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जानलेवा बने मोबाइल गेम, आखिर कैसे बचाएं अपने बच्चों को

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 31, 2024, 3:55 PM IST

लखनऊ में मोबाइल गेम की लत दो बच्चों की जान ले चुकी है. इन घटनाओं ने पैरेंट्स की चिंता बढ़ा दी है. जानिए कैसे बच्चे फंसते हैं इसके जाल में और बचने के क्या हैं उपाय.

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लखनऊ: राजधानी के इंदिरानगर इलाके के एक बीडीएस छात्र ने अपने ही कमरे में आत्महत्या कर ली. यह खौफनाक कदम उठाने से पहले छात्र ने अपने दोस्तों को ऑनलाइन गेम खेलने के लिए नोटिफिकेशन भेजा था. जांच में सामने आया कि छात्र ऑनलाइन गेम खेलने का शौकीन था. इसी घटना से तीन दिन पहले राजधानी के ही बंथरा इलाके में ऑनलाइन गेम के शौकीन दसवीं के छात्र ने मोबाइल गेम में नुकसान के बाद आत्महत्या कर ली. एक हफ्ते में इन दो मौतों से हर कोई सिहर गया. खासकर वे मां-बाप जिनके बच्चे हर वक्त मोबाइल में अपना समय काटते हैं.

केस 1
इंदिरानगर इलाके के फरीदनगर स्वास्थ्य भवन में कार्यरत अंजना सिंह अपने बीडीएस की पढ़ाई कर रहे बेटे दिव्यांश (23) के साथ रहती थीं बीते रविवार को उनका बेटा यह कह कर अपने रूम में चला गया कि सुबह जल्दी उठा देना, कॉलेज जाना है. सुबह जब मां अपने बेटे को जगाने गई तो देखा कि उसकी लाश पड़ी हुई है. पुलिस जांच में सामने आया कि दिव्यांश ने जिस वक्त आत्महत्या की, उस दौरान उसके कान में ईयर फोन लगा हुआ था और रात को अपने रूम में जाकर अपने दोस्तों को ऑनलाइन गेम खेलने के लिए नोटिसिफिकेशन भेजा था. दिव्यांश ऑनलाइन गेम खेलने का शौकीन था.

केस 2

बंथरा में रहने वाले सिक्योरिटी गार्ड बृजेश कश्यप का बेटा शिवा दसवीं क्लास में पढ़ता था. ऑनलाइन क्लास के चलते ब्रजेश ने अपने बेटे के लिए एक स्मार्टफोन खरीदा था, लेकिन बेटा पढ़ाई से अधिक मोबाइल में ऑनलाइन गेम खेलता था. जानकारी के मुताबिक शिवा ने मोबाइल गेम खेलने के लिए अपने जानकारों से दस हजार रुपये उधार लिए थे, लेकिन उसने सारे पैसे गंवा दिए. अब पैसे चुकाने के लिए उसे कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो उसने मौत को गले लगा लिया. ऑनलाइन गेम की वजह से जाने वाली ये दोनों मौतें कोई कोई पहली या दूसरी घटना नहीं है. बल्कि इससे पहले भी कई ऐसे मामले आ चुके हैं, जिसकी वजह से बच्चे और उनके मां बाप की जिंदगी बर्बाद हो चुकी है. ऐसे में सवाल है कि आखिर इस तरह के मोबाइल गेम पर क्यों अंकुश नहीं लगाया जाता है?

लखनऊ में मोबाइल गेम की लत दो बच्चों की जान ले चुकी है.
लखनऊ में मोबाइल गेम की लत दो बच्चों की जान ले चुकी है.

बच्चों को करते हैं टारगेट

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं कि वैसे तो जो कोई भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करता है, उसके मोबाइल में कोई न कोई गेम होता ही है. खाली समय पर लोग वक्त काटने के लिए खेलते हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में कई ऐसे ऑनलाइन गेम लॉन्च हुए हैं, जो किसी ड्रग्स से भी ज्यादा खतरनाक हैं. इन गेम को खेलने वाले इस कदर लती हो जाते हैं कि गेम के हर स्टेप को पार करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. कई बार तो बच्चे अपने पेरेंट्स के डेबिट, क्रेडिट या यूपीआई से पैसे ट्रांसफर कर देते हैं और पेरेंट्स को काफी समय के बाद पता चलता है. कभी गेम के चलते युवा अपराध तक करने के लिए तैयार रहते हैं अमित कहते हैं कि गेम बनाने वाली कंपनियां ऑनलाइन गेम को इस तरह से डिजाइन करती हैं कि पहले गेम के कुछ स्टेप फ्री में खेलने देते है और बाद में जब उसका नशा हो जाए तो हर स्टेप के लिए टास्क और पैसे बढ़ाते जाते हैं, जिससे युवा लंबे समय तक गेम खेलते रहते हैं.

मोबाइल गेम की लत ने पैरेंट्स की चिंता बढ़ा दी है.
मोबाइल गेम की लत ने पैरेंट्स की चिंता बढ़ा दी है.

जीत का लालच बना रहा क्रिमिनल

यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा कहते हैं कि कई स्टडी में सामने आया है कि 20 प्रतिशत गेम्स को छोड़ दें तो अन्य 80 प्रतिशत में टास्क दिए गए हैं. जिन्हे पूरा करने के लिए युवा पैरेंट्स या फिर रिश्तेदारों से पैसों की चोरी या फिर उधार मांगते हैं, ताकि गेम के टास्क को कंप्लीट किया जा सके. इन गेम की लत में फंसे युवाओं का मानसिक संतुलन बिगड़ने, पैसा बर्बाद होने समेत कई बार आत्महत्या जैसी कई घटनाएं भी सामने आती हैं.

रोक के लिए कोई सख्त नियम नहीं

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं कि दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जो अपनी युवा पीढ़ी को गेम्स की लत से बचाने के लिए अलर्ट मोड पर हैं. ब्राजील, चीन, वेनेजुएला, जापान और ऑस्ट्रेलिया में ऐसे गेम्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जो हिंसक थे. चीन में 18 साल से कम उम्र वालों को सुबह 8 से रात 9 बजे के बीच शुक्रवार, शनिवार, रविवार और सार्वजनिक छुट्टी के दिन अधिकतम 3 घंटे तक ही ऑनलाइन गेम खेलने की परमीशन है. वहीं भारत में इसे लेकर कोई सख्त नियम नहीं हैं. हालांकि भारत पबजी जैसे कई चाइनीज ऑनलाइन गेम्स पर दो साल पहले ही पाबंदी लगा चुका है, लेकिन अब भी ऐसे गेम उपलब्ध हो रहे हैं.

बड़ों के निगरानी में यूज करें मोबाइल-एक्सपर्ट

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ल के मुताबिक, बच्चे अगर अधिक समय मोबाइल खासकर ऑनलाइन गेम में देते हैं तो बच्चों के सेहत पर काफी असर पड़ता है. ये जरूरी है कि बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम लिमटेड किया जाए. फोन का भी लिमटेड ही एक्सेस दिया जाए. पहले भी बहुत सारे ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें ऑनलाइन गेम चैलेंज पूरा करने के लिए बच्चों ने घर छोड़ दिया. ये ध्यान देना जरूरी है कि बच्चे जब भी मोबाइल यूज करें, तो वह किसी न किसी बड़े की निगरानी में ही रहें.

यह भी पढ़ें : Bihar Crime: 12 साल के बच्चे को फ्री फायर गेम की लगी लत.. उठाया खौफनाक कदम

यह भी पढ़ें : राजस्थान : अलवर में मोबाइल गेम की लत से बिगड़ा बच्चे का मानसिक संतुलन, परिजन बोले- होली के बाद घूमने लगी थी आंखें

लखनऊ: राजधानी के इंदिरानगर इलाके के एक बीडीएस छात्र ने अपने ही कमरे में आत्महत्या कर ली. यह खौफनाक कदम उठाने से पहले छात्र ने अपने दोस्तों को ऑनलाइन गेम खेलने के लिए नोटिफिकेशन भेजा था. जांच में सामने आया कि छात्र ऑनलाइन गेम खेलने का शौकीन था. इसी घटना से तीन दिन पहले राजधानी के ही बंथरा इलाके में ऑनलाइन गेम के शौकीन दसवीं के छात्र ने मोबाइल गेम में नुकसान के बाद आत्महत्या कर ली. एक हफ्ते में इन दो मौतों से हर कोई सिहर गया. खासकर वे मां-बाप जिनके बच्चे हर वक्त मोबाइल में अपना समय काटते हैं.

केस 1
इंदिरानगर इलाके के फरीदनगर स्वास्थ्य भवन में कार्यरत अंजना सिंह अपने बीडीएस की पढ़ाई कर रहे बेटे दिव्यांश (23) के साथ रहती थीं बीते रविवार को उनका बेटा यह कह कर अपने रूम में चला गया कि सुबह जल्दी उठा देना, कॉलेज जाना है. सुबह जब मां अपने बेटे को जगाने गई तो देखा कि उसकी लाश पड़ी हुई है. पुलिस जांच में सामने आया कि दिव्यांश ने जिस वक्त आत्महत्या की, उस दौरान उसके कान में ईयर फोन लगा हुआ था और रात को अपने रूम में जाकर अपने दोस्तों को ऑनलाइन गेम खेलने के लिए नोटिसिफिकेशन भेजा था. दिव्यांश ऑनलाइन गेम खेलने का शौकीन था.

केस 2

बंथरा में रहने वाले सिक्योरिटी गार्ड बृजेश कश्यप का बेटा शिवा दसवीं क्लास में पढ़ता था. ऑनलाइन क्लास के चलते ब्रजेश ने अपने बेटे के लिए एक स्मार्टफोन खरीदा था, लेकिन बेटा पढ़ाई से अधिक मोबाइल में ऑनलाइन गेम खेलता था. जानकारी के मुताबिक शिवा ने मोबाइल गेम खेलने के लिए अपने जानकारों से दस हजार रुपये उधार लिए थे, लेकिन उसने सारे पैसे गंवा दिए. अब पैसे चुकाने के लिए उसे कहीं से कोई मदद नहीं मिली तो उसने मौत को गले लगा लिया. ऑनलाइन गेम की वजह से जाने वाली ये दोनों मौतें कोई कोई पहली या दूसरी घटना नहीं है. बल्कि इससे पहले भी कई ऐसे मामले आ चुके हैं, जिसकी वजह से बच्चे और उनके मां बाप की जिंदगी बर्बाद हो चुकी है. ऐसे में सवाल है कि आखिर इस तरह के मोबाइल गेम पर क्यों अंकुश नहीं लगाया जाता है?

लखनऊ में मोबाइल गेम की लत दो बच्चों की जान ले चुकी है.
लखनऊ में मोबाइल गेम की लत दो बच्चों की जान ले चुकी है.

बच्चों को करते हैं टारगेट

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं कि वैसे तो जो कोई भी स्मार्टफोन का इस्तेमाल करता है, उसके मोबाइल में कोई न कोई गेम होता ही है. खाली समय पर लोग वक्त काटने के लिए खेलते हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में कई ऐसे ऑनलाइन गेम लॉन्च हुए हैं, जो किसी ड्रग्स से भी ज्यादा खतरनाक हैं. इन गेम को खेलने वाले इस कदर लती हो जाते हैं कि गेम के हर स्टेप को पार करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. कई बार तो बच्चे अपने पेरेंट्स के डेबिट, क्रेडिट या यूपीआई से पैसे ट्रांसफर कर देते हैं और पेरेंट्स को काफी समय के बाद पता चलता है. कभी गेम के चलते युवा अपराध तक करने के लिए तैयार रहते हैं अमित कहते हैं कि गेम बनाने वाली कंपनियां ऑनलाइन गेम को इस तरह से डिजाइन करती हैं कि पहले गेम के कुछ स्टेप फ्री में खेलने देते है और बाद में जब उसका नशा हो जाए तो हर स्टेप के लिए टास्क और पैसे बढ़ाते जाते हैं, जिससे युवा लंबे समय तक गेम खेलते रहते हैं.

मोबाइल गेम की लत ने पैरेंट्स की चिंता बढ़ा दी है.
मोबाइल गेम की लत ने पैरेंट्स की चिंता बढ़ा दी है.

जीत का लालच बना रहा क्रिमिनल

यूपी पुलिस के साइबर सलाहकार राहुल मिश्रा कहते हैं कि कई स्टडी में सामने आया है कि 20 प्रतिशत गेम्स को छोड़ दें तो अन्य 80 प्रतिशत में टास्क दिए गए हैं. जिन्हे पूरा करने के लिए युवा पैरेंट्स या फिर रिश्तेदारों से पैसों की चोरी या फिर उधार मांगते हैं, ताकि गेम के टास्क को कंप्लीट किया जा सके. इन गेम की लत में फंसे युवाओं का मानसिक संतुलन बिगड़ने, पैसा बर्बाद होने समेत कई बार आत्महत्या जैसी कई घटनाएं भी सामने आती हैं.

रोक के लिए कोई सख्त नियम नहीं

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं कि दुनिया के कई ऐसे देश हैं, जो अपनी युवा पीढ़ी को गेम्स की लत से बचाने के लिए अलर्ट मोड पर हैं. ब्राजील, चीन, वेनेजुएला, जापान और ऑस्ट्रेलिया में ऐसे गेम्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, जो हिंसक थे. चीन में 18 साल से कम उम्र वालों को सुबह 8 से रात 9 बजे के बीच शुक्रवार, शनिवार, रविवार और सार्वजनिक छुट्टी के दिन अधिकतम 3 घंटे तक ही ऑनलाइन गेम खेलने की परमीशन है. वहीं भारत में इसे लेकर कोई सख्त नियम नहीं हैं. हालांकि भारत पबजी जैसे कई चाइनीज ऑनलाइन गेम्स पर दो साल पहले ही पाबंदी लगा चुका है, लेकिन अब भी ऐसे गेम उपलब्ध हो रहे हैं.

बड़ों के निगरानी में यूज करें मोबाइल-एक्सपर्ट

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ल के मुताबिक, बच्चे अगर अधिक समय मोबाइल खासकर ऑनलाइन गेम में देते हैं तो बच्चों के सेहत पर काफी असर पड़ता है. ये जरूरी है कि बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम लिमटेड किया जाए. फोन का भी लिमटेड ही एक्सेस दिया जाए. पहले भी बहुत सारे ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें ऑनलाइन गेम चैलेंज पूरा करने के लिए बच्चों ने घर छोड़ दिया. ये ध्यान देना जरूरी है कि बच्चे जब भी मोबाइल यूज करें, तो वह किसी न किसी बड़े की निगरानी में ही रहें.

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