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. उक्त कब्जेदारों में लाखों और करोड़ों की जीएसटी भरने वाले लोग शामिल हैं. न्यायालय ने इन सभी को झुग्गीवासी मानने से इंकार करते हुए, इनके कब्जों को अवैध माना है. यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने सैयद हमीदुल बारी समेत दर्जनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया है. अकबर नगर मामले में सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इन करदाता कब्जेदारों की याचिकाओं को गरीब और वास्तविक झुग्गीवासी कब्जेदारों की याचिकाओं से अलग कर दिया था.

अपने निर्णय में न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान याचियों के द्वारा स्वीकार किया गया है कि उक्त जमीनें राज्य सरकार की हैं और उन पर बने शो-रूम्स और फर्नीचर के कारखाने अनाधिकृत और अवैध हैं. हालांकि उनकी ओर से खुद को झुग्गीवासी बताते हुए मलिन बस्ती पुनर्विकास नीति 2021 का लाभ दिए जाने की मांग की गई. इस पर न्यायालय ने कहा कि मान लीजिए कि किसी स्लम एरिया में एक व्यापारी वास्तविक झुग्गीवासियों से एक बड़ी जमीन कब्जे में ले और बिना किसी वैध अनुमति के मल्टीप्लेक्स या होटल या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दे और बाद में वह स्वयं को झुग्गीवासी बताते हुए राहत दिए जाने की मांग करे तो क्या उसे झुग्गीवासी मानते हुए राहत दिया जाना संभव है.

न्यायालय ने कहा कि हमारा जवाब है नहीं. न्यायालय ने कहा कि झुग्गीवासी वे लोग होते हैं, जो गरीबी और परिस्थितियोंवश अमानवीय हालात में रहते हैं. उन्हें मिलने वाली सहानुभूति वर्तमान याचियों को नहीं दी जा सकती. न्यायालय ने आगे कहा कि इन सभी याचियों के शो रूम्स और कारखाने फैजाबाद-लखनऊ मुख्य मार्ग पर स्थित हैं, जो शहर की सबसे चौड़ी सड़कों में से एक है और वहां नगर निगम की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं. सिर्फ इसलिए कि उस जगह का नाम अकबर नगर है, उन्हें झुग्गी (स्लम) नहीं कहा जा सकता. न्यायालय ने कहा कि वास्तविक झुग्गियां तो इन शो-रूम्स के बाद शुरू होती हैं. न्यायालय ने यह भी पाया कि याचीगण लाखों और करोड़ों की जीएसटी भर रहे हैं और उनकी दूसरी सम्पत्तियां शहर के पाश इलाकों में भी हैं.

यह भी पढ़ें : अकबरनगर में दूसरे दिन चला बुलडोजर ; आशियाना उजड़ते देख रोने लगे बच्चे और महिलाएं, किया पथराव

लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अकबर नगर मामले में करदाता कब्जेदारों की सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है. उक्त कब्जेदारों में लाखों और करोड़ों की जीएसटी भरने वाले लोग शामिल हैं. न्यायालय ने इन सभी को झुग्गीवासी मानने से इंकार करते हुए, इनके कब्जों को अवैध माना है. यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने सैयद हमीदुल बारी समेत दर्जनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया है. अकबर नगर मामले में सुनवाई के दौरान न्यायालय ने इन करदाता कब्जेदारों की याचिकाओं को गरीब और वास्तविक झुग्गीवासी कब्जेदारों की याचिकाओं से अलग कर दिया था.

अपने निर्णय में न्यायालय ने कहा कि सुनवाई के दौरान याचियों के द्वारा स्वीकार किया गया है कि उक्त जमीनें राज्य सरकार की हैं और उन पर बने शो-रूम्स और फर्नीचर के कारखाने अनाधिकृत और अवैध हैं. हालांकि उनकी ओर से खुद को झुग्गीवासी बताते हुए मलिन बस्ती पुनर्विकास नीति 2021 का लाभ दिए जाने की मांग की गई. इस पर न्यायालय ने कहा कि मान लीजिए कि किसी स्लम एरिया में एक व्यापारी वास्तविक झुग्गीवासियों से एक बड़ी जमीन कब्जे में ले और बिना किसी वैध अनुमति के मल्टीप्लेक्स या होटल या शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दे और बाद में वह स्वयं को झुग्गीवासी बताते हुए राहत दिए जाने की मांग करे तो क्या उसे झुग्गीवासी मानते हुए राहत दिया जाना संभव है.

न्यायालय ने कहा कि हमारा जवाब है नहीं. न्यायालय ने कहा कि झुग्गीवासी वे लोग होते हैं, जो गरीबी और परिस्थितियोंवश अमानवीय हालात में रहते हैं. उन्हें मिलने वाली सहानुभूति वर्तमान याचियों को नहीं दी जा सकती. न्यायालय ने आगे कहा कि इन सभी याचियों के शो रूम्स और कारखाने फैजाबाद-लखनऊ मुख्य मार्ग पर स्थित हैं, जो शहर की सबसे चौड़ी सड़कों में से एक है और वहां नगर निगम की सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं. सिर्फ इसलिए कि उस जगह का नाम अकबर नगर है, उन्हें झुग्गी (स्लम) नहीं कहा जा सकता. न्यायालय ने कहा कि वास्तविक झुग्गियां तो इन शो-रूम्स के बाद शुरू होती हैं. न्यायालय ने यह भी पाया कि याचीगण लाखों और करोड़ों की जीएसटी भर रहे हैं और उनकी दूसरी सम्पत्तियां शहर के पाश इलाकों में भी हैं.

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