नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव को लेकर एबीवीपी और एनएसयूआई के साथ ही अब वामपंथी छात्र संगठनों ने भी अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं. इस बार दोनों प्रमुख वामपंथी छात्र संगठन, ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (आइसा) और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने पहली बार साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
एसएफआई की ओर से दिल्ली की प्रदेश सचिव आइशी घोष और आइसा की ओर से दिल्ली की प्रदेश सचिव नेहा तिवारी ने संयुक्त रूप से दो-दो सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. दोनों संगठनों की ओर से संयुक्त वक्तव्य में कहा गया है कि इस बार के डूसू चुनाव में आइसा अध्यक्ष व उपाध्यक्ष और एसएफआई सचिव व संयुक्त सचिव के पद पर अपने प्रत्याशी उतारेगी.
आइसा और एसएफआई ने किया गठबंधन: आइसा की प्रदेश सचिव नेहा तिवारी ने बताया कि हमारे संभावित उम्मीदवार 17 और 18 सितंबर को नामांकन करेंगे. नामांकन के अंतिम दिन 19 सितंबर को हम अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद के उम्मीदवारों की घोषणा करेंगे. वहीं, एसएफआई, नामांकन पत्रों की जांच के बाद 20 सितंबर को अपने प्रत्याशियों की घोषणा की जाएगी.
उल्लेखनीय है कि डूसू चुनाव में पहली बार ऐसा हो रहा है जब आइसा और एसएफआई ने गठबंधन किया है. पिछले काफी सालों से मुख्य मुकाबला एबीवीपी और एनएसयूआई के बीच ही होता रहा है. साथ ही वामपंथी छात्र संगठन तीसरे नंबर पर रहते हैं. इस बार गठबंधन करने से वामपंथी छात्र संगठनों को अपना प्रदर्शन और बेहतर होने की उम्मीद है. पिछले साल के डूसू चुनाव में विद्यार्थी परिषद ने तीन पदों अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव पर जीत दर्जी की थी. जबकि एनएसयूआई ने उपाध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की थी. जबकि वामपंथी प्रत्याशी तीसरे और चौथे नंबर पर रहे थे.
आइसा-एसएफआई ने एबीवीपी पर लगाया गंभीर आरोप: आइसा और एसएफआई के पदाधिकारियों ने कहा कि हमारे देश में छात्र राजनीति में धन और बाहुबल का चरमोत्कर्ष है. हर साल हम देखते हैं कि हवा में छपे हुए पर्चे उड़ाए जाते हैं. कारों की बड़ी-बड़ी रैलियां निकलती हैं. पार्टियों और समूहों के बीच हिंसा भड़कती है, क्योंकि वे राजनीति में अपना करियर बनाने के लिए एक-दूसरे पर हमला करने से भी नहीं चूकते. इस सारे शोरगुल में कैंपस के मुद्दे और छात्रों की मांगें गुम हो जाती हैं.
आइसा और एसएफआई ने आरोप लगाया कि हर साल एबीवीपी बड़े-बड़े वादों के साथ सत्ता में आती है और हर साल वही वादे दोहराती है. पिछले दस सालों में एबीवीपी का दबदबा राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा-आरएसएस के हाथों में सत्ता के एकीकरण से संभव हुआ है. एनईपी (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी) की शुरूआत से लेकर फीस बढ़ोतरी तक, सार्वजनिक शिक्षा को खत्म करने और डीयू को बर्बाद करने के हर कदम को एबीवीपी ने बेशर्मी से समर्थन दिया है.
आइसा और एसएफआई की मुख्य मांगें: आइसा और एसएफआई की ओर से बताया गया कि हमारी मुख्य मांगें, सभी कॉलेजों में निर्वाचित आईसीसी और जेंडर सेंसिटाइजेशन सेल की स्थापना कराना है. स्किल एनहेंसमेंट कोर्स (एसईसी) और वीएसी के फर्जी पाठ्यक्रमों को खत्म करना. आंतरिक मूल्यांकन योजना को संशोधित करना. अनिवार्य उपस्थिति और निषेध नीति को समाप्त कराना. फीस वृद्धि को समाप्त कराना. नए छात्रावासों का निर्माण कराना, किराया नियंत्रण अधिनियम को लागू कराना. रियायती मेट्रो पास सुनिश्चित कराना है. आने वाले दिनों में दोनों संगठन अपना घोषणा पत्र भी जारी करेंगे.
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