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पुष्कर में यहां गिरी थी सती माता की कलाइयां, स्थानीय लोगों के लिए हैं चामुंडा माता, ये है पौराणिक कथा - SHARDIYA NAVRATRI 2024

Shaktipeeth in Pushkar : शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन दर्शन कीजिए पुष्कर में स्थित माता के 27वें शक्तिपीठ का.

पुष्कर में यहां गिरी थी सती माता की कलाइयां
पुष्कर में यहां गिरी थी सती माता की कलाइयां (ETV Bharat Ajmer)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 6, 2024, 6:33 AM IST

दर्शन कीजिए पुष्कर में स्थित माता के 27वें शक्तिपीठ का (ETV Bharat Ajmer)

अजमेर : हिंदू धर्म में शास्त्रों के अनुसार जगत जननी माता के धरती पर 52 शक्तिपीठ हैं. माता के यह सभी शक्तिपीठ भक्तों के लिए आस्था के बड़े केंद्र हैं. माता के इन शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ तीर्थराज गुरु पुष्कर में भी है. इसे माता का 27वां शक्तिपीठ माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार मंदिर के समीप पुरुहूता पहाड़ी पर सती माता की कलाइयां गिरी थी, जहां काफी गहरा गड्ढा हो गया. पहाड़ी का रास्ता काफी दुर्गम है. ऐसे में माता के भक्तों ने पहाड़ी की तलहटी में माता को स्थापित कर दिया, ताकि लोग आसानी से माता के दर्शन कर सकें. माता का यह स्थान श्री राजराजेश्वरी पुरुहूता मणिवैदिका शक्तिपीठ है, लेकिन स्थानीय लोग माता को चामुंडा माता के नाम से पुकारते हैं.

ये है पौराणिक कथा : अजमेर से 18 किलोमीटर की दूरी पर पुष्कर में नाग पहाड़ी और सावित्री माता की पहाड़ी के बीच स्थित पुरुहूता पर्वत है. मंदिर के महंत दिगंबर ओमेंद्र पूरी बताते हैं कि माता के 27वें शक्तिपीठ को लेकर एक और पौराणिक कथा है, जिसके कारण इस शक्तिपीठ का महत्व और भी बढ़ जाता है. महंत पूरी बताते हैं कि सृष्टि की रचना करने से पहले भगवान ब्रह्मा ने पुष्कर में सृष्टि यज्ञ किया था. सृष्टि यज्ञ महादेव की उपस्थिति के बिना पूरा नहीं हो सकता था, इसलिए यज्ञ को पूर्ण करवाने के लिए भगवान ब्रह्मा के आह्वान पर महादेव आ तो गए, लेकिन यज्ञ में जोड़े से बैठने का विधान था. ऐसा नहीं करने यज्ञ पूर्ण नहीं होता है. ऐसे में महादेव ने जगत पिता ब्रह्मा की दुविधा को दूर किया और माता के इस 27वें शक्तिपीठ से माता को स्वरूप दिया. इसके बाद महादेव अपनी अर्धांगिनी के साथ यज्ञ में बैठे तब जाकर यज्ञ पूर्ण हुआ.

पढ़ें. रोचक है मां शाकंभरी का धाम की कहानी, दरबार में जहांगीर ने झुकाया था शीश - Shardiya Navratri 2024

सृष्टि यज्ञ के दौरान ही जब माता सावित्री को विलंब हो रहा था तब जगत पिता ब्रह्मा ने गाय के मुख से गायत्री माता का प्रकट किया. उन्होंने बताया कि यज्ञ संपन्न होने के बाद माता शक्ति और गायत्री ने सभी देवी देवताओं से अपने लिए स्थान मांगा. तब माता शक्ति के साथ पुरुहूता पर्वत पर माता गायत्री संग में विराजमान हुईं. माता के हर शक्ति पीठ पर भैरव का स्थान जरूर होता है. यहां भी भैरवनाथ का स्थान है. श्रद्धालु माता के दर्शन करने के बाद भैरवनाथ के दर्शन करते हैं. उन्होंने बताया कि माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालु की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. एक बार जो श्रद्धालु माता के दरबार में आ गया वह बार-बार यहां आता है.

कैसे बना शक्तिपीठ : पौराणिक धर्म शास्त्रों के अनुसार देवाधिदेव महादेव की पत्नी सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ किया था, जिसमें उन्होंने अपने दामाद महादेव को आमंत्रित नहीं किया था. महादेव के अपमान से क्रोधित होकर माता सती ने उस यज्ञ के वेदी में अपना देह त्याग दिया था. माता सती के देह त्याग करने से महादेव वहां प्रकट हुए और माता सती की देह को अपने हाथ में लेकर रौद्र रूप में ब्रह्मांड में भटकते रहे. महादेव को उनके रूद्र अवस्था में से बाहर लाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह के टुकड़े कर दिए. सती की देह के अंश धरती पर जहां भी गिरे, वह स्थान शक्तिपीठ बन गए.

पुष्कर में माता का 27वां शक्तिपीठ
पुष्कर में माता का 27वां शक्तिपीठ (ETV Bharat Ajmer)

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तीर्थ यात्री दर्शनों के लिए आने लगे हैं : सभी तीर्थों के गुरु पुष्कर हैं. सदियों से यहां हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री आते रहे हैं, लेकिन माता की शक्तिपीठ के बारे में यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को मालूम नहीं है. स्थानीय लोग भी माता की आराधना माता चामुंडा के रूप में करते हैं. यही कारण है कि आदिशक्ति जगदम्बा के 52 शक्तिपीठ में से 27वां शक्तिपीठ में माता का मंदिर भव्यता नहीं ले पाया, लेकिन अब माता की शक्तिपीठ का प्रचार प्रसार होने से अब श्रद्धालु यहां तक पहुंचने लगे हैं, जिससे माता के स्थान को विकसित करने में सहयोग मिल रहा है. पुष्कर तीर्थ दर्शन करने के लिए हरियाणा से आए तीर्थ यात्री दीपक ने बताया कि पुष्कर आने के बाद यहां स्थानीय लोगों से बातचीत करने पर उन्हें माता की शक्तिपीठ के बारे में पता चला. परिवार के साथ माता के दरबार में उन्होंने मत्था टेका. स्थानीय पुष्कर निवासी राजेंद्र बताते हैं कि बचपन से ही वह चामुंडा माता के दर्शनों के लिए आ रहे हैं. पहले यह मंदिर काफी छोटा था, लेकिन अब धीरे-धीरे यह मंदिर भी विकसित हो रहा है. पहले मार्ग नहीं होने के कारण शहरी लोग काम आते थे, लेकिन अब मार्ग और संसाधन होने पर लोगों का आना जाना हो रहा है.

दर्शन कीजिए पुष्कर में स्थित माता के 27वें शक्तिपीठ का (ETV Bharat Ajmer)

अजमेर : हिंदू धर्म में शास्त्रों के अनुसार जगत जननी माता के धरती पर 52 शक्तिपीठ हैं. माता के यह सभी शक्तिपीठ भक्तों के लिए आस्था के बड़े केंद्र हैं. माता के इन शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ तीर्थराज गुरु पुष्कर में भी है. इसे माता का 27वां शक्तिपीठ माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार मंदिर के समीप पुरुहूता पहाड़ी पर सती माता की कलाइयां गिरी थी, जहां काफी गहरा गड्ढा हो गया. पहाड़ी का रास्ता काफी दुर्गम है. ऐसे में माता के भक्तों ने पहाड़ी की तलहटी में माता को स्थापित कर दिया, ताकि लोग आसानी से माता के दर्शन कर सकें. माता का यह स्थान श्री राजराजेश्वरी पुरुहूता मणिवैदिका शक्तिपीठ है, लेकिन स्थानीय लोग माता को चामुंडा माता के नाम से पुकारते हैं.

ये है पौराणिक कथा : अजमेर से 18 किलोमीटर की दूरी पर पुष्कर में नाग पहाड़ी और सावित्री माता की पहाड़ी के बीच स्थित पुरुहूता पर्वत है. मंदिर के महंत दिगंबर ओमेंद्र पूरी बताते हैं कि माता के 27वें शक्तिपीठ को लेकर एक और पौराणिक कथा है, जिसके कारण इस शक्तिपीठ का महत्व और भी बढ़ जाता है. महंत पूरी बताते हैं कि सृष्टि की रचना करने से पहले भगवान ब्रह्मा ने पुष्कर में सृष्टि यज्ञ किया था. सृष्टि यज्ञ महादेव की उपस्थिति के बिना पूरा नहीं हो सकता था, इसलिए यज्ञ को पूर्ण करवाने के लिए भगवान ब्रह्मा के आह्वान पर महादेव आ तो गए, लेकिन यज्ञ में जोड़े से बैठने का विधान था. ऐसा नहीं करने यज्ञ पूर्ण नहीं होता है. ऐसे में महादेव ने जगत पिता ब्रह्मा की दुविधा को दूर किया और माता के इस 27वें शक्तिपीठ से माता को स्वरूप दिया. इसके बाद महादेव अपनी अर्धांगिनी के साथ यज्ञ में बैठे तब जाकर यज्ञ पूर्ण हुआ.

पढ़ें. रोचक है मां शाकंभरी का धाम की कहानी, दरबार में जहांगीर ने झुकाया था शीश - Shardiya Navratri 2024

सृष्टि यज्ञ के दौरान ही जब माता सावित्री को विलंब हो रहा था तब जगत पिता ब्रह्मा ने गाय के मुख से गायत्री माता का प्रकट किया. उन्होंने बताया कि यज्ञ संपन्न होने के बाद माता शक्ति और गायत्री ने सभी देवी देवताओं से अपने लिए स्थान मांगा. तब माता शक्ति के साथ पुरुहूता पर्वत पर माता गायत्री संग में विराजमान हुईं. माता के हर शक्ति पीठ पर भैरव का स्थान जरूर होता है. यहां भी भैरवनाथ का स्थान है. श्रद्धालु माता के दर्शन करने के बाद भैरवनाथ के दर्शन करते हैं. उन्होंने बताया कि माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालु की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. एक बार जो श्रद्धालु माता के दरबार में आ गया वह बार-बार यहां आता है.

कैसे बना शक्तिपीठ : पौराणिक धर्म शास्त्रों के अनुसार देवाधिदेव महादेव की पत्नी सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ किया था, जिसमें उन्होंने अपने दामाद महादेव को आमंत्रित नहीं किया था. महादेव के अपमान से क्रोधित होकर माता सती ने उस यज्ञ के वेदी में अपना देह त्याग दिया था. माता सती के देह त्याग करने से महादेव वहां प्रकट हुए और माता सती की देह को अपने हाथ में लेकर रौद्र रूप में ब्रह्मांड में भटकते रहे. महादेव को उनके रूद्र अवस्था में से बाहर लाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती की देह के टुकड़े कर दिए. सती की देह के अंश धरती पर जहां भी गिरे, वह स्थान शक्तिपीठ बन गए.

पुष्कर में माता का 27वां शक्तिपीठ
पुष्कर में माता का 27वां शक्तिपीठ (ETV Bharat Ajmer)

पढ़ें. मुस्लिम भक्त की अनूठी भक्ति, मनसा देवी के मंदिर में चार पीढ़ियों से बजा रहे नगाड़ा... यहां पूरी होती है हर मनोकामना - Shardiya Navratri 2024

तीर्थ यात्री दर्शनों के लिए आने लगे हैं : सभी तीर्थों के गुरु पुष्कर हैं. सदियों से यहां हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री आते रहे हैं, लेकिन माता की शक्तिपीठ के बारे में यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को मालूम नहीं है. स्थानीय लोग भी माता की आराधना माता चामुंडा के रूप में करते हैं. यही कारण है कि आदिशक्ति जगदम्बा के 52 शक्तिपीठ में से 27वां शक्तिपीठ में माता का मंदिर भव्यता नहीं ले पाया, लेकिन अब माता की शक्तिपीठ का प्रचार प्रसार होने से अब श्रद्धालु यहां तक पहुंचने लगे हैं, जिससे माता के स्थान को विकसित करने में सहयोग मिल रहा है. पुष्कर तीर्थ दर्शन करने के लिए हरियाणा से आए तीर्थ यात्री दीपक ने बताया कि पुष्कर आने के बाद यहां स्थानीय लोगों से बातचीत करने पर उन्हें माता की शक्तिपीठ के बारे में पता चला. परिवार के साथ माता के दरबार में उन्होंने मत्था टेका. स्थानीय पुष्कर निवासी राजेंद्र बताते हैं कि बचपन से ही वह चामुंडा माता के दर्शनों के लिए आ रहे हैं. पहले यह मंदिर काफी छोटा था, लेकिन अब धीरे-धीरे यह मंदिर भी विकसित हो रहा है. पहले मार्ग नहीं होने के कारण शहरी लोग काम आते थे, लेकिन अब मार्ग और संसाधन होने पर लोगों का आना जाना हो रहा है.

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