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बड़े अस्पताल के बुरे हाल: यूपी के इस एम्स को खुलने के पांच साल बाद भी सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर्स का इंतजार - super specialist AIIMS Gorakhpur

लोकसभा चुनाव 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी ने एम्स गोरखपुर का उद्घाटन किया था. उद्घाटन के 5 साल बाद भी इस एम्स में सुपर स्पेशियलिस्ट डॉक्टर तैनात नहीं है. डॉक्टर न होने की वजह से मरीजों को वापस मेडिकल कॉलेज या प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए जाना पड़ता है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 27, 2024, 7:50 AM IST

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गोरखपुर: गोरखपुर एम्स का उद्घाटन और ओपीडी की शुरुआत को अगर चुनावी राजनीति से जोडकर देखा जाए, तो गलत नहीं होगा. 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर एम्स में ओपीडी की शुरुआत की थी. इसके साथ यहां मरीजों के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया था. अबतक करीब बीस लाख मरीज यहां देखे भी जा चुके हैं. लेकिन, उद्घाटन के 5 साल बाद भी यह एम्स अपना गौरव हासिल नहीं कर पाया है.

सुपर स्पेशलिटी के एक भी डॉक्टर यहां अभी तक तैनात नहीं हो पाए हैं. गैस्ट्रो, हार्ट, नेफ्रो, न्यूरो, लीवर के डॉक्टर नहीं होने से मरीजों को अभी भी प्राईवेट अस्पतालों में ही इलाज कराना पड़ रहा है. इन डॉक्टर की तैनाती के लिए इंटरव्यू का कई बार कॉल हो चुका है. लेकिन, सुपर स्पेशियलिटी के डॉक्टर हैं कि आते ही नहीं. न्यूरो का एक डॉक्टर उधार जैसी स्थिति में एम्स में इलाज कर रहा है, जो हफ्ते में मात्र 2 दिन मरीजों को देखता है.

एम्स जैसे संस्थान का मतलब होता है, कि यहां किसी भी गम्भीर बीमारी से ग्रसित मरीज आयेगा, तो उसका इलाज एम्स में होगा. लेकिन, सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर नहीं होने से ऐसी समस्या मरीजों के सामने आ जाती है, जब वह यहां से मेडिकल कॉलेज या प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं.एम्स गोरखपुर में कुल 750 बेड पर मरीजों के भर्ती करने की सुविधा है. मौजूदा समय में करीब 450 बेड पर मरीज भर्ती किया जा रहे हैं. लेकिन, सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर और शिक्षकों के अभाव में 300 बेड का अस्पताल अभी क्रियाशील नहीं हो पा रहा है. कुल 65 पदों के लिए विज्ञापन बार-बार जारी किया जा रहा है. जिसमें गैस्ट्रो, यूरोलॉजी, न्यूरो सर्जरी, हार्ट, नेफ्रो के डॉक्टरों की डिमांड है, आवेदन भी आते हैं. लेकिन, इंटरव्यू के मानक पर एम्स के अनुरूप यह आवेदक खरे नहीं उतरते. जिससे, यहां की व्यवस्था चरमराई हुई है.

प्रबंधन नहीं चाहता सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर आए: सूत्रों की माने तो एम्स प्रबंधन में बैठे कुछ लोग यह नहीं चाहते, कि यहां पर सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर आए और वह अपनी सेवा दें. क्योंकि, इससे कुछ मठाधीशों की मठाधीसी चली जाएगी. बात यह भी निकलकर आ रही है, कि सुपर स्पेशलिटी का कोई भी डॉक्टर, ढाई लाख रुपये के अधिकतम पैकेज पर यहां नहीं आना चाहता. क्योंकि वह बाहर प्रतिदिन ढाई लाख रुपये की कमाई कर रहा है. ऐसे में वेतनमान भी सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर के लिए एक बड़ा कारण बन रहा है. साथ ही गोरखपुर के लिये वह इतनी कम कीमत पर खुद को नियोजित नहीं करना चाहते और दिल्ली, लखनऊ, इंदौर और पटना छोड़ना नहीं चाहते. एम्स के डायरेक्टर डॉ. गोपाल कृष्ण कहते हैं, कि सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर के लिए लगातार प्रयास जारी है. मानक पूरे नहीं होंगे, तो आरोग्य को नियुक्ति भी नहीं दी जा सकती.

यह भी पढ़े-नए साल पर पूर्वांचल के लोगों को मिलेगा बड़ा उपहारः गोरखपुर एम्स में लीवर, हार्ट, किडनी और न्यूरो की बीमारी का होगा इलाज

इन विभागों में चलती है OPD: एम्स गोरखपुर में एनेस्थिसियोलॉजी, एनाटॉमी, बायोकेमिस्ट्री, कम्युनिटी मेडिसिन एंड फैमिली मेडिसिन, डेंटिस्ट्री, डर्मेटोलॉजी, ईएनटी, फोरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी, जनरल मेडिसिन, जनरल सर्जरी, माइक्रोबायोलॉजी, ऑब्स्टेट्रिक्स, गायनेकोलॉजी, ऑप्थल्मोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स, पीडियाट्रिक्स, फार्माकोलॉजी और थेरेप्यूटिक्स, फिजिकल मेडिसिन शामिल है. जानलेवा बीमारियों से बचाने वाला कोई सुपर स्पेशलिटी का डॉक्टर नहीं है. गोरखपुर एम्स में वह कहीं नजर ही नहीं आता, जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का नाम लेने से बेहतर इलाज और भरोसे की तस्वीर मस्तिष्क में उभरती है. यह ऐसा एम्स है, जहां न सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और न ही सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा की व्यवस्था है. जिस अस्पताल में यह सुविधायें दिसंबर 2020 तक शुरू हो जानी थी, वह आज तक शुरू नहीं हो पाई है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जुलाई, 2016 को एम्स का शिलान्यास और 24 फरवरी, 2019 को वाह्य रोग विभाग (ओपीडी) का उद्घाटन किया था. एम्स का निर्माण दिसंबर, 2020 तक पूरा हो जाना था. मरीजों को सीटी स्कैन, एमआरआइ, ब्लड, यूरिन, एक्सरे अल्ट्रासाउंड जैसी जांच, लंबी कतार की वजह से बाहर करानी पड़ रही है.

नहीं खोज पाए सुपर स्पेशलिस्ट: एम्स ने ओपीडी तो शुरू कर दी, लेकिन सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को आजतक नहीं खोज पाए. यहां अभी तक एक भी सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को तैनात नहीं किया जा सका है. इस समय केवल डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) और सीनियर रेजीडेंट (एसआर) ही मरीजों का इलाज करते हैं. विरोधी दल सपा के नेता कीर्ति निधि पांडेय कहते हैं, कि मोदी जी ने चुनावी लाभ लेने के लिए एम्स का तो लोकार्पण कर दिया लेकिन, सुविधाओं की बहाली नहीं कर पाने में वह पूरी तरह फेल हैं. जिससे, दूर दराज से हजारों रुपये किराया खर्च कर एम्स पहुंचकर मरीज और उसके परिजन निराश होते हैं, और हारकर उसे बाहर इलाज करना पड़ता है.

इसे भी पढ़े-गंजेपन से परेशान हैं तो गोरखपुर एम्स आइए, फॉलिकुलर ग्राफ्टिंग टेक्नोलॉजी से कभी नहीं गिरेंगे बाल

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गोरखपुर: गोरखपुर एम्स का उद्घाटन और ओपीडी की शुरुआत को अगर चुनावी राजनीति से जोडकर देखा जाए, तो गलत नहीं होगा. 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर एम्स में ओपीडी की शुरुआत की थी. इसके साथ यहां मरीजों के आने का सिलसिला भी शुरू हो गया था. अबतक करीब बीस लाख मरीज यहां देखे भी जा चुके हैं. लेकिन, उद्घाटन के 5 साल बाद भी यह एम्स अपना गौरव हासिल नहीं कर पाया है.

सुपर स्पेशलिटी के एक भी डॉक्टर यहां अभी तक तैनात नहीं हो पाए हैं. गैस्ट्रो, हार्ट, नेफ्रो, न्यूरो, लीवर के डॉक्टर नहीं होने से मरीजों को अभी भी प्राईवेट अस्पतालों में ही इलाज कराना पड़ रहा है. इन डॉक्टर की तैनाती के लिए इंटरव्यू का कई बार कॉल हो चुका है. लेकिन, सुपर स्पेशियलिटी के डॉक्टर हैं कि आते ही नहीं. न्यूरो का एक डॉक्टर उधार जैसी स्थिति में एम्स में इलाज कर रहा है, जो हफ्ते में मात्र 2 दिन मरीजों को देखता है.

एम्स जैसे संस्थान का मतलब होता है, कि यहां किसी भी गम्भीर बीमारी से ग्रसित मरीज आयेगा, तो उसका इलाज एम्स में होगा. लेकिन, सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर नहीं होने से ऐसी समस्या मरीजों के सामने आ जाती है, जब वह यहां से मेडिकल कॉलेज या प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं.एम्स गोरखपुर में कुल 750 बेड पर मरीजों के भर्ती करने की सुविधा है. मौजूदा समय में करीब 450 बेड पर मरीज भर्ती किया जा रहे हैं. लेकिन, सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर और शिक्षकों के अभाव में 300 बेड का अस्पताल अभी क्रियाशील नहीं हो पा रहा है. कुल 65 पदों के लिए विज्ञापन बार-बार जारी किया जा रहा है. जिसमें गैस्ट्रो, यूरोलॉजी, न्यूरो सर्जरी, हार्ट, नेफ्रो के डॉक्टरों की डिमांड है, आवेदन भी आते हैं. लेकिन, इंटरव्यू के मानक पर एम्स के अनुरूप यह आवेदक खरे नहीं उतरते. जिससे, यहां की व्यवस्था चरमराई हुई है.

प्रबंधन नहीं चाहता सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर आए: सूत्रों की माने तो एम्स प्रबंधन में बैठे कुछ लोग यह नहीं चाहते, कि यहां पर सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर आए और वह अपनी सेवा दें. क्योंकि, इससे कुछ मठाधीशों की मठाधीसी चली जाएगी. बात यह भी निकलकर आ रही है, कि सुपर स्पेशलिटी का कोई भी डॉक्टर, ढाई लाख रुपये के अधिकतम पैकेज पर यहां नहीं आना चाहता. क्योंकि वह बाहर प्रतिदिन ढाई लाख रुपये की कमाई कर रहा है. ऐसे में वेतनमान भी सुपर स्पेशलिटी के डॉक्टर के लिए एक बड़ा कारण बन रहा है. साथ ही गोरखपुर के लिये वह इतनी कम कीमत पर खुद को नियोजित नहीं करना चाहते और दिल्ली, लखनऊ, इंदौर और पटना छोड़ना नहीं चाहते. एम्स के डायरेक्टर डॉ. गोपाल कृष्ण कहते हैं, कि सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर के लिए लगातार प्रयास जारी है. मानक पूरे नहीं होंगे, तो आरोग्य को नियुक्ति भी नहीं दी जा सकती.

यह भी पढ़े-नए साल पर पूर्वांचल के लोगों को मिलेगा बड़ा उपहारः गोरखपुर एम्स में लीवर, हार्ट, किडनी और न्यूरो की बीमारी का होगा इलाज

इन विभागों में चलती है OPD: एम्स गोरखपुर में एनेस्थिसियोलॉजी, एनाटॉमी, बायोकेमिस्ट्री, कम्युनिटी मेडिसिन एंड फैमिली मेडिसिन, डेंटिस्ट्री, डर्मेटोलॉजी, ईएनटी, फोरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी, जनरल मेडिसिन, जनरल सर्जरी, माइक्रोबायोलॉजी, ऑब्स्टेट्रिक्स, गायनेकोलॉजी, ऑप्थल्मोलॉजी, ऑर्थोपेडिक्स, पीडियाट्रिक्स, फार्माकोलॉजी और थेरेप्यूटिक्स, फिजिकल मेडिसिन शामिल है. जानलेवा बीमारियों से बचाने वाला कोई सुपर स्पेशलिटी का डॉक्टर नहीं है. गोरखपुर एम्स में वह कहीं नजर ही नहीं आता, जो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का नाम लेने से बेहतर इलाज और भरोसे की तस्वीर मस्तिष्क में उभरती है. यह ऐसा एम्स है, जहां न सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और न ही सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा की व्यवस्था है. जिस अस्पताल में यह सुविधायें दिसंबर 2020 तक शुरू हो जानी थी, वह आज तक शुरू नहीं हो पाई है.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 जुलाई, 2016 को एम्स का शिलान्यास और 24 फरवरी, 2019 को वाह्य रोग विभाग (ओपीडी) का उद्घाटन किया था. एम्स का निर्माण दिसंबर, 2020 तक पूरा हो जाना था. मरीजों को सीटी स्कैन, एमआरआइ, ब्लड, यूरिन, एक्सरे अल्ट्रासाउंड जैसी जांच, लंबी कतार की वजह से बाहर करानी पड़ रही है.

नहीं खोज पाए सुपर स्पेशलिस्ट: एम्स ने ओपीडी तो शुरू कर दी, लेकिन सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को आजतक नहीं खोज पाए. यहां अभी तक एक भी सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर को तैनात नहीं किया जा सका है. इस समय केवल डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (एमडी) और सीनियर रेजीडेंट (एसआर) ही मरीजों का इलाज करते हैं. विरोधी दल सपा के नेता कीर्ति निधि पांडेय कहते हैं, कि मोदी जी ने चुनावी लाभ लेने के लिए एम्स का तो लोकार्पण कर दिया लेकिन, सुविधाओं की बहाली नहीं कर पाने में वह पूरी तरह फेल हैं. जिससे, दूर दराज से हजारों रुपये किराया खर्च कर एम्स पहुंचकर मरीज और उसके परिजन निराश होते हैं, और हारकर उसे बाहर इलाज करना पड़ता है.

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