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इको टूरिज्म को बढ़ावा देने पर जोर, 300 किमी का सफर कर रामगढ़ विषधारी पहुंचे घना से आए 19 चीतल - राजस्थान टाइगर रिजर्व

300 किमी का सफर कर घना पक्षी विहार से आए 19 चीतल रामगढ़ विषधारी अभयारण्य में पहुंच गए. इनकी इस खेप में 16 मादा चीतल और 3 नर चीतल हैं.

Ramgarh Vishdhari Sanctuary
रामगढ़ विषधारी अभयारण्य
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 12, 2024, 7:58 AM IST

बूंदी. जिले के रामगढ़ विषधारी को आबाद करने और जिले में इको टूरिज्म को गति देने की दृष्टि से एक और बाघिन को रणथंभौर टाइगर रिजर्व से लाने की तैयारी चल रही है. इसी तैयारी के चलते केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी घना उद्यान से प्री-बेस के रुप में 19 चीतल लाए गए, जो रामगढ़ विषधारी की जमीन पर कुलांचे भरते नजर आए. शनिवार देर शाम को 19 चीतल रामगढ़ विषधारी की जमीन पर कंटेनर से आजाद किए गए. इनकी इस खेप में 16 मादा चीतल और 3 नर चीतल हैं.

रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के उपवन संरक्षक संजीव शर्मा ने बताया कि घना से आए इन चीतलों को अभयारण्य क्षेत्र के झरबंधा क्षेत्र में छोड़ा गया है. सभी 19 चीतल सकुशल वाहन से कूद कर वन क्षेत्र में कुलांचे भरते हुए चले गए. भरतपुर के घना नेशनल पार्क से इन चीतल को ट्रैप कर वाहन से रामगढ़ लाया गया.

इसे भी पढ़ें : बूंदी में 30 सालों बाद फिर नजर आए ऊदबिलाव, रामगढ़-विषधारी टाइगर रिजर्व में दिखी जलक्रीड़ा

150 चीतल भेजना का लक्ष्य : गौरतलब है कि रामगढ़ विषधारी में 150 चीतल भेजे जाने है. पूर्व में भी घना अभयारण्य से चीतल को यहां लाकर वन क्षेत्र में छोड़ा गया है, जिनकी संख्या भी वर्तमान में अच्छी हो चुकी है. वनकर्मियों की ओर से इनकी मॉनिटरिंग की जा रही है. इनके आने से रामगढ़ में प्री-बेस में बढ़ोतरी होगी. रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में एक बाघ दो बाघिन व उनके शावक मौजूद हैं. वहीं, रणथंभौर टाइगर रिजर्व से एक और बाघिन को यहां छोड़ने की तैयारी चल रही है. बाघों के बढ़ते कुनबे को देखते हुए प्रे बेस के रूप में चीतल को अभयारण्य क्षेत्र में छोड़ा जा रहा है. यह बाघों का पहला पसंदीदा भोजन माना जाता है. उन्होंने बताया कि शनिवार देर रात 19 नर व मादा चीतल छोड़े गए हैं. घना अभयारण्य से कुल 150 चीतल यहां छोड़े जाने हैं. पूर्व में भी यहां 21 चीतलों को छोड़ा गया था, जिससे उनके कुनबे में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है.

चीतल का साल में दो बार प्रजनन : पूर्व वन्य जीव प्रतिपालक विट्ठल सनाढय ने बताया कि चीतल का साल में दो बार अप्रैल-मई व सितंबर-अक्टूबर में प्रजनन काल रहता है, जिससे चीतलों की संख्या तेजी से बढ़ती है. आसानी से पेड़ों झाड़ियों की पत्तियां खाकर अपना पेट भर लेते हैं. इनके लिए विशेष ग्रासलैंड की जरूरत भी नहीं होती हैं.

बूंदी. जिले के रामगढ़ विषधारी को आबाद करने और जिले में इको टूरिज्म को गति देने की दृष्टि से एक और बाघिन को रणथंभौर टाइगर रिजर्व से लाने की तैयारी चल रही है. इसी तैयारी के चलते केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी घना उद्यान से प्री-बेस के रुप में 19 चीतल लाए गए, जो रामगढ़ विषधारी की जमीन पर कुलांचे भरते नजर आए. शनिवार देर शाम को 19 चीतल रामगढ़ विषधारी की जमीन पर कंटेनर से आजाद किए गए. इनकी इस खेप में 16 मादा चीतल और 3 नर चीतल हैं.

रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व के उपवन संरक्षक संजीव शर्मा ने बताया कि घना से आए इन चीतलों को अभयारण्य क्षेत्र के झरबंधा क्षेत्र में छोड़ा गया है. सभी 19 चीतल सकुशल वाहन से कूद कर वन क्षेत्र में कुलांचे भरते हुए चले गए. भरतपुर के घना नेशनल पार्क से इन चीतल को ट्रैप कर वाहन से रामगढ़ लाया गया.

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150 चीतल भेजना का लक्ष्य : गौरतलब है कि रामगढ़ विषधारी में 150 चीतल भेजे जाने है. पूर्व में भी घना अभयारण्य से चीतल को यहां लाकर वन क्षेत्र में छोड़ा गया है, जिनकी संख्या भी वर्तमान में अच्छी हो चुकी है. वनकर्मियों की ओर से इनकी मॉनिटरिंग की जा रही है. इनके आने से रामगढ़ में प्री-बेस में बढ़ोतरी होगी. रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में एक बाघ दो बाघिन व उनके शावक मौजूद हैं. वहीं, रणथंभौर टाइगर रिजर्व से एक और बाघिन को यहां छोड़ने की तैयारी चल रही है. बाघों के बढ़ते कुनबे को देखते हुए प्रे बेस के रूप में चीतल को अभयारण्य क्षेत्र में छोड़ा जा रहा है. यह बाघों का पहला पसंदीदा भोजन माना जाता है. उन्होंने बताया कि शनिवार देर रात 19 नर व मादा चीतल छोड़े गए हैं. घना अभयारण्य से कुल 150 चीतल यहां छोड़े जाने हैं. पूर्व में भी यहां 21 चीतलों को छोड़ा गया था, जिससे उनके कुनबे में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हो रही है.

चीतल का साल में दो बार प्रजनन : पूर्व वन्य जीव प्रतिपालक विट्ठल सनाढय ने बताया कि चीतल का साल में दो बार अप्रैल-मई व सितंबर-अक्टूबर में प्रजनन काल रहता है, जिससे चीतलों की संख्या तेजी से बढ़ती है. आसानी से पेड़ों झाड़ियों की पत्तियां खाकर अपना पेट भर लेते हैं. इनके लिए विशेष ग्रासलैंड की जरूरत भी नहीं होती हैं.

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