वाराणसी: बनारस में देव दीपावली का पर्व मनाया जाना बाकी है. इससे ठीक 15 दिन पहले दीपावली का त्योहार मनाया गया है. इस मौके पर काशीवासियों ने जमकर पटाखे फोड़े हैं. इसका परिणाम अब ये है कि सबसे अधिक हरा-भरा क्षेत्र माना जाने वाला काशी हिन्दू विश्वविद्यालय सांस लेने योग्य नहीं रहा. जहां सुबह 4 बजे AQI 174 वहीं सुबह के 9:30 तक यह 142 तक आ सका. यानी 05 घंटे बाद भी हवा में प्रदूषण की मात्रा बनी रही.
दीपावली पर बनारस में जमकर पटाखे फूटे हैं. इसका असर अब हवाओं में दिखाई दे रहा है. काशी की हवा में धुंध और पटाखों का 'जहर' घुल गया है. हम ये बाद AQI लेवल यानी Air Quality Index के आधार पर कह रहे हैं. रविवार की सुबह 4 बजे बनारस में AQI 166 आंका गया है. बीएचयू सुबह 4 बजे 174 और भेलूपुर में AQI 161 दर्ज किया गया है. ये दोनों सबसे अधिक और सबसे कम स्तर हैं. ऐसे में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय क्षेत्र में सबसे अधिक खराब हवा का स्तर रहा.
क्या होता है Air Quality Index: सबसे पहले हम जान लेते हैं कि आखिर Air Quality Index क्या होता है. वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) एक ऐसा पैमाना है, जिससे पता चलता है कि हवा कितनी साफ या प्रदूषित है. यह अलग-अलग स्थानों के लिए पता लगाया जा सकता है. 0 से 500 तक के बीच इसका स्तर पता लगाया जाता है, जिसमें 0-50 अच्छी वायु गुणवत्ता, 51-100 संतोषजनक वायु गुणवत्ता, 101-200 मध्यम वायु गुणवत्ता, 201-300 खराब वायु गुणवत्ता, 301-400 बहुत खराब वायु गुणवत्ता और 401-500 गंभीर वायु गुणवत्ता माना गया है.
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वाराणसी में क्या रहा गुणवत्ता का स्तर: आज सुबह 9:30 बजे तक वाराणसी AQI 166 दर्ज किया गया. वहीं औसत AQI 172 था. अगर बात करें वाराणसी के सबसे हरे भरे क्षेत्र काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की तो वहां का AQI सुबह 4 बजे तक 174 और सुबह 9:30 बजे तक 142 दर्ज किया गया. इसके साथ ही अर्दली बाजार 124, भेलूपुर 119, मलदहिया 105, निराला नगर का AQI 119 दर्ज किया गया है. ये सबी Poor Quality में आते हैं. यानी कि हवा की गुणवत्ता का स्तर बनारस के इलाकों में खराब दर्ज किया गया है.
क्या कहते हैं चिकित्सक: चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के डॉ. अजय कुमार बताते हैं कि, अन्धाधुन्ध जलाए जा रहे पटाखों से वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है. उन्होंने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक एक लाख कारों के धुएं से जितना नुकसान पर्यावरण को होता है, उतना नुकसान कुछ घंटों की आतिशबाजी से हो जाता है. इनके अलावा और भी समस्याएं होने लगती हैं. ऐसे में हमें कोशिश करनी चाहिए कि धुंध में न निकलें और जरूरत हो तब मास्क जरूर लगाकर जाएं.