पटना:बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के नये अपर मुख्य सचिव डॉक्टर एस सिद्धार्थ अपनी सादगी भरे अंदाज के लिए मशहूर हैं. कभी वह खुद हाथों में झोला लेकर सब्जी मंडी में सब्जी खरीदने निकल जाते हैं, तो कभी सड़क किनारे नाई दुकान के पास बैठकर दाढ़ी बनवाने लगते हैं.
सादगी के लिए मशहूर हैं एस सिद्धार्थ: डॉक्टर एस सिद्धार्थ के सादगी का आलम है कि शिक्षा विभाग में ज्वाइन करने के बाद स्कूलों के निरीक्षण के लिए वह सामान्य आदमी बन कर स्कूल में पहुंच रहे हैं. जब स्कूल में पहुंच रहे हैं तो शुरू में शिक्षक और छात्र पहचान नहीं पा रहे हैं और जब शिक्षक पहचान रहे हैं तो उनके हाथ पांव फूलना लग रहे हैं.
नीतीश कुमार के चहेते अफसरों में से एक: शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉक्टर एस सिद्धार्थ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते अफसरों में गिने जाते हैं. यही कारण है कि वर्तमान में वह मुख्यमंत्री सचिवालय के भी अपर मुख्य सचिव के प्रभार में हैं. 1991 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ एस सिद्धार्थ ने 1987 में आईआईटी दिल्ली से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है.
आईआईएम अहमदाबाद से 1989 में एमबीए : डॉक्टर एस सिद्धार्थ ने आईआईएम अहमदाबाद से 1989 में एमबीए किया है और फिर आईआईटी दिल्ली से इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है. कोविड के दौर में उन्होंने अपने समय का सदुपयोग किया और विमान उड़ाने का भी प्रशिक्षण प्राप्त किया. वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी उनकी हॉबी है और प्रकृति के प्रति उनका प्रेम है जो उनकी सादगी में झलकता है.
'वाह अधिकारी हो तो ऐसा': शिक्षा विभाग में पदभार ग्रहण करने के बाद अपनी सादगी भरे अंदाज से प्रदेश के शिक्षा के गुणवत्ता के स्तर का निरीक्षण में लगे हुए हैं. बीते 28 जून को सड़क से जाते वक्त उन्हें सड़क पर स्कूल से लौटते हुए बच्चे नजर आए. तुरंत गाड़ी रुकवा कर गाड़ी से उतर गए और अकेले बच्चों के पास मिलने चले गए. आसपास के लोग भौचक्के रह गए कि कौन व्यक्ति है यह जिसके साथ सिक्योरिटी भी है लेकिन अकेले रोड पर उतरकर बच्चों से बातें कर रहा है. उन्होंने बच्चों से स्कूल में पढ़ाई से संबंधित जानकारी ली और बच्चों की कॉपी चेक की. सड़क पर जो लोग थे, जब उन्हें पता चला कि यह शिक्षा विभाग के नए एसीएस हैं, तो लोग बोल उठे 'वाह अधिकारी हो तो ऐसा'.
स्कूलों में अधिकारी नहीं आम नागरिक की तरह एंट्री: ऐसे ही 1 जुलाई को वह पटना के एक विद्यालय में सामान्य आदमी बनकर पहुंच गए. विद्यालय में बच्चों को जब स्कूल यूनिफॉर्म में नहीं देखा और बच्चों की संख्या कम देखी तो नाराज हुए. स्कूल में जब पहुंचे तो शिक्षक पहचान नहीं पाए लेकिन जब शिक्षकों ने पहचाना तो उनके हाथ पांव फूलने लगे. स्कूल के प्रिंसिपल के साथ वह नजदीकी बस्ती में गए जहां के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं. अभिभावकों को जागरूक किया कि बच्चों को स्कूल भेजें. स्कूल में बच्चों के पढ़ाई के लिए जो सुविधाएं दी जा रही हैं उसके बारे में अभिभावकों को बताया.
ट्रेन के लोकल डिब्बे में सफर: ऐसे ही डॉक्टर एस सिद्धार्थ गुरुवार 4 जुलाई को अपनी सरकारी गाड़ी से दानापुर पहुंचे और दानापुर पहुंचने के बाद अचानक पटना से आरा जाने वाली ट्रेन के लोकल डिब्बे में चढ़ गए. खड़े-खड़े उन्होंने आरा तक का सफर किया और बोगी में बैठे लोग तनिक भी भांप नहीं पाए की यह व्यक्ति बिहार सरकार का एक बहुत बड़ा अधिकारी है. कुछ युवक मिले तो उनसे बातें की और उनसे पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछा. जिस कॉलेज में वह युवक पढ़ते हैं वहां के बारे में जानकारी ली. एक सामान्य आदमी के रूप में उनसे युवकों और ट्रेन के लोगों ने बिहार के शिक्षा के स्तर पर खूब बात की.
झाड़ू बेचने वाली महिलाओं से की बात: आरा में जब ट्रेन से उतरे तो सड़क पर झाड़ू बेचने वाली महिलाओं से बातें की. पैदल ही स्टेशन से स्कूलों के निरीक्षण के लिए निकल गए. सड़क पर उन्हें कुछ स्कूल ड्रेस में बच्चियों नजर आईं. फिर उन बच्चियों को रोककर उन्होंने उनसे उनके स्कूल के बारे में पूछा. बच्चियों के साथ-साथ वह बच्चियों के स्कूल गए. स्कूल में लंच आवर चल रहा था. बच्चे बच्चियों खेल कूद रहे थे और शिक्षक एक जगह आपस में बैठकर गप कर रहे थे. एस सिद्धार्थ अपने सादगी भरे अंदाज से स्कूल में अंदर चले जा रहे थे और उनसे काफी दूर उनके सिक्योरिटी में तैनात सिपाही चल रहा था. अचानक प्रिंसिपल की नजर पड़ी कि यह तो शिक्षा विभाग के नए अपर मुख्य सचिव हैं.
शिक्षक से लेकर बच्चे तक हुए सादगी के मुरीद: डॉ एस सिद्धार्थ प्रिंसिपल चेंबर में पहुंचे तो प्रिंसिपल ने अपना चेयर उन्हें बैठने के लिए ऑफर किया लेकिन वह साइड के चेयर पर बैठे और रजिस्टर पर अपना नोट दर्ज किया. प्रिंसिपल को उनकी कुर्सी पर ही बैठने को कहा. फिर उन्होंने सभी शिक्षकों से प्रिंसिपल चेंबर में बातें की और क्लासरूम में जाकर बच्चों की पढ़ाई के बारे में भी पूछताछ किया. स्कूल की व्यवस्था से खुश नजर आए और फिर आराम से सामान्य आदमी की तरह स्कूल से निकल गए. जब स्कूल से निकले तो स्कूल के शिक्षक भी डॉक्टर एस सिद्धार्थ के सादगी के मुरीद हो गए.
एस सिद्धार्थ का सभी को बड़ा संदेश: कई बार डॉक्टर एस सिद्धार्थ इस बात को कह चुके हैं कि इंसान को सामान्य व्यक्ति की तरह ही रहना चाहिए. यदि वह पद के साथ मिले सुविधाओं के आदी बन जाएंगे तो रिटायरमेंट के बाद तकलीफ हो जाएगी. सामान्य जीवन शैली जिएंगे तो रिटायरमेंट के बाद भी कोई मानसिक तनाव नहीं होगा और खुशहाल रहेंगे. बहरहाल डॉ एस सिद्धार्थ इस बात को मानते हैं कि शिक्षा विभाग में शिक्षकों के प्रति स्नेह दिखाकर और नैतिकता का पाठ पढ़ाकर ही प्रदेश के शिक्षा की व्यवस्था को दुरुस्त किया जा सकता है. शिक्षकों की पुलिसिंग के वह सख्त खिलाफ हैं. वह यह जरूर करते हैं कि नियमित शिक्षकों का प्रशिक्षण होते रहना चाहिए और इसमें वह कोई कोताही बर्दाश्त नहीं करेंगे.
शिक्षा व्यवस्था को सुधारना उद्देश्य: डॉ एस सिद्धार्थ ने मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह भी कहा है कि सितंबर अक्टूबर में वह परीक्षा के माध्यम से बच्चों का मूल्यांकन करेंगे कि बच्चों ने क्या पढ़ा है और स्कूल में शिक्षकों ने बच्चों को कैसा पढ़ाया है. बच्चों को कॉपी किताब बैग उपलब्ध कराया गया है और बच्चों को बेहतर शिक्षा मिले इसके लिए हर संसाधन सरकार की ओर से उपलब्ध कराए जा रहे हैं. स्कूल में शिक्षकों की उपस्थिति के मॉनिटरिंग के लिए अन्य लोगों को निरीक्षण के लिए भेजने के वह सख्त खिलाफ हैं. इसके लिए उन्होंने एप्लीकेशन के माध्यम से ऑनलाइन अटेंडेंस की शुरुआत की है. डॉ एस सिद्धार्थ आईआईटी से कंप्यूटर साइंस में ग्रेजुएट हैं और आईआईटी से ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में पीएचडी किया है. ऐसे में ऑनलाइन अटेंडेंस को लेकर शिक्षकों की बहानेबाजी विभाग में चल नहीं पा रही है.
यह भी पढ़ें