आगरा : आगरा के अतिरिक्त सिविल जज-1 के न्यायालय में न्यायाधीश के अवकाश के चलते शुक्रवार को आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट के फतेहपुर सीकरी की शेख सलीम चिश्ती दरगाह और कामाख्या माता मंदिर केस की सुनवाई टल गई. पिछली तारीख छह नवंबर को सुनवाई में प्रतिवादी केके मोहम्मद की तरफ से वकालतनामा अधिवक्ता विवेक कुमार ने प्रस्तुत किया था. जिसके बाद सुनवाई की तारीख छह दिसंबर की गई थी. इस मामले में प्रतिवादी में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड समेत अन्य हैं. क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट के अधिवक्ता व वादी अजय प्रताप सिंह ने बताया कि आज मामले में विपक्षी शेख सलीम चिश्ती दरगाह के आदेश 7 नियम 14 सीपीसी के प्रार्थना पत्र पर बहस होनी थी. मगर, न्यायाधीश के अवकाश के चलते अब इस मामले में अगली तिथि 9 जनवरी 2025 मिली है.
बता दें कि आगरा के लघुवाद न्यायालय में पहले से ही ताजमहल या तेजोमहालय, जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान केशव देव के विग्रह दबे होने का मामले और ताजमहल में जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक का मामला विचाराधीन है. इन मामलों में लगातार तारीखों पर सुनवाई हो रही है. फतेहपुर सीकरी स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह और कामाख्या माता मंदिर का मामला भी अब सुर्खियों में है. इसको लेकर क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट के अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने वाद दायर किया है.
क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट के अधिवक्ता व वादी अजय प्रताप सिंह ने फतेहपुर सीकरी में स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह को कामाख्या माता का मंदिर और जामा मस्जिद को कामाख्या माता मंदिर परिसर बताकर कोर्ट में वाद दायर किया है. मामले में माता कामाख्या, आस्थान माता कामाख्या, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट और अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी हैं. इस मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी दरगाह सलीम चिश्ती, प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद प्रतिवादी हैं.
वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि एएसआई के आगरा सर्किल में पूर्व में केके मोहम्मद अधीक्षण पुरातत्वविद रहे हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में अकबर के इबादतखाना नाम के नए स्मारक का निर्माण किया था. इस तथ्य की जानकारी डॉ. डीवी शर्मा की पुस्तक 'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी' है. डॉ. डीवी शर्मा भी आगरा सर्किल में अधीक्षण पुरातत्वविद रहे हैं. वह केके मोहम्मद से पहले आगरा में थे. उस दौरान डॉ. डीवी शर्मा ने अपने कार्यकाल के दौरान फतेहपुर सीकरी के वीर छबीली टीले के उत्खनन कराया था. इसमें 1000 ईसवी काल के हिन्दू सभ्यता के प्रमाण खोजे थे. इस कारण राजनीतिक दबाब के चलते डॉ. डीवी शर्मा का आगरा सर्किल से स्थानांतरण करवा दिया गया. इसकी वजह से ही फतेहपुर सीकरी का सत्य सभी के सामने आने से रह गया था.
सिकरवार वंश का था राज्य : वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि वर्तमान में विवादित संपत्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीन एक संरक्षित स्मारक है. इस पर सभी प्रतिवादी अतिक्रमणी हैं. फतेहपुर सीकरी का मूल नाम सीकरी है. इसे विजयपुर सीकरी भी कहते थे जो सिकरवार क्षत्रियों का राज्य था. यहां पर विवादित संपत्ति माता कामाख्या देवी का मूल गर्भ गृह व मंदिर परिसर था.
बाबरनामा में सीकरी का जिक्र : वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि प्रचलित ऐतिहासिक कहानी के मुताबिक अकबर ने फतेहपुर सीकरी को बसाया था. यह एक झूठ है. मुगलवंश के संस्थापक बाबर की जीवनी बाबरनामा में सीकरी का उल्लेख है. वर्तमान में बुलंद दरवाजे के नीचे दक्षिण पश्चिम में एक अष्टभुजीय कुआं है. दक्षिण पूर्वी हिस्से में एक गरीब घर है. जिसके निर्माण का वर्णन बाबर ने किया है. एएसआई के अभिलेख भी यही मानते हैं.
'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज' में जिक्र : एएसआई के रिटायर्ड अधिकारी डॉ. डीवी शर्मा को अपने कार्यकाल में फतेहपुर सीकरी के बीर छबीली टीले की खोदाई में सरस्वती और जैन मूर्तियां मिली थीं. वे 1000 ईं की थीं. इस बारे में डीबी शर्मा ने अपनी पुस्तक 'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज' में विस्तार से लिखा है. इस पुस्तक के पेज संख्या 86 पर वाद संपत्ति का निर्माण हिन्दू व जैन मंदिर के अवशेषों से बताया है. इस बारे में अंग्रेज अफसर ईबी हावेल ने वाद संपत्ति के खम्भों व छत को हिन्दू शिल्पकला बताया है.
खानवा युद्ध में गवाह था मंदिर : वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह का दावा है कि खानवा युद्ध के समय सीकरी के राजा राव धामदेव थे. उन्होंने भी खानवा युद्ध में भाग लिया था. खानवा के युद्ध में राणा सांगा घायल हो गए तो राजा राव धामदेव धर्म बचाने के लिए माता कामाख्या के प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को ऊंट पर रखकर पूर्व दिशा की ओर चले गए. उन्होंने यूपी के गाजीपुर जिले के सकराडीह में कामाख्या माता का मंदिर बनाकर विग्रह को पुनः स्थापित किया. इन तथ्यों का उल्लेख राव धामदेव के राजकवि विद्याधर ने अपनी पुस्तक में किया है.
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह : फतेहपुर सीकरी में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है. मुगलकाल में मुगल बादशाह अकबर को कोई संतान नहीं थी. इससे अकबर परेशान था. बादशाह अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जाकर शेख सलीम चिश्ती से पूछा था कि उसके कितने पुत्र होंगे. इस पर शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से बादशाह अकबर के यहां पर बेटा पैदा हुआ. अकबर ने जिसका नाम सलीम रखा जो जहांगीर के नाम से मुगल बादशाह बना. अकबर ने सलीम चिश्ती की समाधि का निर्माण सन 1580 से 1581 के दाैरान करवाया था.
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