ETV Bharat / state

64 साल का हुआ उत्तरकाशी, कई आपदाओं से ऐसे उभरा जिला

Foundation Day Uttarkashi District उत्तरकाशी जिले ने कई आपदाओं को झेला है. इसके बाद भी ये जिला पूरी मजबूती के साथ विकास के पथ पर चलता रहा. जिसका नतीजा है कि आज जिला पर्यटन के मानचित्र में अपनी जगह बना चुका है. जहां हर साल देश-विदेश से लाखों सैलानी पहुंचते हैं.

author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 24, 2024, 10:19 AM IST

Etv Bharat
Etv Bharat

उत्तरकाशी: साल 1978 की विनाशकारी बाढ़ के बाद दशक दर दशक आपदाओं से लड़ते हुए मजबूत हुआ उत्तरकाशी जनपद आज अपनी वयोवृद्ध 64 वर्ष की आयु में प्रवेश कर गया है. उत्तरकाशी जनपद का इन 64 वर्षों में भले ही आपदाओं का काला इतिहास रहा हो, लेकिन उसके बाद भी चारधाम यात्रा और यहां की प्राकृतिक खूबसूरती, परंपरा इसे देश-विदेश में अपनी एक विशेष पहचान दिलाती है.

24 फरवरी 1960 में उत्तरकाशी टिहरी रियासत से अलग होकर एक पृथक जनपद बना था. इसमें गंगा और रवांई घाटी के परगनाओं को शामिल किया गया. गंगोत्री और यमुनोत्री धाम स्थित होने के कारण इसकी पहचान देश-विदेश में रही है. लेकिन जनपद के लिए चुनौतियां भी कम नहीं थी. जनपद धीरे-धीरे अपने विकास की दौड़ की और बढ़ने लगा. लेकिन आपदा ने हिमालय के गोद में बसे इस जनपद की बार-बार परीक्षा ली.
पढ़ें-उत्तरकाशी में ट्रैकर्स ने मोनाल ट्रैक का किया दीदार, जमकर उठाया बर्फबारी का लुत्फ

साल 1978 की विनाशकारी बाढ़ के बाद हर दशक उत्तरकाशी बड़ी-बड़ी आपदाओं को झेलता रहा. इसमें 1991 का भूकंप आज भी सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में लोगों के जेहन में शामिल है. जिसमें 700 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. लगा था कि अब जनपद की दशा-दिशा कभी पटरी पर नहीं लौटेगी. लेकिन उसके बाद भी जनपद मजबूती के साथ खड़ा हुआ. यही कारण है तमाम आपदाओं के बाद इसने अपनी खूबसूरती नहीं छोड़ी. आज भी हर वर्ष यहां पर देश-विदेश से लोग चारधाम यात्रा सहित बुग्यालों और यहां के गांव-गांव की समृद्ध और दैवीय व सांस्कृतिक परंपराओं को देखने पहुंचते हैं.

पढ़ें-मौसम खुलते ही बर्फ से पटे ट्रैकों का रुख करने लगे पर्यटक, ट्रैकर्स से गुलजार हुआ डोडिताल

वरिष्ठ पत्रकार सूरत सिंह रावत कहते हैं कि साल 1991 का भूकंप हो या 2003 की वरुणावत त्रासदी, लोग इन आपदाओं के भय से विस्थापन की मांग करने लगे थे. लेकिन मां गंगा और बाबा काशी विश्वनाथ की यह नगरी हमेशा एक नई शक्ति के रूप में खड़ी होती रही.

उत्तरकाशी जनपद में आई आपदाएं

  • साल 1978- डबराणी के समीप भागीरथी में झील बनने के कारण आई थी विनाशकारी बाढ़.
  • साल 1991- विनाशकारी भूकंप में जनपद के 700 से अधिक लोगों ने जान गंवाई थी.
  • साल 2003- वरूणावत पर्वत से भूस्खलन के कारण कई बड़े होटल भवन हुए थे जमींदोज.
  • साल 2012-13- अस्सी गंगा घाटी और भटवाड़ी सहित जनपद मुख्यालय में अस्सी गंगा और भागीरथी नदी में आई थी बाढ़.
  • साल 2019- आराकोट आपदा में कई लोगों की ली थी जान. वहीं खेती और भवन तबाह हो गए थे.
  • साल 2022- दौप्रदी के डांडा में आया था एवलांच,जिसमें निम के 29 पर्वतारोहियों की मौत हुई थी.
  • साल 2023- निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन के कारण 17 दिन तक फंसे रहे मजदूर.

उत्तरकाशी: साल 1978 की विनाशकारी बाढ़ के बाद दशक दर दशक आपदाओं से लड़ते हुए मजबूत हुआ उत्तरकाशी जनपद आज अपनी वयोवृद्ध 64 वर्ष की आयु में प्रवेश कर गया है. उत्तरकाशी जनपद का इन 64 वर्षों में भले ही आपदाओं का काला इतिहास रहा हो, लेकिन उसके बाद भी चारधाम यात्रा और यहां की प्राकृतिक खूबसूरती, परंपरा इसे देश-विदेश में अपनी एक विशेष पहचान दिलाती है.

24 फरवरी 1960 में उत्तरकाशी टिहरी रियासत से अलग होकर एक पृथक जनपद बना था. इसमें गंगा और रवांई घाटी के परगनाओं को शामिल किया गया. गंगोत्री और यमुनोत्री धाम स्थित होने के कारण इसकी पहचान देश-विदेश में रही है. लेकिन जनपद के लिए चुनौतियां भी कम नहीं थी. जनपद धीरे-धीरे अपने विकास की दौड़ की और बढ़ने लगा. लेकिन आपदा ने हिमालय के गोद में बसे इस जनपद की बार-बार परीक्षा ली.
पढ़ें-उत्तरकाशी में ट्रैकर्स ने मोनाल ट्रैक का किया दीदार, जमकर उठाया बर्फबारी का लुत्फ

साल 1978 की विनाशकारी बाढ़ के बाद हर दशक उत्तरकाशी बड़ी-बड़ी आपदाओं को झेलता रहा. इसमें 1991 का भूकंप आज भी सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में लोगों के जेहन में शामिल है. जिसमें 700 से अधिक लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. लगा था कि अब जनपद की दशा-दिशा कभी पटरी पर नहीं लौटेगी. लेकिन उसके बाद भी जनपद मजबूती के साथ खड़ा हुआ. यही कारण है तमाम आपदाओं के बाद इसने अपनी खूबसूरती नहीं छोड़ी. आज भी हर वर्ष यहां पर देश-विदेश से लोग चारधाम यात्रा सहित बुग्यालों और यहां के गांव-गांव की समृद्ध और दैवीय व सांस्कृतिक परंपराओं को देखने पहुंचते हैं.

पढ़ें-मौसम खुलते ही बर्फ से पटे ट्रैकों का रुख करने लगे पर्यटक, ट्रैकर्स से गुलजार हुआ डोडिताल

वरिष्ठ पत्रकार सूरत सिंह रावत कहते हैं कि साल 1991 का भूकंप हो या 2003 की वरुणावत त्रासदी, लोग इन आपदाओं के भय से विस्थापन की मांग करने लगे थे. लेकिन मां गंगा और बाबा काशी विश्वनाथ की यह नगरी हमेशा एक नई शक्ति के रूप में खड़ी होती रही.

उत्तरकाशी जनपद में आई आपदाएं

  • साल 1978- डबराणी के समीप भागीरथी में झील बनने के कारण आई थी विनाशकारी बाढ़.
  • साल 1991- विनाशकारी भूकंप में जनपद के 700 से अधिक लोगों ने जान गंवाई थी.
  • साल 2003- वरूणावत पर्वत से भूस्खलन के कारण कई बड़े होटल भवन हुए थे जमींदोज.
  • साल 2012-13- अस्सी गंगा घाटी और भटवाड़ी सहित जनपद मुख्यालय में अस्सी गंगा और भागीरथी नदी में आई थी बाढ़.
  • साल 2019- आराकोट आपदा में कई लोगों की ली थी जान. वहीं खेती और भवन तबाह हो गए थे.
  • साल 2022- दौप्रदी के डांडा में आया था एवलांच,जिसमें निम के 29 पर्वतारोहियों की मौत हुई थी.
  • साल 2023- निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन के कारण 17 दिन तक फंसे रहे मजदूर.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.