आगरा : ताजमहल या तेजो महल, मकबरा या मंदिर आदि के बाद अब फतेहपुर सीकरी में स्थित मुस्लिम संत शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को लेकर नया विवाद सामने आया है. इसको लेकर क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. ट्रस्ट ने दावा किया है कि शेख सलीम चिश्ती की दरगाह जिस जगह पर है, वहां पर पहले कामाख्या मंदिर था. सिकरवार राजपूत राजाओं की पहली राजधानी सीकरी थी. इसे अकबर ने नहीं बसाया था. अकबर ने सिर्फ फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया था. फतेहपुर सीकरी में दरगाह या मंदिर का विवाद चर्चा में आया तो ईटीवी भारत ने इतिहास के पन्ने पलटे. इसमें इतिहासकारों ने खुलासा किया कि यह क्षेत्र पहले अरावली की पहाड़ियों से घिरा था. उत्तर पाषाण काल की बात करें तो इन पहाड़ियों की कंदराओं-गुफाओं में आदि मानव रहे थे. इसके चिन्ह भी वहां पर बची पहाड़ियों की कंदराओं में मौजूद हैं.सीकरी आदि मानव की शरणस्थली कब बना, इसका नाम फतेहपुर सीकरी कैसे पड़ा, पढ़िए डिटेल.
आगरा शहर से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर राजस्थान के बॉर्डर के पास फतेहपुर सीकरी है. यह मुगलिया सल्तनत की सन 1571 से 1585 तक राजधानी रही थी. यहां मुगल बादशाह अकबर ने कई महल बनवाए. बुलंद दरवाजा बनाया. इसके साथ ही मुस्लिम संत शेख सलीम चिश्ती की लाल पत्थर की दरगाह बनवाई. इसे बाद में मुगल बादशाह जहांगीर ने सफेद संगमरमर का बनाया. फतेहपुर सीकरी पर्यटन नगरी है. हर दिन हजारों की संख्या में देशी और विदेशी पर्यटक फतेहपुर सीकरी स्मारक, बुलंद दरवाजा और शेख सलीम चिश्ती की दरगाह पर माथा टेकने जाते हैं. इसकी देखरेख का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कर रहा है.
पहले यहां आदिमानव रहते थे : वरिष्ठ इतिहासकार राज किशोर 'राजे'बताते हैं कि उत्तर पाषाण काल की बात तो ये क्षेत्र जंगल और अरावली की पहाड़ियों से घिरा था. पहाड़ियों के बीच बड़ी झील थी. अरावली की पहाड़ियों की कंदराओं गुफाओं में आदिमानव रहते थे. मेरी पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में आगरा और उसके आसपास के सात हजार साल पुराने इतिहास का जिक्र है. खनन की वजह से अरावली की तमाम पहाड़ियां खत्म हो गईं. अभी गांव पतसाल, गांव रसूलपुर, मदनपुरा, जाजाली में कुछ पहाड़ियां बची हैं. जिनमें आदिमानव के शैलाश्रय या कंदराएं हैं. इनकी खोज रॉक आर्ट सोसायटी आफ इंडिया के सचिव पुरातत्वविद डॉ. गिरराज कुमार ने की थी. आज भी इन बची पहाड़ियां की गुफाओं में आदिमानव के बनाए भित्तचित्र मौजूद हैं. वे पेड़-पौधे, पशु, समूह, नृत्य, हथियारों के हैं. इन्हें अब एएसआई संरक्षित कर रहा है.
इतिहासकारों ने यूं किया सीकरी का जिक्र : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि फतेहपुर सीकरी के प्राचीन नाम के बारे में कई पुस्तकों में लिखा है. वरिष्ठ इतिहासकार पीएन ओक ने अपनी पुस्तक 'भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें' में लिखा है कि, सीकरी शब्द संस्कृत के मूल शब्द सिकता यानी रेत से लिया है. रेतीले राजस्थानी खंड में ऐसे स्थान को सीकर कहते हैं. सीकर का स्त्री वाचक शब्द सीकरी है. ऐसे ही एक अन्य लेखक ने अपनी पुस्तक में महाभारत में फतेहपुर सीकरी का उल्लेख सैक के रूप में किया है. सैक का अर्थ है, जो चारों ओर से पानी से घिरा हो. एएसआई ने जब सन 1999 से 2000 के बीच जब उत्खनन किया तो यहां पर जैन धर्म की तमाम मूर्तियां मिली थीं. बौद्ध धर्म की मूर्तियां भी मिली थीं.
सीकरी के जंगल में हुआ था सलीम : वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि मेरी पुस्तक 'ये कैसा इतिहास' में लिखा है कि मुगल बादशाह के पहले दो पुत्र पहले पैदा हुए. वे अल्पआयु में ही मर गए. इससे अकबर बेहद आहत था. उसने संत और महात्माओं से आशीर्वाद लेना शुरू किया. अकबर ने अजमेर के शेख मुईनुददीन चिश्ती के बारे में सुना तो मन्नत मांगी कि बेटा पैदा हुआ तो पैदल अजमेर जाऊंगा. आगरा से दूर सीकरी के जंगल में रहने वाले मुस्लिम संत शेख सलीम चिश्ती से मिला. शेख सलीम चिश्ती ने कहा कि, तीन बेटे होंगे. इस पर अकबर ने कहा कि, मैं अपना पहला पुत्र आपकी झोली में डाल दूंगा.
जब अकबर की आमेर राजघराने की रानी गर्भवती हुई तो गर्भ के अंतिम समय में अकबर ने रानी को शेख सलीम चिश्ती के पास भेज दिया था. वहां पर उसे बेटा हुआ. उसका नाम सलीम रखा. यही सलीम आगे चलकर जहांगीर बना. इस पर ही अकबर ने शेख सलीम चिश्ती की दरगाह फतेहपुर सीकरी में बनाई थी.
पानी के संकट की वजह से बदलनी पड़ी राजधानी : वरिष्ठ इतिहासकार बताते हैं कि फतेहपुर सीकरी के पास खानवा में मुगल वंश के संस्थापक बाबर और मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा का युद्ध हुआ था. इस युद्ध में राजपूत राजा राणा सांगा की हार हुई. इसके बाद ही मुगल वंश की हिन्दुस्तान में नींव पड़ी. मुगल बादशाह सीकरी को अपने लिए शुभ मानता था. इसलिए, उसने आगरा से हटकर सन 1571 में अपनी राजधानी फतेहपुर बनाई थी. मगर, पानी के संकट के चलते ही अकबर को अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी से बनानी पड़ी.
याचिका में हो सकता है दम : वरिष्ठ इतिहासकार के अनुसार अकबर ने शेख सलीम चिश्ती का मकबरा बनाया था. इस मकबरे से पहले इस जगह पर क्या था, इस बारे में काफी कुछ जानने की जरूरत है. इसके साथ ही उत्खनन की भी आवश्यकता है. कोर्ट में वाद दायर किया गया है. खोजबीन और उत्खनन से दावे की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है.
एएसआई की खोदाई में मिले तमाम सबूत : क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट के अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि माता कामाख्या, आस्थान माता कामाख्या, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट ने कोर्ट में वाद दायर किया है. इसमें उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी दरगाह सलीम चिश्ती, प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद को प्रतिवादी बनाया है. हमने वाद में दावा किया है कि फतेहपुर सीकरी स्थित सलीम चिश्ती की दरगाह की जगह पूर्व में कामाख्या माता का मंदिर था. एएसआई की खोदाई में कई सबूत मिले थे.
इस पुस्तक का दिया हवाला : एएसआई के पूर्व अधिकारी रहे डीबी शर्मा ने अपनी पुस्तक 'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज' के पेज संख्या 86 पर वाद संपत्ति का निर्माण हिन्दू व जैन मंदिर के अवशेषों से बताया है. डीबी शर्मा ने अपने कार्यकाल में फतेहपुर सीकरी के बीर छबीली टीले की खोदाई कराई थी. इसमें मां सरस्वती और जैन मूर्तियां मिली थीं. इनका काल 1000 ई. के लगभग बताया गया था. इसके साथ ही अंग्रेज अफसर ई बी हावेल ने वाद संपत्ति के खम्भों व छत को हिंदू शिल्पकला बताया है. उन्होंने इसे मस्जिद होने से इंकार किया है. इस मामले में कोर्ट ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी करने के साथ ही सुनवाई के लिए 30 मई की तारीख दी है.
सीकरी सिकरवार वंश की राजधानी थी : कोर्ट में वाद दायर करने वाले अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि फतेहपुर सीकरी का मूल नाम सीकरी है. इसे विजयपुर सीकरी भी कहते थे. यह सिकरवार क्षत्रिय राजाओं का राज्य और राजधानी था. यहां पर विवादित संपत्ति माता कामाख्या देवी का मूल गर्भ गृह व मंदिर परिसर था. इस बारे में मुगलवंश के संस्थापक बाबर की जीवनी बाबरनामा में सीकरी का उल्लेख किया गया है.
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