गया : किसी व्यक्ति में सेवा करने का भाव और जज़्बा हो तो उसमें समय और पैसे खर्च करने कोई महत्व नहीं होता. सेवा के क्षेत्र और तरीके भिन्न हो सकते हैं, बस आपके दिल में किसी को सहयोग करने की चाहत होनी चाहिए. शर्त यह है कि काम नेक इरादे से किया जाए. गया शहर के पंचायती अखाड़ा निवासी 94 वर्षीय अहमद हुसैन इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. 12 बच्चों के पिता अहमद हुसैन की कहानी
12 बच्चों के बुजुर्ग पिता बने समाजसेवी : 8 बेटे और 4 बेटियों के पिता अहमद हुसैन (94 वर्ष) सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हैं. अपनी पेंशन के पैसे का एक बड़ा हिस्सा गरीब अनाथ बच्चों की शिक्षा में लगाते हैं. उनकी पेंशन 50 हजार रुपये है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन्हें प्रोत्साहित करने में खर्च हो जाता है. पेंशन की राशि का एक हिस्सा अपने स्कूल 'हादी हाशमी सीनियर सेकेंडरी प्लस टू स्कूल' के लिए रखते हैं, जहां से अहमद हुसैन ने मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की थी.
सेवा करने की शुरुआत ऐसे हुई : अहमद हुसैन ने बताया कि उन्हें यह भावना अपने बच्चों की शिक्षा की एक घटना से मिली है. उनके 8 बेटे और 4 बेटियां हैं. इनमें बड़ा बेटा चेन्नई यूनिवर्सिटी से रिटायर प्रोफेसर है, एक बेटा कनाडा सचिवालय में कार्यरत है और उसे वहां की नागरिकता प्राप्त है, जबकि बाकी और बेटे भी सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में अच्छी नौकरियों में हैं. उन्होंने कहा कि जब उनकी आय अच्छी नहीं थी तो अलीगढ़ में पढ़ाई के दौरान उनके बच्चों को एक व्यक्ति से वजीफा 'सहयोग राशि' मिल जाता था, आज उन्हें वे सारी चीज़ें याद हैं.
''जब आपके पास जरूरत से ज्यादा आय हो तो गरीबों की मदद करें, हम भी ऐसा ही करते हैं. महीने में 35 हजार रुपए तक खर्च करते हैं और अपने बच्चों को भी लोगों की मदद करने की सलाह देते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में मदद करने का एक शानदार तरीका है, हम सबसे पहले अपने विद्यालय जहां से शिक्षा ली थी उसे याद करते हैं और वहां के बच्चों का हौसला बढ़ाते हैं, इसके बाद वे दूसरे स्कूलों के बच्चों की मदद करते हैं.''- अहमद हुसैन, समाजसेवी
गरीब और अनाथ बच्चों की करते हैं मदद : अहमद हुसैन स्कूल के उन छात्रों को पुरस्कार भी देते हैं जो कक्षा 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं में जिला या स्कूल स्तर पर शीर्ष तीन स्थान प्राप्त करते हैं. इन छात्रों में प्रथम श्रेणी से सफल छात्र को 5000 रुपये, दूसरे को 4000 रुपये और तीसरे को 3000 रुपये देकर प्रोत्साहित करते हैं. इसमें कोई अंतर नहीं है कि वे केवल मुस्लिम गरीब बच्चों को ही प्रोत्साहित करेंगे, बल्कि वे सभी संप्रदायों के गरीब अनाथ बच्चों की शिक्षा में सहयोग करते हैं.
स्कूली छात्र छात्राओं को करते हैं सहयोग : अन्य स्कूलों में भी उनके द्वारा गरीब बच्चों की मदद की जाती है. स्कूल में प्रवेश शुल्क का भुगतान के साथ कक्षा के अनुसार पाठ्यपुस्तकें खरीद कर देते हैं. अहमद हुसैन ने अपने बुलंद हौसलों और भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी पेंशन में छात्रों का अधिकार भी शामिल है, क्योंकि उनकी जब आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, तो उनके बच्चों को भी एक व्यक्ति ने शिक्षा प्राप्त करने के दौरान सहयोग दिया था. ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें, आज उन्हें वही बातें याद आती हैं.
''हमारे खर्चे बहुत कम हैं, मेरे सभी पुत्र अपने जीवन में खुश और सुखी संपन्न हैं, उन्हें हमारी पेंशन के पैसे की जरूरत नहीं है, लेकिन मेरी जरूरतों का ख्याल पुत्र रखते हैं. हम पैसे बचाकर क्या करेंगे, उन लोगों की मदद करने का प्रयास करेंगे जो इसके हकदार हैं, इसी कारण हम ग़रीब बच्चों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करते हैं.''- अहमद हुसैन, समाजसेवी
आज़ादी के चार साल बाद मिली थी नौकरी : अहमद हुसैन ने ईटीवी भारत से अपने जीवन के उतार-चढ़ाव के बारे में बात करते हुए कहा कि उनके छात्र जीवन में ही देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिल गई थी. वे एक क्लर्क के पद पर बहाल हुए थे, फिर अकाउंटेंट की परीक्षा दी और उत्तीर्ण होकर कोषागार में अकाउंटेंट बन गये. वह 1990 में करीब 20 हजार की सैलरी पर रिटायर हुए. अब उनकी पेंशन 50 हजार रुपये है.
'पैसा नहीं जज़्बा महत्वपूर्ण' : हादी हाशमी सीनियर सेकेंडरी प्लस टू स्कूल के प्राचार्य डॉ नफासत करीम कहते हैं कि अहमद हुसैन काफी ईमानदार हैं. पैसा महत्वपूर्ण नहीं है कि वह कितना खर्च करते हैं, बच्चों की पढ़ाई में सहयोग करते हैं, खास बात ये है कि इतनी उम्र होने के बावजूद उन्हें आज भी अपना स्कूल याद है, वे न केवल अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने वाले छात्रों को प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि वे अक्सर गरीब बच्चों की प्रवेश शुल्क से लेकर किताबों और अन्य खर्चों में भी सहयोग करते हैं.
''हादी हाशमी स्कूल की स्थापना आजादी से पहले 1926 में हुई थी. तब से अब तक हजारों छात्र यहां से पढ़कर अच्छे पदों पर पहुंचे हैं, लेकिन उनमें से कोई भी ऐसा नहीं है जो अपने विद्यालय को याद कर बच्चों का हौसला बढ़ाने के लिए यहां समय बिताता हो. अहमद साहब का साहस और सेवा सराहनीय है. पिछले 15 वर्षों से इन्हे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. अहमद हुसैन मेरे स्कूल में आकर बच्चों को छात्रवृत्ति देकर आर्थिक मदद करते हैं.''- डॉ नफासत करीम, प्राचार्य,हादी हाशमी सीनियर सेकेंडरी प्लस टू स्कूल
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