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काशी में बनेगा दक्षिण भारत के वेद विद्या का बड़ा केंद्र, उत्तर भारत जानेगा दक्षिण की परंपरा - कांची कामकोटि पीठ

बाबा विश्वनाथ के शहर बनारस से दक्षिण भारत का रिश्ता पुराना है. काशी अब दक्षिण भारत के वेद विद्या और पूजा पद्धति की पढ़ाई का बड़ा केंद्र बनेगा. कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने इसके लिए पहल की है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 31, 2024, 1:31 PM IST

काशी में बनेगा दक्षिण भारत के वेद विद्या का बड़ा केंद्र

वाराणसी : बाबा विश्वनाथ के शहर बनारस से दक्षिण भारत का रिश्ता पुराना है. प्राचीन समय से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा और दर्शन के लिए दक्षिण भारत से यहां आते रहे हैं. यही काशी अब दक्षिण भारत के वेद विद्या और पूजा पद्धति के पढ़ाई का बड़ा केंद्र बनेगा. कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने इसके लिए पहल की है. इसके माध्यम से दोनों दक्षिण और उत्तर भारत को जोड़ने का काम किया जाएगा. यहां की परंपरा और यहां की संस्कृति का परिचय दोनों की तरफ के राज्यों को दिया जाएगा. इसको लेकर काशी और प्रयागराज के बीच में सनातन धर्म सेवाग्राम की एक योजना बनाने की तैयारी की जा रही है. कांची कामकोटि पीठ के प्रबंधक वी एस सुब्रह्मण्यम मणि ने इसको लेकर जानकारी दी है.


बनारस न सिर्फ सनातन आस्था का ध्वज वाहक है, बल्कि देश के राज्यों को उनकी परंपराओं से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. एक ओर जहां देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी तमिल संगमम का आयोजन कर उत्तर से दक्षिण को जोड़ने का काम किया है. उसी कड़ी में काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ भी दोनों राज्यों को उनकी परंपराओं और संस्कृति से अवगत कराने का एक बड़ा प्रयास करने जा रहा है. काशी और प्रयागराज के बीच इस कड़ी को जोड़ने वाले एक सनातन धर्म देवाग्राम योजना की शुरुआत की जाएगी.

चार तरह के कार्यक्रम की शुरुआत : काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ के प्रबंधक वी एस सुब्रह्मण्यम मणि ने बताया कि काशी और प्रयागराज के बीच में सनातन धर्म सेवाग्राम की एक योजना में हमने इसके लिए चार तरह के कार्यक्रम की तैयारी की है. पहला पूर्णकालीन वेद विद्या योजना है. इसमें हमारी परंपरा में श्रुति परंपरा से वेद अध्ययन का कार्य किया जाता है. दूसरा है अंशकालीन वेद विद्या योजना. इसमें जो व्यक्ति आधुनिक परंपरा के साथ वेद शिक्षा प्राप्त करना चाहता है हम उसकी व्यवस्था कर रहे हैं. तीसरा है ऋषि कृषि. इसमें हमारे ऋषियों द्वारा जो कृषि का अध्ययन किया जाता रहा है, जो पारंपरिक और जैविक खेती का कार्य हुआ था. हम उस कार्य को भी पूर्ण रूप से संकल्पित करते हुए अमल में लाने का प्रयास कर रहे हैं. चौथा है संस्कृति धाम. इसमें हमारी जितनी भी संस्कृति हैं जिसमें नृत्य, कला, संगीत, इतिहास, रामायण-महाभारत के साथ 18 पुराणों का परिचय कराया जाएगा.

महिला शक्ति को देंगे प्रशिक्षण : उन्होंने बताया कि इसके साथ ही तीज-त्योहार हम किस तरह से पारंपरिक रूप से मनाते थे, उसमें जो रिक्तता आई है उसमें सुधार करने का हम प्रयास कर रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण रूप से महिलाओं के लिए एक संप्रदाय प्रशिक्षण का कार्यक्रम हम शुरू कर रहे हैं, जिसमें रंगोली बनाने से लेकर सात्विक भोजन किस तरह से बनाया जाता है इस पर शिक्षा दी जाएगी. इसके साथ ही शाकाहारी भोजन का क्या महत्व है ये भी बताया जाएगा. वहीं कैलेंडर देखना और तिथिवार नक्षत्र देखकर किस तरह से महिलाएं अपने बच्चों को उसका अनुसरण करने को प्रेरित करती थीं. उन सभी कार्यों से हम मातृ शक्ति को परिचित कराएंगे. इस कार्य के लिए काशी और प्रयागराज के मध्य स्थान का चयन किया गया है. आने वाले एक-दो महीने के अंदर यह कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा.


परंपराओं और संस्कृति की देंगे जानकारी : उनका कहना है कि उत्तर भारत की जो परंपरा है हम उसके बारे में लोगों को बताएंगे. इसके साथ ही दक्षिण भारत की जो परंपरा है उसको भी यहां के लोगों को बताएंगे. वहां से जो विद्यार्थी आएंगे उनको भी हम यहां के बारे में जानकारी देंगे. उन्हें यहां की परंपराओं की जानकारी देंगे. बता दें कि काशी और दक्षिण को जोड़ने की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से ही की है. काशी तमिल संगमम का आयोजन कर दोनों छोर की परंपराओं और यहां की संस्कृति के बारे में जानकारी दी जा रही है. अभी तक काशी में दो बार इस कार्यक्रम का आयोजन कराया जा चुका है. ऐसे में काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ के माध्यम से दोनों ही राज्यों को एक दूसरे से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.

यह भी पढ़ें : शंकराचार्य को लेकर विवाद होते रहे हैं, जानें कैसे चुने जाते हैं शंकराचार्य के उत्तराधिकारी

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काशी में बनेगा दक्षिण भारत के वेद विद्या का बड़ा केंद्र

वाराणसी : बाबा विश्वनाथ के शहर बनारस से दक्षिण भारत का रिश्ता पुराना है. प्राचीन समय से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूजा और दर्शन के लिए दक्षिण भारत से यहां आते रहे हैं. यही काशी अब दक्षिण भारत के वेद विद्या और पूजा पद्धति के पढ़ाई का बड़ा केंद्र बनेगा. कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी शंकर विजयेंद्र सरस्वती ने इसके लिए पहल की है. इसके माध्यम से दोनों दक्षिण और उत्तर भारत को जोड़ने का काम किया जाएगा. यहां की परंपरा और यहां की संस्कृति का परिचय दोनों की तरफ के राज्यों को दिया जाएगा. इसको लेकर काशी और प्रयागराज के बीच में सनातन धर्म सेवाग्राम की एक योजना बनाने की तैयारी की जा रही है. कांची कामकोटि पीठ के प्रबंधक वी एस सुब्रह्मण्यम मणि ने इसको लेकर जानकारी दी है.


बनारस न सिर्फ सनातन आस्था का ध्वज वाहक है, बल्कि देश के राज्यों को उनकी परंपराओं से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभा रहा है. एक ओर जहां देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी तमिल संगमम का आयोजन कर उत्तर से दक्षिण को जोड़ने का काम किया है. उसी कड़ी में काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ भी दोनों राज्यों को उनकी परंपराओं और संस्कृति से अवगत कराने का एक बड़ा प्रयास करने जा रहा है. काशी और प्रयागराज के बीच इस कड़ी को जोड़ने वाले एक सनातन धर्म देवाग्राम योजना की शुरुआत की जाएगी.

चार तरह के कार्यक्रम की शुरुआत : काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ के प्रबंधक वी एस सुब्रह्मण्यम मणि ने बताया कि काशी और प्रयागराज के बीच में सनातन धर्म सेवाग्राम की एक योजना में हमने इसके लिए चार तरह के कार्यक्रम की तैयारी की है. पहला पूर्णकालीन वेद विद्या योजना है. इसमें हमारी परंपरा में श्रुति परंपरा से वेद अध्ययन का कार्य किया जाता है. दूसरा है अंशकालीन वेद विद्या योजना. इसमें जो व्यक्ति आधुनिक परंपरा के साथ वेद शिक्षा प्राप्त करना चाहता है हम उसकी व्यवस्था कर रहे हैं. तीसरा है ऋषि कृषि. इसमें हमारे ऋषियों द्वारा जो कृषि का अध्ययन किया जाता रहा है, जो पारंपरिक और जैविक खेती का कार्य हुआ था. हम उस कार्य को भी पूर्ण रूप से संकल्पित करते हुए अमल में लाने का प्रयास कर रहे हैं. चौथा है संस्कृति धाम. इसमें हमारी जितनी भी संस्कृति हैं जिसमें नृत्य, कला, संगीत, इतिहास, रामायण-महाभारत के साथ 18 पुराणों का परिचय कराया जाएगा.

महिला शक्ति को देंगे प्रशिक्षण : उन्होंने बताया कि इसके साथ ही तीज-त्योहार हम किस तरह से पारंपरिक रूप से मनाते थे, उसमें जो रिक्तता आई है उसमें सुधार करने का हम प्रयास कर रहे हैं. सबसे महत्वपूर्ण रूप से महिलाओं के लिए एक संप्रदाय प्रशिक्षण का कार्यक्रम हम शुरू कर रहे हैं, जिसमें रंगोली बनाने से लेकर सात्विक भोजन किस तरह से बनाया जाता है इस पर शिक्षा दी जाएगी. इसके साथ ही शाकाहारी भोजन का क्या महत्व है ये भी बताया जाएगा. वहीं कैलेंडर देखना और तिथिवार नक्षत्र देखकर किस तरह से महिलाएं अपने बच्चों को उसका अनुसरण करने को प्रेरित करती थीं. उन सभी कार्यों से हम मातृ शक्ति को परिचित कराएंगे. इस कार्य के लिए काशी और प्रयागराज के मध्य स्थान का चयन किया गया है. आने वाले एक-दो महीने के अंदर यह कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा.


परंपराओं और संस्कृति की देंगे जानकारी : उनका कहना है कि उत्तर भारत की जो परंपरा है हम उसके बारे में लोगों को बताएंगे. इसके साथ ही दक्षिण भारत की जो परंपरा है उसको भी यहां के लोगों को बताएंगे. वहां से जो विद्यार्थी आएंगे उनको भी हम यहां के बारे में जानकारी देंगे. उन्हें यहां की परंपराओं की जानकारी देंगे. बता दें कि काशी और दक्षिण को जोड़ने की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी से ही की है. काशी तमिल संगमम का आयोजन कर दोनों छोर की परंपराओं और यहां की संस्कृति के बारे में जानकारी दी जा रही है. अभी तक काशी में दो बार इस कार्यक्रम का आयोजन कराया जा चुका है. ऐसे में काशी में स्थित कांची कामकोटि पीठ के माध्यम से दोनों ही राज्यों को एक दूसरे से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है.

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