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30 नवंबर तक किसान क्या करें और क्या न करें? कृषि कार्यों की एडवाइजरी जारी

हिमाचल प्रदेश में नवंबर महीने में 16 से 30 नवंबर तक किए जाने वाले कृषि कार्यों को लेकर एडवाइजरी जारी की है.

Agricultural University Palampur Advisory for agricultural work
30 नवंबर तक कृषि के लिए एडवाइजरी जारी (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : 2 hours ago

सिरमौर: चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने नवंबर महीने के दूसरे पखवाड़े के तहत 16 से 30 नवंबर की अवधि में किए जाने वाले कृषि कार्यों को लेकर एडवाइजरी जारी की है. जिसे अपनाकर प्रदेश सहित जिला सिरमौर के किसान लाभ उठा सकते हैं.

पालमपुर यूनिवर्सिटी के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. विनोद शर्मा और कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) के प्रभारी व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पंकज मित्तल ने बताया, "किसान इस अवधि में प्रदेश के निचले सिंचित क्षेत्रों में गेहूं की उन्नत किस्मों एचपीडब्ल्यू-155, वीएल-907, एचएस-507, एचएस-562, एचपीडब्ल्यू-349, एचपीडब्ल्यू-484, एचपीडब्ल्यू-249, एचपीडब्ल्यू-368, एचपीडब्ल्यू-236, पीवीडब्ल्यू-550, एचडी-2380 एवं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सप्तधारा किस्मों की बीजाई करें और 100 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर (8 किलोग्राम प्रति बीघा) डालें. इस समय जौ की बीएचएस-400, एचबीएल-276 व चारे के लिए राई घास की भी बिजाई की जा सकती है."

Agricultural University Palampur Advisory for agricultural work
कृषि कार्यों के लिए पालमपुर यूनिवर्सिटी की एडवाइजरी (ETV Bharat)

खरपतवार को लेकर करें ये काम

डॉ. विनोद शर्मा और डॉ. पंकज मित्तल ने बताया कि अगेती बीजाई की गई गेहूं में खरपतवार में 2-3 पत्तियां आ गई हो, तो खरपतवारों को नष्ट करने के लिए वेस्टा नामक दवाई 32 ग्राम 60 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति बीघा छिड़काव करें. छिड़काव पम्प से करें और छिड़काव के लिए फ्लैट फैन नोजल का इस्तेमाल करें. छिड़काव से दो-तीन दिन पहले हल्की सिंचाई दें, क्योंकि खरपतवारनाशी के छिड़काव से पहले खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. वरना खरपतवार नाशक का असर नहीं होता है.

Agricultural University Palampur Advisory for agricultural work
अलसी की उत्पादन (ETV Bharat)

सब्जी उत्पादन

  • प्याज- हिमाचल प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज की उन्नत किस्मों पटना रेड, नासिक रेड, पालम लोहित, पूसा रेड, एएफडीआर और एएफएलआर इत्यादि पौध की बिजाई करें.
  • लहसुन- लहसुन की उन्नत किस्मों जीएचसी-1 या एग्रीफाउंड पार्वती की बिजाई पंक्तियों में 20 सेंटीमीटर व पौधों में 10 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए करें.
  • मटर- निचले एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की उन्नत किस्मों पालम समूल, पंजाब-89, आजाद पी-1, आजाद पी-3 एवं जीएस-10 की बिजाई 45 से 60 सेंटीमीटर पंक्तियों और 10 से 15 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी पर करें.
  • मूली, गाजर, शलजम- निचले एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मूली, गाजर व शलजम इत्यादि में अतिरिक्त पौधों की छंटाई करें और 7-10 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी बनाए रखें.
  • गोभी- फूलगोभी, बंदगोभी, ब्रोकली, चाइनीज सरसों इत्यादि की रोपाई 45-60 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति और 30-45 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी पर करें.
  • इसके अलावा गांठ गोभी, पालक, लैट्यूस, मेथी, धनिया व क्यूं/बाकला आदि को भी लगाने/बोने का उचित समय है.

इसके अलावा खेतों में लगी हुई सभी प्रकार की सब्जियों में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें. सभी फसलों में खाद एवं उर्वरकों की अनुमोदित मात्रा का प्रयोग करें.

Agricultural University Palampur Advisory for agricultural work
मटर की फसल का उत्पादन (ETV Bharat)

फसलों और सब्जियों को बीमारियों से कैसे बचाएं?

  • गेहूं एवं जौ में बीज जनित बीमारियों के नियंत्रण के लिए बिजाई से पहले बीज को वीटावैक्स या बाविस्टिन 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचारित करें. यह बीज उपचार बीज जनित बीमारियों को नियंत्रित करने में अत्यंत प्रभावी होता है.
  • जिन क्षेत्रों में गेहूं की फसल में दीमक का प्रकोप हो, वहां पर 2 लीटर क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी को 25 किलोग्राम रेत के साथ अच्छी तरह मिलाकर बिजाई से पहले या बिजाई के समय खेत में शाम को भुरकाव करें.
  • गोभी प्रजाति की सब्जियों को कटुआ कीट से बचाने के लिए नर्सरी पौध की रोपाई से पहले खेत में 2 लीटर क्लोरपाइरीफास 20 ईसी को 25 किलोग्राम रेत में मिला कर एक हेक्टेयर क्षेत्र में मिला दें या 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें.
  • प्याज की नर्सरी पौध में कमरतोड़ रोग के लक्षण देखते ही बैविस्टिन 10 ग्राम और डाईथेन एम-45 की 25 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल कर रोगग्रस्त क्यारियों की सिंचाई करें.
  • मटर की फसल में विभिन्न रोगों के नियंत्रण के लिए बिजाई से पहले मटर के बीज को बाविस्टिन 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज से बीज उपचार कर बिजाई करें.
ये भी पढ़ें: प्राकृतिक खेती में मिसाल बना CM सुक्खू के गृह जिले का ये गांव, यहां 218 बीघा भूमि पर 59 किसान कर रहे ऑर्गेनिक फार्मिंग

सिरमौर: चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने नवंबर महीने के दूसरे पखवाड़े के तहत 16 से 30 नवंबर की अवधि में किए जाने वाले कृषि कार्यों को लेकर एडवाइजरी जारी की है. जिसे अपनाकर प्रदेश सहित जिला सिरमौर के किसान लाभ उठा सकते हैं.

पालमपुर यूनिवर्सिटी के प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. विनोद शर्मा और कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) के प्रभारी व प्रधान वैज्ञानिक डॉ. पंकज मित्तल ने बताया, "किसान इस अवधि में प्रदेश के निचले सिंचित क्षेत्रों में गेहूं की उन्नत किस्मों एचपीडब्ल्यू-155, वीएल-907, एचएस-507, एचएस-562, एचपीडब्ल्यू-349, एचपीडब्ल्यू-484, एचपीडब्ल्यू-249, एचपीडब्ल्यू-368, एचपीडब्ल्यू-236, पीवीडब्ल्यू-550, एचडी-2380 एवं ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सप्तधारा किस्मों की बीजाई करें और 100 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर (8 किलोग्राम प्रति बीघा) डालें. इस समय जौ की बीएचएस-400, एचबीएल-276 व चारे के लिए राई घास की भी बिजाई की जा सकती है."

Agricultural University Palampur Advisory for agricultural work
कृषि कार्यों के लिए पालमपुर यूनिवर्सिटी की एडवाइजरी (ETV Bharat)

खरपतवार को लेकर करें ये काम

डॉ. विनोद शर्मा और डॉ. पंकज मित्तल ने बताया कि अगेती बीजाई की गई गेहूं में खरपतवार में 2-3 पत्तियां आ गई हो, तो खरपतवारों को नष्ट करने के लिए वेस्टा नामक दवाई 32 ग्राम 60 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति बीघा छिड़काव करें. छिड़काव पम्प से करें और छिड़काव के लिए फ्लैट फैन नोजल का इस्तेमाल करें. छिड़काव से दो-तीन दिन पहले हल्की सिंचाई दें, क्योंकि खरपतवारनाशी के छिड़काव से पहले खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए. वरना खरपतवार नाशक का असर नहीं होता है.

Agricultural University Palampur Advisory for agricultural work
अलसी की उत्पादन (ETV Bharat)

सब्जी उत्पादन

  • प्याज- हिमाचल प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज की उन्नत किस्मों पटना रेड, नासिक रेड, पालम लोहित, पूसा रेड, एएफडीआर और एएफएलआर इत्यादि पौध की बिजाई करें.
  • लहसुन- लहसुन की उन्नत किस्मों जीएचसी-1 या एग्रीफाउंड पार्वती की बिजाई पंक्तियों में 20 सेंटीमीटर व पौधों में 10 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए करें.
  • मटर- निचले एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की उन्नत किस्मों पालम समूल, पंजाब-89, आजाद पी-1, आजाद पी-3 एवं जीएस-10 की बिजाई 45 से 60 सेंटीमीटर पंक्तियों और 10 से 15 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी पर करें.
  • मूली, गाजर, शलजम- निचले एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में मूली, गाजर व शलजम इत्यादि में अतिरिक्त पौधों की छंटाई करें और 7-10 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी बनाए रखें.
  • गोभी- फूलगोभी, बंदगोभी, ब्रोकली, चाइनीज सरसों इत्यादि की रोपाई 45-60 सेंटीमीटर पंक्ति से पंक्ति और 30-45 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी पर करें.
  • इसके अलावा गांठ गोभी, पालक, लैट्यूस, मेथी, धनिया व क्यूं/बाकला आदि को भी लगाने/बोने का उचित समय है.

इसके अलावा खेतों में लगी हुई सभी प्रकार की सब्जियों में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई और निराई-गुड़ाई करते रहें. सभी फसलों में खाद एवं उर्वरकों की अनुमोदित मात्रा का प्रयोग करें.

Agricultural University Palampur Advisory for agricultural work
मटर की फसल का उत्पादन (ETV Bharat)

फसलों और सब्जियों को बीमारियों से कैसे बचाएं?

  • गेहूं एवं जौ में बीज जनित बीमारियों के नियंत्रण के लिए बिजाई से पहले बीज को वीटावैक्स या बाविस्टिन 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचारित करें. यह बीज उपचार बीज जनित बीमारियों को नियंत्रित करने में अत्यंत प्रभावी होता है.
  • जिन क्षेत्रों में गेहूं की फसल में दीमक का प्रकोप हो, वहां पर 2 लीटर क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी को 25 किलोग्राम रेत के साथ अच्छी तरह मिलाकर बिजाई से पहले या बिजाई के समय खेत में शाम को भुरकाव करें.
  • गोभी प्रजाति की सब्जियों को कटुआ कीट से बचाने के लिए नर्सरी पौध की रोपाई से पहले खेत में 2 लीटर क्लोरपाइरीफास 20 ईसी को 25 किलोग्राम रेत में मिला कर एक हेक्टेयर क्षेत्र में मिला दें या 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें.
  • प्याज की नर्सरी पौध में कमरतोड़ रोग के लक्षण देखते ही बैविस्टिन 10 ग्राम और डाईथेन एम-45 की 25 ग्राम मात्रा को 10 लीटर पानी में घोल कर रोगग्रस्त क्यारियों की सिंचाई करें.
  • मटर की फसल में विभिन्न रोगों के नियंत्रण के लिए बिजाई से पहले मटर के बीज को बाविस्टिन 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज से बीज उपचार कर बिजाई करें.
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