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कोरोना और उससे पहले की रखी 23 अस्थियों को मोक्ष का इंतजार, लॉकर में बंद चाबियां मृतक के परिवार के पास - PITRU PAKSHA 2024

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 2 hours ago

कोटा के किशोरपुरा मुक्तिधाम में अस्थियों को रखने के लिए बने हुए लॉकर में 23 अस्थियां ऐसी रखी हुई हैं. जिन्हें सालों से अब तक कोई ले जाने नहीं आया है. इन्हें लॉकर में रखने के बाद चाबी मृतक के परिवार के लोग लेकर गए थे, जो यहां वापस भी नहीं आए हैं.

पितृपक्ष विशेष
पितृपक्ष विशेष (फोटो ईटीवी भारत कोटा)

कोटा. पितृपक्ष चल रहा है और इस दौरान अपने पूर्वजों के श्रद्धा मनाए जाते हैं. तर्पण कर उनके मोक्ष की प्रार्थना की जाती है. कई तरह के क्रियाक्रम भी इस दौरान होते हैं, लेकिन किशोरपुरा मुक्तिधाम में अस्थियों को रखने के लिए बने हुए लॉकर में 23 अस्थियां ऐसी हैं. जिन्हें सालों पहले रखा हुआ है, लेकिन उनका कोई मालिक नहीं बन रहा है. इन्हें लॉकर में रखने के बाद चाबी मृतक के परिवार के लोग लेकर गए थे, यह वापस भी नहीं लौटे हैं.

सालों से उनके वापस आने का इंतजार विद्युत शवदाहगृह के ऑपरेटर और केयरटेकर ओमप्रकाश कर रहे हैं. ओमप्रकाश ने बताया कि कुछ अस्थियों कोरोना के पहले की है, जबकि शेष डेढ़ दर्जन अस्थियां कोरोना काल के समय की है. ऐसे में इन अस्थियों का ही विसर्जन नहीं हुआ, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हें मोक्ष और शांति का इंतजार है. यह अस्थियां किशोरपुरा मुक्तिधाम और विद्युत शवदाहगृह में हुए अंतिम संस्कार के बाद रखी हुई है. यहां तक की इन पर लगे हुए तालों में भी जंग लग गया है, काफी समय से यह बंद है. इन्हीं के चलते यहां बने लॉकर्स में अस्थि रखने की भी समस्या आती है.

23 अस्थियों को मोक्ष का इंतजार (वीडियो ईटीवी भारत, कोटा)

यहां किया जाता है विसर्जन, यह है मान्यता : हाड़ौती के साथ-साथ पूरे देश भर हरिद्वार में गंगा नदी अस्थि विसर्जन करने का नियम बना हुआ है. वहीं गंगा नदी में ही उत्तर प्रदेश के सौरुजी घाट, हरिद्वार के सतीघाट, वाराणसी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर भी अस्थि विसर्जन होता है. इसके अलावा बिहार के गया में फल्गु नदी व आगरा में यमुना नदी के रेणुका घाट पर अस्थि विसर्जन होता है. इसके अलावा कुछ लोग कोटा में चंबल नदी में भी अस्थि विसर्जन कर देते हैं. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा दूसरे शरीर के रूप में जन्म ले लेती है. ऐसे में अंतिम संस्कार के बाद शरीर के अस्थियों को नदी में विसर्जित किया जाता है जिससे मुक्ति व मोक्ष मिले.

पढ़ें: इन तिथियों में होगा श्राद्ध पक्ष का कर्म, जानिए 16 तिथियां - PITRA PAKSHA 2024

अब बदल दिया है नियम लेते हैं पूरी जानकारी, हिदायत भी : पहले अधिकांश मृतक के संबंध में कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, केवल लॉकर में ही उन्हें रख दिया जाता था. एक-दो दिन में आकर परिजन अस्थियों को ले जाते थे. ये गंगा या अन्य पवित्र नदियों में उन्हें विसर्जित कर क्रिया कर्म किया करते थे, ताकि मृतक की आत्मा को शांति और मोक्ष मिले. इन अस्थियों के संबंध में किसी तरह की कोई जानकारी भी केयरटेकर ओमप्रकाश के पास नहीं है. उनका कहना है कि पहले मृतक के संबंध में कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, केवल लॉकर उन्हें दे दिया जाता था. लॉकर में अस्थि रख ताला लगा देते थे और अस्थियों को दो या तीन दिन बाद ताला खोल कर ले जाते थे. इसीलिए कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, लेकिन जब से अस्थियां लोग लेकर नहीं गए हैं, तब से बदलाव कर दिया है. अब नाम, पता, मोबाइल नंबर और एड्रेस से लेकर सब चीज ली जाती है. साथ ही यह हिदायत भी दी जाती है कि अगर 15 दिन में अस्थियों को लेने नहीं आए तो उसके बाद चंबल नदी में इनका विसर्जन कर दिया जाएगा इसके जिम्मेदार वे स्वयं होंगे.

नहीं कर सकते हैं खुद विसर्जित : पहले अधिकांश मृतक के संबंध में कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, केवल लॉकर में ही उन्हें रख दिया जाता था. एक-दो दिन में आकर परिजन अस्थियों को ले जाते थे. ये गंगा या अन्य पवित्र नदियों में उन्हें विसर्जित कर क्रिया कर्म किया करते थे, ताकि मृतक की आत्मा को शांति और मोक्ष मिले. ओमप्रकाश का कहना है कि कोरोना काल के समय 400 से 500 अस्थियां एकत्रित भी हो गई थी. जिन्हें अधिकांश लोग लेकर चले गए, लेकिन 23 ऐसी अस्थियां हैं, जिन्हें कोई भी नहीं लेकर गया और उनके मालिक भी कोई नहीं बन रहा है. हमारे पास उनके संबंध में कोई जानकारी भी नहीं है. हम इनको खोलकर विसर्जित भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि क्या पता कभी इनको कोई परिजन आ जाए.

मोक्ष का इंतजार
मोक्ष का इंतजार (फोटो ईटीवी भारत कोटा)

पढ़ें: श्राद्ध पक्ष की हुई शुरुआत, तीर्थराज मचकुंड पर पितरों को किया तर्पण, 2 अक्टूबर तक मांगलिक कार्यक्रम रहेंगे बंद - Pitru Paksha 2024

यह भी हो सकता है कारण : कोरोना काल के दौरान कई परिवारों में दो से तीन और चार लोगों तक की भी मौत हुई थी. कई परिवारों में केवल छोटे बच्चे ही बचे थे, ऐसे में हो सकता है यह अस्थियां उन परिवार के लोगों की हो. जिनके किसी परिजन की मौत पहले हो गई और उसके बाद अन्य परिजनों का भी देहांत हो गया है जिसके चलते इन अस्थियों को ले जाया नहीं जा सका है.

कोटा. पितृपक्ष चल रहा है और इस दौरान अपने पूर्वजों के श्रद्धा मनाए जाते हैं. तर्पण कर उनके मोक्ष की प्रार्थना की जाती है. कई तरह के क्रियाक्रम भी इस दौरान होते हैं, लेकिन किशोरपुरा मुक्तिधाम में अस्थियों को रखने के लिए बने हुए लॉकर में 23 अस्थियां ऐसी हैं. जिन्हें सालों पहले रखा हुआ है, लेकिन उनका कोई मालिक नहीं बन रहा है. इन्हें लॉकर में रखने के बाद चाबी मृतक के परिवार के लोग लेकर गए थे, यह वापस भी नहीं लौटे हैं.

सालों से उनके वापस आने का इंतजार विद्युत शवदाहगृह के ऑपरेटर और केयरटेकर ओमप्रकाश कर रहे हैं. ओमप्रकाश ने बताया कि कुछ अस्थियों कोरोना के पहले की है, जबकि शेष डेढ़ दर्जन अस्थियां कोरोना काल के समय की है. ऐसे में इन अस्थियों का ही विसर्जन नहीं हुआ, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्हें मोक्ष और शांति का इंतजार है. यह अस्थियां किशोरपुरा मुक्तिधाम और विद्युत शवदाहगृह में हुए अंतिम संस्कार के बाद रखी हुई है. यहां तक की इन पर लगे हुए तालों में भी जंग लग गया है, काफी समय से यह बंद है. इन्हीं के चलते यहां बने लॉकर्स में अस्थि रखने की भी समस्या आती है.

23 अस्थियों को मोक्ष का इंतजार (वीडियो ईटीवी भारत, कोटा)

यहां किया जाता है विसर्जन, यह है मान्यता : हाड़ौती के साथ-साथ पूरे देश भर हरिद्वार में गंगा नदी अस्थि विसर्जन करने का नियम बना हुआ है. वहीं गंगा नदी में ही उत्तर प्रदेश के सौरुजी घाट, हरिद्वार के सतीघाट, वाराणसी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर भी अस्थि विसर्जन होता है. इसके अलावा बिहार के गया में फल्गु नदी व आगरा में यमुना नदी के रेणुका घाट पर अस्थि विसर्जन होता है. इसके अलावा कुछ लोग कोटा में चंबल नदी में भी अस्थि विसर्जन कर देते हैं. हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा दूसरे शरीर के रूप में जन्म ले लेती है. ऐसे में अंतिम संस्कार के बाद शरीर के अस्थियों को नदी में विसर्जित किया जाता है जिससे मुक्ति व मोक्ष मिले.

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अब बदल दिया है नियम लेते हैं पूरी जानकारी, हिदायत भी : पहले अधिकांश मृतक के संबंध में कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, केवल लॉकर में ही उन्हें रख दिया जाता था. एक-दो दिन में आकर परिजन अस्थियों को ले जाते थे. ये गंगा या अन्य पवित्र नदियों में उन्हें विसर्जित कर क्रिया कर्म किया करते थे, ताकि मृतक की आत्मा को शांति और मोक्ष मिले. इन अस्थियों के संबंध में किसी तरह की कोई जानकारी भी केयरटेकर ओमप्रकाश के पास नहीं है. उनका कहना है कि पहले मृतक के संबंध में कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, केवल लॉकर उन्हें दे दिया जाता था. लॉकर में अस्थि रख ताला लगा देते थे और अस्थियों को दो या तीन दिन बाद ताला खोल कर ले जाते थे. इसीलिए कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, लेकिन जब से अस्थियां लोग लेकर नहीं गए हैं, तब से बदलाव कर दिया है. अब नाम, पता, मोबाइल नंबर और एड्रेस से लेकर सब चीज ली जाती है. साथ ही यह हिदायत भी दी जाती है कि अगर 15 दिन में अस्थियों को लेने नहीं आए तो उसके बाद चंबल नदी में इनका विसर्जन कर दिया जाएगा इसके जिम्मेदार वे स्वयं होंगे.

नहीं कर सकते हैं खुद विसर्जित : पहले अधिकांश मृतक के संबंध में कोई जानकारी नहीं ली जाती थी, केवल लॉकर में ही उन्हें रख दिया जाता था. एक-दो दिन में आकर परिजन अस्थियों को ले जाते थे. ये गंगा या अन्य पवित्र नदियों में उन्हें विसर्जित कर क्रिया कर्म किया करते थे, ताकि मृतक की आत्मा को शांति और मोक्ष मिले. ओमप्रकाश का कहना है कि कोरोना काल के समय 400 से 500 अस्थियां एकत्रित भी हो गई थी. जिन्हें अधिकांश लोग लेकर चले गए, लेकिन 23 ऐसी अस्थियां हैं, जिन्हें कोई भी नहीं लेकर गया और उनके मालिक भी कोई नहीं बन रहा है. हमारे पास उनके संबंध में कोई जानकारी भी नहीं है. हम इनको खोलकर विसर्जित भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि क्या पता कभी इनको कोई परिजन आ जाए.

मोक्ष का इंतजार
मोक्ष का इंतजार (फोटो ईटीवी भारत कोटा)

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यह भी हो सकता है कारण : कोरोना काल के दौरान कई परिवारों में दो से तीन और चार लोगों तक की भी मौत हुई थी. कई परिवारों में केवल छोटे बच्चे ही बचे थे, ऐसे में हो सकता है यह अस्थियां उन परिवार के लोगों की हो. जिनके किसी परिजन की मौत पहले हो गई और उसके बाद अन्य परिजनों का भी देहांत हो गया है जिसके चलते इन अस्थियों को ले जाया नहीं जा सका है.

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