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शेख सलीम चिश्ती दरगाह, कामाख्या मंदिर विवाद, 6 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई

Kamakhya Temple Controversy : सुनवाई के बाद न्यायाधीश अमृषा श्रीवास्तव ने अगली सुनवाई की तारीख छह दिसंबर दी है.

शेख सलीम चिश्ती दरगाह, कामाख्या मंदिर विवाद
शेख सलीम चिश्ती दरगाह, कामाख्या मंदिर विवाद (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

आगरा : आगरा के अतिरिक्त सिविल जज-1 के न्यायालय में बुधवार को आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट के फतेहपुर सीकरी की शेख सलीम चिश्ती दरगाह और कामाख्या माता मंदिर केस की सुनवाई हुई. जिसमें प्रतिवादी केके मोहम्मद की तरफ से वकालतनामा अधिवक्ता विवेक कुमार ने प्रस्तुत किया. सुनवाई के बाद न्यायाधीश अमृषा श्रीवास्तव ने इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख छह दिसंबर दी है. इस मामले में प्रतिवादी में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत अन्य हैं.

बता दें, आगरा के लघुवाद न्यायालय में पहले से ही ताजमहल या तेजोमहालय, जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान केशव देव के विग्रह दबे होने का मामले और ताजमहल में जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक का मामला विचाराधीन है. इन मामलों में लगातार सुनवाई हो रही है. इसी बीच फतेहपुर सीकरी स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह और कामाख्या माता मंदिर का मामला भी सुर्खियों में है.



क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट के अधिवक्ता व वादी अजय प्रताप सिंह ने फतेहपुर सीकरी स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह को कामाख्या माता का मंदिर और जामा मस्जिद को कामाख्या माता मंदिर परिसर बताकर वाद दायर किया है. इस मामले में माता कामाख्या, आस्थान माता कामाख्या, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट और अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी हैं. मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी दरगाह सलीम चिश्ती, प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद प्रतिवादी हैं.


अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह बताते हैं कि एएसआई के आगरा सर्किल में पूर्व में केके मोहम्मद अधीक्षण पुरातत्वविद रहे हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में अकबर के इबादतखाना नाम के नए स्मारक का निर्माण किया था. इस तथ्य की जानकारी डॉ. डीवी शर्मा की पुस्तक आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी में है. डॉ. डीवी शर्मा भी आगरा सर्किल में अधीक्षण पुरातत्वविद रहे हैं. जो केके मोहम्मद से पहले आगरा में थे. तब डॉ. डीवी शर्मा ने अपने कार्यकाल के दौरान फतेहपुर सीकरी के वीर छबीली टीले के उत्खनन कराया था. जिसमें 1000 ईस्वी काल के हिन्दू सभ्यता के प्रमाण खोजे थे. जिस कारण राजनीतिक दबाब के चलते डॉ. डीवी शर्मा का आगरा सर्किल से स्थानांतरण करवा दिया गया. इसकी वजह से ही फतेहपुर सीकरी का सत्य सभी के सामने आने से रह गया था.

सिकरवार वंश का था राज्य

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के मुताबिक वर्तमान में विवादित संपत्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीन संरक्षित स्मारक है. जिस पर सभी प्रतिवादी अतिक्रमणी हैं. फतेहपुर सीकरी का मूल नाम सीकरी है. जिसे विजयपुर सीकरी भी कहते थे, जो सिकरवार क्षत्रियों का राज्य था. जहां पर विवादित संपत्ति माता कामाख्या देवी का मूल गर्भ गृह व मंदिर परिसर था.



बाबरनामा में सीकरी का जिक्र

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के अनुसार प्रचलित ऐतिहासिक कहानी के मुताबिक अकबर ने फतेहपुर सीकरी को बसाया था, यह एक झूठ है. मुगलवंश के संस्थापक बाबर की जीवनी बाबरनामा में सीकरी का उल्लेख है. वर्तमान में बुलंद दरवाजे के नीचे दक्षिण पश्चिम में एक अष्टभुजीय कुआं है. दक्षिण पूर्वी हिस्से में एक गरीब घर है. जिसके निर्माण का वर्णन बाबर ने किया है. एएसआई के अभिलेख भी यही मानते हैं.




खानवा युद्ध में गवाह था मंदिर

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह का दावा है कि खानवा युद्ध के समय सीकरी के राजा राव धामदेव थे. उन्होंने भी खानवा युद्ध में भाग लिया था. खानवा के युद्ध में राणा सांगा घायल हो गए तो राजा राव धामदेव धर्म बचाने के लिए माता कामाख्या के प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को ऊंट पर रखकर पूर्व दिशा की ओर चले गए. उन्होंने यूपी के गाजीपुर जिले के सकराडीह में कामाख्या माता का मंदिर बनाकर विग्रह को पुनः स्थापित किया. इन तथ्यों का उल्लेख राव धामदेव के राजकवि विद्याधर ने अपनी पुस्तक में किया है.

आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज़' में ये जिक्र

वादी के मुताबिक एएसआई के रिटायर्ड अधिकारी डॉ. डीवी शर्मा को अपने कार्यकाल में फतेहपुर सीकरी के बीर छबीली टीले की खुदाई में सरस्वती और जैन मूर्तियां मिली थीं, जो 1000 ईस्वी की थीं. इस बारे में डीबी शर्मा ने अपनी पुस्तक 'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज़' में इसका विस्तार से लिखा है. इस पुस्तक के पेज संख्या 86 पर वाद संपत्ति का निर्माण हिन्दू व जैन मंदिर के अवशेषों से बताया है. इस बारे में अंग्रेज अफसर ई बी हावेल ने वाद संपत्ति के खम्भों व छत को हिन्दू शिल्पकला बताया है. उन्होंने इसे मस्जिद होने से इंकार किया है.


शेख सलीम चिश्ती की दरगाह : बताया जाता है कि फतेहपुर सीकरी में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है. मुगलकाल में मुगल बादशाह अकबर के जब कोई संतान नहीं थी. इससे अबकर परेशान था. बादशाह अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जाकर शेख सलीम चिश्ती से पूछा था कि उसके कितने पुत्र होंगे. जिस पर शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से बादशाह अकबर के घर बेटा पैदा हुआ. अकबर ने जिसका नाम सलीम रखा, जो जहांगीर के नाम से मुगल बादशाह बना. अकबर ने सलीम चिश्ती की समाधि का निर्माण सन 1580 से 1581 के दाैरान करवाया था.

यह भी पढ़ें : शेख सलीम चिश्ती दरगाह, कामाख्या मंदिर विवाद; सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत सभी प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने के आदेश - Kamakhya Temple Controversy

यह भी पढ़ें : आगरा: बदली जा रही शेख सलीम चिश्ती दरगाह की बीम, 1990 में हुई थी कमजोर

आगरा : आगरा के अतिरिक्त सिविल जज-1 के न्यायालय में बुधवार को आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट के फतेहपुर सीकरी की शेख सलीम चिश्ती दरगाह और कामाख्या माता मंदिर केस की सुनवाई हुई. जिसमें प्रतिवादी केके मोहम्मद की तरफ से वकालतनामा अधिवक्ता विवेक कुमार ने प्रस्तुत किया. सुनवाई के बाद न्यायाधीश अमृषा श्रीवास्तव ने इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख छह दिसंबर दी है. इस मामले में प्रतिवादी में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत अन्य हैं.

बता दें, आगरा के लघुवाद न्यायालय में पहले से ही ताजमहल या तेजोमहालय, जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे भगवान केशव देव के विग्रह दबे होने का मामले और ताजमहल में जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक का मामला विचाराधीन है. इन मामलों में लगातार सुनवाई हो रही है. इसी बीच फतेहपुर सीकरी स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह और कामाख्या माता मंदिर का मामला भी सुर्खियों में है.



क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट के अधिवक्ता व वादी अजय प्रताप सिंह ने फतेहपुर सीकरी स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह को कामाख्या माता का मंदिर और जामा मस्जिद को कामाख्या माता मंदिर परिसर बताकर वाद दायर किया है. इस मामले में माता कामाख्या, आस्थान माता कामाख्या, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट और अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी हैं. मामले में उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी दरगाह सलीम चिश्ती, प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद प्रतिवादी हैं.


अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह बताते हैं कि एएसआई के आगरा सर्किल में पूर्व में केके मोहम्मद अधीक्षण पुरातत्वविद रहे हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में अकबर के इबादतखाना नाम के नए स्मारक का निर्माण किया था. इस तथ्य की जानकारी डॉ. डीवी शर्मा की पुस्तक आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी में है. डॉ. डीवी शर्मा भी आगरा सर्किल में अधीक्षण पुरातत्वविद रहे हैं. जो केके मोहम्मद से पहले आगरा में थे. तब डॉ. डीवी शर्मा ने अपने कार्यकाल के दौरान फतेहपुर सीकरी के वीर छबीली टीले के उत्खनन कराया था. जिसमें 1000 ईस्वी काल के हिन्दू सभ्यता के प्रमाण खोजे थे. जिस कारण राजनीतिक दबाब के चलते डॉ. डीवी शर्मा का आगरा सर्किल से स्थानांतरण करवा दिया गया. इसकी वजह से ही फतेहपुर सीकरी का सत्य सभी के सामने आने से रह गया था.

सिकरवार वंश का था राज्य

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के मुताबिक वर्तमान में विवादित संपत्ति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीन संरक्षित स्मारक है. जिस पर सभी प्रतिवादी अतिक्रमणी हैं. फतेहपुर सीकरी का मूल नाम सीकरी है. जिसे विजयपुर सीकरी भी कहते थे, जो सिकरवार क्षत्रियों का राज्य था. जहां पर विवादित संपत्ति माता कामाख्या देवी का मूल गर्भ गृह व मंदिर परिसर था.



बाबरनामा में सीकरी का जिक्र

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के अनुसार प्रचलित ऐतिहासिक कहानी के मुताबिक अकबर ने फतेहपुर सीकरी को बसाया था, यह एक झूठ है. मुगलवंश के संस्थापक बाबर की जीवनी बाबरनामा में सीकरी का उल्लेख है. वर्तमान में बुलंद दरवाजे के नीचे दक्षिण पश्चिम में एक अष्टभुजीय कुआं है. दक्षिण पूर्वी हिस्से में एक गरीब घर है. जिसके निर्माण का वर्णन बाबर ने किया है. एएसआई के अभिलेख भी यही मानते हैं.




खानवा युद्ध में गवाह था मंदिर

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह का दावा है कि खानवा युद्ध के समय सीकरी के राजा राव धामदेव थे. उन्होंने भी खानवा युद्ध में भाग लिया था. खानवा के युद्ध में राणा सांगा घायल हो गए तो राजा राव धामदेव धर्म बचाने के लिए माता कामाख्या के प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को ऊंट पर रखकर पूर्व दिशा की ओर चले गए. उन्होंने यूपी के गाजीपुर जिले के सकराडीह में कामाख्या माता का मंदिर बनाकर विग्रह को पुनः स्थापित किया. इन तथ्यों का उल्लेख राव धामदेव के राजकवि विद्याधर ने अपनी पुस्तक में किया है.

आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज़' में ये जिक्र

वादी के मुताबिक एएसआई के रिटायर्ड अधिकारी डॉ. डीवी शर्मा को अपने कार्यकाल में फतेहपुर सीकरी के बीर छबीली टीले की खुदाई में सरस्वती और जैन मूर्तियां मिली थीं, जो 1000 ईस्वी की थीं. इस बारे में डीबी शर्मा ने अपनी पुस्तक 'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज़' में इसका विस्तार से लिखा है. इस पुस्तक के पेज संख्या 86 पर वाद संपत्ति का निर्माण हिन्दू व जैन मंदिर के अवशेषों से बताया है. इस बारे में अंग्रेज अफसर ई बी हावेल ने वाद संपत्ति के खम्भों व छत को हिन्दू शिल्पकला बताया है. उन्होंने इसे मस्जिद होने से इंकार किया है.


शेख सलीम चिश्ती की दरगाह : बताया जाता है कि फतेहपुर सीकरी में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है. मुगलकाल में मुगल बादशाह अकबर के जब कोई संतान नहीं थी. इससे अबकर परेशान था. बादशाह अकबर ने फतेहपुर सीकरी में जाकर शेख सलीम चिश्ती से पूछा था कि उसके कितने पुत्र होंगे. जिस पर शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से बादशाह अकबर के घर बेटा पैदा हुआ. अकबर ने जिसका नाम सलीम रखा, जो जहांगीर के नाम से मुगल बादशाह बना. अकबर ने सलीम चिश्ती की समाधि का निर्माण सन 1580 से 1581 के दाैरान करवाया था.

यह भी पढ़ें : शेख सलीम चिश्ती दरगाह, कामाख्या मंदिर विवाद; सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत सभी प्रतिवादियों को जवाब दाखिल करने के आदेश - Kamakhya Temple Controversy

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