रामगढ़: जिले के दामोदर नदी के किनारे स्थित गांधी घाट हमेशा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की याद ताजा कराती है. आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर उपायुक्त, एसपी, रामगढ़ की विधायक, सामाजिक संस्था सहित गणमान्य लोगों ने महात्मा गांधी की समाधि स्थल पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी.
आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर में हुआ था और उनकी हत्या 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में हुई थी. रामगढ़ के दामोदर नदी के किनारे बापू का पवित्र कलश स्थापित है. जब बापू का निधन हुआ तो उस समय सोलह कलश पूरे देश मे अलग-अलग स्थानों में ले जाये गये थे, जिसमें एक कलश रामगढ़ दामोदर नदी के किनारे स्थापित किया गया है, जो आज गांधी घाट के रूप में जाना जाता है.
यह एक ऐतिहासिक स्थल है
रामगढ़ विधायक ममता देवी ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक स्थल है. गांधी जी ने रामगढ़ में रह कर अग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई का बिगुल फुका था. रामगढ़ एसपी अजय कुमार ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा और सच्चाई के बताए मार्ग पर चलना चाहिए. लोगों का भला करना चाहिए और जब आप सच्चाई के मार्ग पर चलेंगे तो आपको आत्म संतुष्टि भी मिलेगी. लोगों को द्वेष ईर्ष्या नहीं रखना चाहिये सभी को मिलजुल कर रहना चाहिए.
उपायुक्त चंदन कुमार ने कहा कि गांधी जी के द्वारा किए गए कार्यों को हम याद करते हैं व गांधी जी की पूरी जिंदगी प्रेरणा युक्त है. महात्मा गांधी का देश को महान बनाने में बहुत बड़ा योगदान है. उनके आदर्शों पर चलकर देश को महान बनाया जा सकता है. उनका योगदान अपने आप में अविस्मरणीय है.
गांधी जी का लगाव रामगढ़ से भी था
रामगढ़ से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का कनेक्शन भी है. वर्ष 1940 में 18 से 20 मार्च तक आयोजित इस अधिवेशन के लिए हरिहर नदी के किनारे ही नेताओं के ठहरने के लिए तंबू आदि लगाए गए थे. मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में आयोजित रामगढ़ अधिवेशन में महात्मा गांधी, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत कई दिग्गज नेताओं ने हिस्सा लिया था.
इस अधिवेशन में कई वरिष्ठ नेता थे
डॉ. श्रीकृष्ण सिंह, डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ-साथ देश के कई वरिष्ठ नेता इसमें शामिल हुए थे. बताया जाता है कि अधिवेशन के दौरान गांधी जी ने आजादी के लिए जैसे ही सभी लोगों से आह्वान किया, पूरा समारोह स्थल आजादी के नारों से गूंज उठा था. भारी बारिश के बीच तीन दिवसीय अधिवेशन में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की रूपरेखा तय की गई थी.
अधिवेशन के करीब सात साल बाद 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद 16 समाधियां बनाई गई थीं. उनकी अस्थियां देश भर के कई स्थानों के साथ-साथ 1948 में बापू की अस्थियों को रखकर दामोदर तट पर समाधि स्थल बनाया गया. आज यह समाधि स्थल गांधी घाट के नाम से प्रसिद्ध है.
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