मेरठः यूपी के मेरठ में एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. यहां के सुभारती विश्वविद्यालय में मेडिकल में एडमिशन लेने के लिए कुछ छात्र रातों रात बौद्ध बन गये. मेडिकल कॉलेज में फर्जी अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र लगाकर एडमिशन लेने का खेल पकड़ में आने के बाद शासन स्तर से अब जांच बैठा दी गई है. मामला सामने आने के बाद अब उत्तर प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने प्रदेशभर के सभी अल्पसंख्यक मेडिकल कॉलेज में पहली काउंसलिंग के बाद एडमिशन लेने वाले छात्रों के प्रमाण पत्र के जांच के आदेश दिए हैं.
जिन कैंडिडेट्स को ये सर्टिफिकेट्स को जारी किए गए वह अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य जातियों में आते हैं. जांच के पकड़े गए खुशबू चौधरी, सिया पाराशर, रितिक सिंह, अहान गौतम और इशांत शर्मा के प्रमाण पत्र रद्द करने की संस्तुति की गई है. जबकि एक स्टूडेंट् क्योंकि धर्म परिवर्तन के नए नियम के दायरे के बाहर है. इसलिए उसे इस जांच के दायरे में शामिल नहीं किया है. हालांकि उसका अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र भी शक के घेरे में है.
सुभारती मेडिकल कॉलेज के डीन और प्रिंसिपल डॉक्टर प्रदीप भारती गुप्ता का कहना है कि संस्थान को कुछ लोग बदनाम करने की कोशिश करते रहते हैं. एडमिशन की पूरी एक प्रक्रिया है, जिसमें उनके हाथ में कुछ नहीं होता. उन्हें तो जो स्टूडेंट्स की सूची प्राप्त होती है, उन्हें वह प्रवेश देते हैं. उन्होंने कहा कि संस्थान न इसमें कोई कार्रवाई करेगा और न इसमें उनकी कोई भूमिका है.
बता दें कि बौद्ध धर्म का सर्टिफिकेट उन्हें जारी किया जा सकता है, जो जन्म से बौद्ध हो, या फिर उनके माता-पिता ने बौद्ध धर्म अपना लिया होय इसके लिए उत्तर प्रदेश में 2021 से धर्मांतरण कानून भी है. इस कानून के तहत धर्मांतरण करने वाले को 60 दिन पहले इसकी सूचना डीएम को देनी होती है. लेकिन जो मामले पकड़ में आए हैं इनमें से किसी ने भी कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई.
जिला अल्पसंख्यक अधिकारी रुहैल आजम ने बताया कि तीन प्रमाण पत्र मेरठ में भी जारी हुए हैं. बाकी जो छात्रों ने प्रमाण पत्र लगाए वह उनके जिलों में बने थे. वहीं, जिला अधिकारी ने बताया कि अभ्यर्थियों ने अपना धर्म बदलने के दौरान कानूनी प्रक्रिया ही नहीं अपनाई, जिसके अंतर्गत यूपी में 2021 के बाद धर्मांतरण मुमकिन है.